यही तो वो चाहते थे पिछले इतने समय से , करते भी क्या , पिछले साल ही देश को CAA के विरोध में जलाने फूंकने वालों के मंसूबों पर पानी फिर गया था जब अचानक ही कोरोना महामारी ने आकर शाहीन बागों के तम्बू बम्बू दोनों ही उखाड़ दिए थे। अब इतने समय बाद एक बार फिर से विरोधियों को , खीज और हताशा में बैठे लोगों को कि वे किसानों के नाम पर देश ,शहर और समाज के साथ वही सब कर सकें।

इस देश का सच्चा किसान पहले तो कभी 26 जनवरी ,गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय गौरव के दिवस को , देश की वीर फ़ौज के शौर्य शक्ति और सम्मान की सार्वजनिक सलामी देने वाले दिन को , अपने उपद्रव अपनी हिंसा के खिलवाड़ के लिए , ट्रक और बस के बीच टक्कर कराने वाले सर्कस के लिए चुनेंगे। लेकिन उनहोंने चुना और सबका आग्रह ताक पर रख कर चुना।

अभी दो दिन पहले तक “जय जवान -जय किसान ” की चीत्कार लगाने वाले और 60 दिनों से जिस पुलिस वालों की सुरक्षा संरक्षण और सहयोग से वे दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले बैठे जिम ,कसरत ,कबड्डी खेल गा रहे हैं आज उन्हीं पर तलवारें और डंडे लिए पिले पड़े लोग , कुछ. भी हो सकते हैं किसान नहीं हो सकते। उनकी अंतरात्मा खुद भी यह नहीं कह सकती कि देश का किसान -फ़ौज , पुलिस ,देश , समाज और गणतंत्र तक को अपनी भड़ास निकालने के अवसर के रूप में बदल दें।

काश की अदालत ने इसकी संभावनाओं को सूचना को देखते हुए सख्ती से कम से कम राष्ट्रीय पर्व वाले किसी भी दिवस के दिन , राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को ऐसे किसी बड़े प्रदर्शन के लिए चुने जाने की सार्वजनिक घोषणा वो भी बिना किसी संस्था और निकाय से अनुमति के , निषिद्ध किया जाना अपेक्षित था।

अपेक्षित तो अब यह भी है कि , लगातार 60 दिनों में दर्जन भर से भी अधिक बार वार्ता बातचीत के लिए बुलाकर सरकार -बतौर जनप्रतिनिधि , हर दायित्व को निभा कर विशवास बनाए रखने में सफल साबित हुई है वहीँ बार बार न्यालालय और पुलिस को आश्वासन देने के बावजूद भी आज दिल्ली में किसानों के आंदोलन की आड़ में दंगे फसाद उपद्रव करके कानून और व्यवस्था को बिगाड़ने का षड्यंत्र करने वालों से अब कानून ,पुलिस और न्यायपालिका द्वारा भी कठोरता से निपटा जाना चाहिए।

उपद्रवी बहुत स्थानों से ,पुलिस अवरोध को तोड़ कर शहरों में प्रवेश कर चुके हैं , एक तो कोरोना जैसी महामारी का विकट समय , दूसरे आए दिन शत्रु देशों द्वारा भारत के ऐसे ही अस्थिर समय के अवसर की तलाश , आतंकियों द्वारा अपने सारे मंसूबों के विफल हो जाने का प्रतिशोध -जाने कितने ही प्रत्यक्ष और परोक्ष खतरे में डाला जा रहा है समाज देश और व्यवस्था को -ये इन उपद्रवियों को लेशमात्र भी अंदाज़ा नहीं है।

उपद्रवियों और दंगाइयों जैसे व्यव्हार करने वालों , सरकार और सार्जवनिक समपत्तियों को नुकसान पहुँचाने वालों , गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व को दूषित करने का अपराध करने वालों के साथ अब विधि सम्मत व्यवहार किया जाना अपेक्षित है।

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