बाबा साहेब डाॅ. भीमराव अम्बेडकर जी ने 70 वर्ष पूर्व संविधान लिखा था, उस समय भी और आज भी अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजातियों की कई जातियां सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी थी, इसलिए ऐसे पिछड़े लोगों के विकास के लिए संविधान में 21.5% आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, कालांतर में पिछड़ों के विकास के लिए हुई इस आरक्षण व्यवस्था का वोट बैंक के रूप में उपयोग कर इसे चीड़ के समान खींच कर 64% कर दिया गया तथा आरक्षण का लाभ बाबा साहेब की मूल भावना को छोडते हुए ऐसे लोग भी ले रहे हैं जो समाज में हर प्रकार से सम्पन्न है, इसके अतिरिक्त अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों में भी अधिकांशतः वे परिवार ही इसका लाभ ले रहे हैं जिनकी दो तीन पीढिय़ां आरक्षण का लाभ लेकर पूर्ण सम्पन्न हो चुकी हैं, आज भी बाबा साहेब की भावना के अनुरूप अनुसूचित जाति और जनजाति के उन लोगों को आरक्षण का फायदा नही मिल रहा है जो वास्तविक रूप से आज भी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े है, बाबा साहेब की भावना के अनुसार ऐसे पिछड़े लोगों को उनके द्वारा बनाए गए संविधान का लाभ तब ही मिल सकता है जब अनुसूचित जाति और जनजाति के वे लोग जो सात दशकों से इसका लाभ लेकर पूर्ण सम्पन्न होकर सामान्य वर्ग की जातियों के समान या उनसे अधिक विकसित हो चुके है वे आरक्षण का लाभ प्राप्त करना छोड़ दे। ऐसा होने से केवल 10 वर्षों में ही अनुसूचित जाति और जनजातियों के शेष पिछड़ों का विकास हो जायेगा जितना पिछले 70 वर्षों में नहीं हुआ होगा। कालांतर में बाबा साहेब की उक्त 21.5% आरक्षण की सोच का दूर्पयोग कर मण्डल कमिशन ने वोट बैंक की राजनीति कर ऐसे लोगों को भी आरक्षण का लाभ OBC के रूप में, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से अधिक 21-25% उन जातियों को दे दिया जो वास्तविकता में तो पूर्ण सम्पन्न थे परन्तु कागजों में पिछड़े थे, ऐसे लोगों ने बाबा साहेब की समानता की सोच के विपरीत आरक्षण का लाभ ले लिया। इसलिए आज बाबा साहेब की 130 वी जयन्ती के अवसर पर पूनः विचार किया जाना चाहिए कि उनके द्वारा बनायें गए संविधान का वास्तविक रूप से पिछड़े, दलित और अस्पृश्य लोगों को लाभ मिल रहा है या नहीं, यदि विश्लेषण करने पर ऐसा उक्तानुसार सही पाया जाता है तो आरक्षण के लिए संविधान के पूनः निर्माण की आवश्यकता है, जिसका अध्यक्ष भी बाबा साहब के समान ही वास्तविक पिछड़ा व्यक्ति ही हो।

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