बीमार पड़ने पर एलोपैथी ही काम आता है -सही बात है
बीमार ही न पड़ो ,ये आयुर्वेद सिखाता है – खरी बात है

ये रोग बनाम योग का युद्ध है और वो भी ठीक उस समय जब दुनिया पर ये महामारी का संकट पिछले कुछ दशकों से “चिकित्स्कीय अनुसंधान और अन्वेषण ” की सनक , जिनमें अधिकांशतया प्राकृतिक व्यवस्थाओं और स्थापित परम्परों को चुनौती दी गई है /अब भी दी जा रही है में से एक के कारण ही आज मानवता के सामने खड़ी हो गई है। 

तो बात यहीं से शुरू करते हैं और इससे पहले कि कुछ भी कहें ये भी जान समझ लेना चाहिए कि -बाप ,बाप होता है और बेटा बेटा। आयुर्वेद चिकित्सा उतनी ही पुरानी है जितनी इंसानियत और एलोपैथ का खुद अंदाज़ा लगाएं।

अब जब बात दोनों के बीच द्वन्द की हो रही है तो क्यों न फिर बात भी खरी खरी ही की जाए – घर के मसालों से लेकर ,घर में लगे तुलसी , नीम , गलोय के पौधे /बेल आदि सब के सब आयुर्वेद के वैद्य और औषधि हैं और आज भी एलोपैथी जिन औषधियों का निर्माण कर रही है उनका आधार यही जड़ी यही बूटियाँ हैं।  

योग गुरु बाबा रामदेव अक्सर अपने बड़बोलेपन के कारण स्वयं  कोई बार अनावश्यक विवाद खड़े करते रहे हैं किन्तु इस बार जब उन्होंने अपनी लकीर को बड़ा करने के लिए उसे बड़ा करने का तरीका दूसरे की लकीर को मिटा कर छोटा कर देने वाला अपनया और एलोपैथी को कोरोना महामारी से लड़ाई में सर्वथा असफल बताते हुए एलोपैथी चिकित्सा विज्ञान और चिकित्स्कों को जम कर लताड़ दिया , हालाँकि जिसके वे पूरे हकदार थे तो चिकित्स्कों के संघ इतना आहत हो उठा कि बाबा रामदेव के इस पूरे प्रकरण और बयान पर खेद प्रकट कर क्षमा माँगने के बावजूद भी पूरे 1000 करोड़ की मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया।  

अब बात थोड़ी और ज्यादा चुभने वाली , पहली ये भारतीय चिकित्सा संघ पूरे भारत के सभी चिकित्स्कों का अकेला प्रतिनिधि नहीं है ठीक वैसे ही जैसे ठकैत साब देश भर के किसानों के प्रतिनिधि नहीं हैं।  ये चिकित्सा संघ , चिकित्स्कों के कल्याण उनकी समस्याओं के निवारण हेतु गठित किया गया है और तमाम निजी /विदेशी कंपनियों के उत्पादों को पैसे लेकर उनके पक्ष में सहमति देता है जिन उत्पादों में किए गए दावों की पुष्टि का कोई आधार कोई प्रमाण कभी खुद चिकित्सा संघ ने भी नहीं दिया है।  खैर 

मानहानि , अच्छा जी बाबा रामदेव ने कह दिया वो भी खरा सच सबके सामने कह दिया तो मानहानि हो गई , भारतीय चिकित्स्क संघ को मानहानि का मुकदमा करने की याद तब क्यों नहीं आई जब :-

आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में एक भी बहुत नामी गिरामी काबिल तो छोड़िए कोई छोटा मोटा रेजिडेंट डाक्टर भी सिर्फ इसलिए नहीं जाता क्यूंकि मानवता की सेवा करने की अपनी कसम के विपरीत उसे वहां मोटी कमाई करने का अवसर नहीं मिलता ?? 

आज भी रोज़ाना सैकड़ों ऐसे मामले आते हैं जब बड़े पांच सितारा अस्पतालों से लेकर छोटे नर्सिंग होम तक में शोषण , अत्यधिक पैसे की वसूली , अंग प्रत्यारोपण और इस कोरोना काल में भी ऑक्सीजन और दवाइयों की कालाबाज़ारी जैसे जघन्य अपराधों में खुद चिकित्सक लिप्त होते हैं। 

आखिर ये मानहानि का मुकदमा उन चिकित्स्कों पर क्यों नहीं किया गया जिनकी साँठ गाँठ से , और उनकी लिखी पर्ची से देश के हर अस्पताल के सामने दवाई , एक्सरे , सीटी स्कैन , पैथ लैब के धंधेबाजों की एक पूरी फ़ौज और कुनबा खड़ा रहता है जिनके लिए बीमार , पीड़ित सिर्फ और सिर्फ लुटने के लिए आया एक ग्राहक भर होता है।  

ऐसे दर्ज़नों कारण हैं और जितना अधिक छिद्रांवेषण किया जाएगा कुरूप चेहरा उतना ही निर्दयी और भयंकर दिखाई देगा।  फिर बाबा रामदेव ने तो जुम्मा जुम्मा अभी बमुश्किल दस पंद्रह वर्षों में ही देश और दुनिया को योग , आयुर्वेद , चिकित्सा की ताकत से परिचित कराया है और सिर्फ इतने वर्षों में ही वो आधुनिक चिकित्सा के साम्राज्य के लिए चुनौती बन गए तो ये तो खुद आधुनिक चिकित्सा के लिए शर्म की बात है।  

और खरी खरी सुननी है तो सुनिए , आप डिग्रीधारी (जिनमें अब बहुत से सिर्फ और सिर्फ आरक्षण व्यवस्था के कारण ही इन डिग्रियों को पा सके हैं ) से अधिक तो वे छोटे छोटे चिकित्स्क लोगों की सेवा कर पा रहे हैं उनकी पहुँच आम लोगों तक अधिक है ,जहाँ आप कभी बीमार को देखना तो दूर उन्हें अपने आलिशान अस्पतालों में कभी दाखिल न होने दें।  इन नियमों के बावजूद कि सरकार को इसलिए बाध्यकारी नियम कानून बनाने पड़े।  

आधुनिक चिकित्सा पहले से लेकर आज तक , अन्य तमाम संसाधनों /उपायों /विकल्पों -एक्सरे , सीटी स्कैन , पैथ लैब , और जाने कौन कौन से सहारों के साथ ही आगे बढ़ सकती है वो भी औषधि से लेकर इन तमाम पद्धतियों के साइड इफेक्ट्स के साथ ही।  यानि ज़हर का इलाज़ ज़हर से करने के चक्कर में थोड़ा ज़हर तो निगलना ही पडेगा।  

अब रही बात एड्स और कोरोना जैसे गंभीर व्याधियों में सिर्फ और सिर्फ एलोपैथ के ही कारगर होने रहने की बात तो -महाशय थोड़ा सा ध्यान इस ओर भी दें कि -ये सब बीमारियाँ जो आज लाईलाज होकर मानवता के लिए ख़तरा बन गई हैं उन्हें जन्म और उनका प्रसार भी आपकी ही एक अति उत्साही जमात ने अपने उल जलूल ,सनक से भरे और सबसे अधिक प्रकृति के प्रतिकूल किए जाने वाले चिकित्स्कीय प्रयोगों और अन्वेषणों के कारण ही हुआ है।  

आयुर्वेद उतना ही शाश्वत है , चिरकालीन है जितनी प्रकृति और आप उतने ही क्षणभंगुर हैं जितना विज्ञान।  बात बार पर खुद की ही कही बातों , खुद के ही साक्ष्यों , खुद के ही तथ्यों को -खुद ही चुनौती देकर झुठलाने वाले और फर्क सिर्फ ये हुआ है कि इस बार ये चुनौती खुद योग और आयुर्वेद के एक सिद्धहस्त शिष्य ने दे दी है। 

सोचिएगा कि ये समय क्या यही समय उचित है इन सब बातों के लिए।  और बाबा रामदेव को भी निश्चित रूप से ये विश्वास करना और रखना चाहिए कि आयुर्वेद की श्रेष्ठा प्रमाणित करने के लिए किसी दूसरी चिकित्सा पद्धति को कोसने , तुलना करने की कोई जरुरत नहीं है , पहले भी नहीं थी और अब तो बिलकुल भी नहीं है।  

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