हम लोग ओ.टी.टी. और वेब सीरीज़ पर चर्चा करते रहे और मिर्ज़ापुर का सीजन-2 भी आ गया। पिछली रात दसवाँ एपिसोड देख, सीजन-2 पूरा किया। अगला सीजन आने तक, आइए कुछ चिंतन करें:
- समूचे प्रदेश में टोमेटो सॉस की भारी कमी हो गई है। जितना भी उपलब्ध था, सब मिर्ज़ापुर-2 के खून ख़राबे वाले सीन में लग गया। आप पूछ सकते हो कि, फिर बचे कितने सीन?
- ख़ैर, टोमेटो सॉस तो “विलासिता की वस्तु” है, पर कई जल प्रदाय योजनाएँ ठप्प पड़ गई। पानी के पाईप की दिक़्क़त हो गई। सारा पाईप देसी कट्टे बनाने के काम में लग रहा है, क़ालीन भैया की फ़ैक्ट्री में ।
- इतनी गोलियाँ (और गालियाँ) चलने के बाद, सीज़न- 3 के लिए कौन बचा? एक तो क़ालीन भैया निश्चित तौर पर रहेंगे। अगले सीज़न में उनका नाम “शालीन भैया” हो जाएगा। पूरी सीरीज़ में वही एक पात्र है, जो शालीन भाषा बोलता है।
- सुना है कुछ दर्शक भी बच गए हैं, सीज़न- 3 देखने के लिए। बाक़ी तो …
- नेटफ़्लिक्स और अन्य ओ.टी.टी.पर वयस्क (18+) सीरीज़ देखने वालों की संख्या में भारी कमी आई है। अब देसी मिर्ज़ापुर जो आ गई है !
- इस सीरीज में हर कोई प्रदेश को अपराध मुक्त करने की घोषणा कर रहा है, प्रशासन को चिंता हो सकती है कि अब वे क्या काम करेंगे?
- जातिगत समीकरण बनाने वाले भी चकित हैं। अब इस सीरीज़ को देख, किसी जाति विशेष को कैसे अगली सीरीज़ में निशाना बनाया जाए, सोच रहे हैं।
- लाल जीप, काला चश्मा, रिवाल्वर और “ताक़त की गोली” – इन चीजों की भारी माँग है। मुन्ना भैया, अब नए “यूथ आइकॉन” जो बने गए हैं। वही जादू गोलू जी, लड़कियों पर नहीं कर पाई।
- सुना है आजकल “टपोरी” लोगों का बुरा हाल है। लोग उनकी बातों को सीरीयसली नहीं लेते, कहते हैं, यह तो “मिर्ज़ापुर का डाईलॉग है”। उनके सामने चुनौती है कि मिर्ज़ापुर से भी भयंकर भाषा और गालियाँ ईजाद करें, तब ही लोग उनसे डरेंगे।
कुल मिला कर मिर्ज़ापुर -1 और 2 सीरीज़ का, भारतीय संस्कृति, भारतीय साहित्य, युवा उत्थान और जनसंख्या नियंत्रण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है।
क्या आपने इस महायज्ञ में अपने समय की आहूति दी?
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