जो हिन्दी बोल पड़ा यू एन में,
देश का मस्तक उठा दिया ,
वो बैठ बस में शांतिदूत ,
लाहौर तक चला गया ,
पोखरण में किया परीक्षण ,
कारगिल में लाज बचाई ,
तेरह दिन , तेरह महीने ,
फिर तीसरी सरकार बनाई ,
शब्द प्रयोग करता था ऐसे ,
मानो सटीकता का हो पैमाना,
कंठ ऐसा ,वाणी ऐसी ,
भावों का यूं गूँजाना ।1।
युद्ध की बेला में जिसने
जन-जन में उत्साह भरा ,
शांति की जब हुई ज़रूरत ,
सद्भावना का संचार करा,
जब भी अटल ने मंच संभाला ,
सिर झटका और माइक टटोला,
संज्ञाशून्य हो सुनते थे श्रोता ,
ऐसा मायावी था बोलनेवाला ,
राज-काज के साथ-साथ वह
कविता भी तो करता था ,
मछली-विस्कि-देश-इमरती से
प्रेम भी इतना करता था ।2।
वाचन करते-करते उसका
तेज़ी से पलकों को झपकाना ,
झटका देना गरदन को,
उठा दो उँगली बात फसाना ,
कल-कल बह रहे वाक्य में
अनायास ही विराम ले लेना,
सांसें रोके राष्ट्र खड़ा है ,
किस ओर मुड़ेगी मंत्रणा ? ।3।
नेहरू-विरोध रहा हो फिर भी
पंडित जी आदर्श रहे,
इन्दु से भी थे मतभेद
पर दुर्गा के समकक्ष कहे,
राव ने भेजा साख बचाने ,
काश्मीर के मुद्दे पर,
जेनेवा में जाल बिछा है ,
अब स्वयं आप पधारें ,हे गुरुवर ! (4)
बाबरी आंदोलन पर थे
हर फैसले में शामिल अटल,
हर मंच से ललकारते ,
कारसेवा को आतुर अटल ,
पर हर मोर्चे पर तैनात
रहनेवाला उस दिन था नहीं ,
छ्ह दिसंबर को अयोध्या में
अटल कहीं भी दिखे नहीं ,
भीड़ भड़का कर लखनऊ से
दिल्ली को वो चले गए,
अपयश थोड़ा मिला अवश्य पर
अधिक नुकसान बचा गए ,
भजन करेंगे आश्वस्त कर ,
अहो, सुंदर षड्यंत्र रचाया ,
सुन लो लखनऊ का भाषण,
मुखौटा था हटाया या लगाया ?
जब गिर गया ढांचा तो उसके
तरीखे पर जा अफसोस जताया ,
उसके गिरने से लेकिन फिर
सबसे ज्यादा लाभ कमाया ।5।
रह-रह आम सहमति ढूँढता ,
राजधर्म का पाठ पढ़ाता,
देशप्रेम से ओतप्रोत वह,
सर्व धर्म का भाव बताता ,
गलत पार्टी में सही आदमी
कहकर उसे छेड़ा जाता,
सहज मुस्कान,शब्द बाणों से
अनवरत वह बढ़ता जाता ,
मेरा तन -मन हिन्दू जीवन,
रग रग हिन्दू परिचय मेरा ,
नाम अटल व स्वर बुलंद है ,
नए भारत का मैं हूँ सवेरा ,
आज हुआ है सूर्यास्त पर
वाजपेयी नहीं खोया है ,
अजर-अमर है कवि वह जिसने
शब्दों को पिरोया है,
कार्गिल की पहाड़ियों पर ,
पोखरण के कण -कण में ,
अटल था और अटल रहेगा,
भारत के जन-गण-मन में ।6।
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