अंबानी-अडानी या किसी भी उद्योगपति में नायक की छवि देखिए, खलनायक की नहीं। राष्ट्र के विकास व निर्माण में उनकी महती भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती।

 
सनद रहे, अमीरी में फ़कीरी का मज़ा लिया जा सकता है, अभावों में भी राजसी ठाठ से जिया जा सकता है, पर ग़रीबी को राष्ट्रीय गौरव का विषय कदापि नहीं बनाया जा सकता! दुनिया में कोई ऐसा देश है जो अपनी ग़रीबी का ढिंढ़ोरा पीटता हो। निवेश तो दूर गरीब मुल्कों को कोई कर्ज़ भी देने को तैयार नहीं होता। पाकिस्तान की स्थिति आपसे छुपी नहीं है।

 
सामाजिक-जीवन में भी दिन के उजाले में पैसे वालों को पानी पी-पीकर कोसने वालों को रात के अँधेरे में मैंने सिक्कों की खनकार पर थिरकते और कलाबाजियाँ खाते देखा है।

 
ग़रीबी को महिमामंडित करने वाली यूटोपिया या वामपंथी नैरेटिव से बाहर आइए। सच यही है कि ग़रीबी एक अभिशाप है। इसलिए नीतियाँ गरीबों के संरक्षण की होनी चाहिए, ग़रीबी की नहीं। ग़रीबी दूर करने का प्रयास करें, गरीब बनाए रखने का नहीं।

 
सच यही है कि पैसों के लिए हमने-आपने-सबने दुनिया को रंग बदलते देखा है, अपने को अपनों से दूर जाते देखा है। फिर भी रौ में आकर हम-आप जैसे भावुक लोग ग़रीबी ज़िंदाबाद जैसे कोरस में सुर मिलाने लगते हैं।
इसलिए हो सके तो अंबानी-अडानी बनिए, और औरों को भी ऐसी ही प्रेरणा दीजिए। इसी में आपकी और देश की भी भलाई है। इसी में हम सबकी भलाई है।

प्रणय कुमार

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