ना कोई तुलना, ना कोई टक्कर, उन पर निर्भर सारा इतिहास
कवि कहें, संत कहें या मसीहा समाज के, सीमित करने का न करें प्रयास
सम्पूर्ण मानव थे इस धरा पर, देवत्व का सा होता आभाष
भारत ही नही पूरी दुनिया में, रामत्व को दिया प्रखर प्रकाश
ना कोई तुलना ना कोई टक्कर एक अकेले तुलसीदास
देववाणी में थी रामायण, समझना जरा था मुश्किल काम
अकबर का दिने इलाही हिंदुत्व को, दे रहा था बड़ा नुकसान
धर्म निरपेक्षता की कृत्रिम छबि से, धोखा खा रही थी हिन्दू अवाम
अल्लाह हो अकबर की अनिवार्यता से, परेशान थे चिंतक और बुद्धिमान
अनपढ़ अकबर की कुटिल बुद्धिमत्ता से, सत्ता फेला रही थी इस्लाम
समाज की एकता जरूरी थी, जरूरी था बचाना आत्म सम्मान
ऐसे में रामचरित्र लिखकर अवधि में, राम से बढ़ा दिया राम का नाम
राम के चरित्र, सीता के सतीत्व ने, रिक्तता पर लगाया पूर्ण विराम
और भी लिखे ग्रंथ बहुत से, हिंदुत्व को दिलाया नया विश्वास
ना कोई तुलना ना कोई टक्कर एक अकेले तुलसीदास
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