जय श्री राम – आज गौरव दिवस, मथुरा – काशी के बाद मनेगा शौर्य दिवस
6 दिसंबर 1992 :- आज ही के दिन रामभक्तों ने बाबरी ढांचा गिराकर #राममंदिर के निर्माण की आधारशिला रख दी थी।
राजनीतिक दलों की राजनीति के बाद राम मंदिर ने और राम लल्ला ने ना जाने अपने अस्तित्व के लिए कितने विरोध के पड़ाव झेले ये आज की युवा पीढ़ी को छोड़कर हमसे पहली आबादी को सब पता है राजनीतिक दल के ये नेता कभी भगवान श्री राम की मर्यादा पर सवाल उठाते है तो कभी उनके अस्तित्व पर…. सपा के उस समय के दिग्गज नेता आजम खान ने तो भगवान श्री राम के जन्म को लेकर माता कौशल्या पर भी अशोभनीय टिप्पणी कर दी थी और वो एक दौर था जब हर कोई आगे आने और राजनीति चमकाने के साथ साथ अल्पसंख्यकों का हमदर्द बनने के लिए भगवान श्री राम पर अनर्गल टिप्पणी करने से नहीं कतराता था और जिससे ना केवल सामाजिक सौहार्द बिगड़ता बल्कि हिंदुओ की धार्मिक भावनाओं का भी खिलवाड़ होता था 1992 के बाद की राम मंदिर यात्रा में एक बालक के रूप में कार्यकर्ता रहे श्री योगी आदित्यनाथ जी को जानने वालों को शायद ही अंदेशा हो कि ये व्यक्ति आगे जाकर भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण की नींव रखने में मुख्य भूमिका में रहेगा, वर्तमान सरकार का अपना एक किरदार रहा है जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण में फैसला जल्दी लाने व सौहार्द बनाए रखने में मददगार साबित हुए हो, हिंदू संगठनों में वीएचपी, बजरंग दल, आरएसएस की भी मुख्य भूमिका रही जिन्होंने मंदिर निर्माण में कानूनी कार्यवाही पर पूरी नजर रखी.
हिन्दुओं की मान्यता है कि श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर विराजमान था जिसे मुगल आक्रमणकारी बाबर ने तोड़कर वहाँ एक मस्जिद बना दी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में इस स्थान को मुक्त करने एवं वहाँ एक नया मन्दिर बनाने के लिये एक लम्बा आन्दोलन चला। 6 दिसम्बर सन् 1992 को यह विवादित ढ़ांचा गिरा दिया गया और वहाँ श्री राम का एक अस्थायी मन्दिर निर्मित कर दिया गया।
राम जन्मभूमि विवाद का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार से है:
• 1528 में राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था।
•1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ।
•1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।
•1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया।
•1986 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
•1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की।
•6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई। परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं। उसके दस दिन बाद 16 दिसम्बर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।
लिब्रहान आयोग को 16 मार्च 1993 को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 17 साल लगाए।
•1993 में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था। मगर कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है। जब मलिकाना हक़ का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी। हाल ही में केंद्र की और से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है।
•1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी। इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे 1997 में कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया।
•2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
•2003 में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
•30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 700 पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा।
जांच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
•31 मार्च 2009 को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने अर्थात् 30 जून तक के लिए बढ़ा गया।
•2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
उच्चतम न्यायालय ने 7 वर्ष बाद निर्णय लिया कि 11 अगस्त 2017 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और 70 वर्ष बाद 30 मार्च 2016 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित अर दिया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि 5 दिसंबर 2017 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि ५ फरवरी 2018 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी।
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