वैचारिक त्रुटि
व्यवहार मनोविज्ञान में विभिन्न विषय आते हैं, जो हमारे सोचने के कौशल को निष्क्रिय या सक्रिय रूप से प्रभावित करते हैं। ऐसी ही एक विषय है – मौलिक आरोपण त्रुटि । व्यक्तिगत रूप से कहें तो, यह एक ऐसी विशेषता है जिसका हम सभी लाभ उठाते हैं | इस मौलिक आरोपण त्रुटि के अनुसार, हम दूसरों को उनके व्यक्तित्व के आधार पर आंकते हैं। लेकिन हम खुद को वर्तमान स्थिति के आधार पर आंकते हैं। यह एक पूर्वाग्रह जैसा है और उस स्थिति के आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है। इसके पीछे का कारण सरल है- स्वार्थ और अंतर्मुखता | और, हम सब जानते हैं की यहाँ हर कोई कुछ हद तक तो अहंकारी है ही।
हम कुछ सरल उदाहरण के माध्यम से मौलिक आरोपण त्रुटि को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं | यदि किसी और को कहीं पहुचने में देर हो जाती है, तो आप मानते हैं कि वे आलसी हैं। लेकिन जब आपको देर हो जाती है, तो आप अपने आप से कहते हैं कि वह एक बुरा दिन है। जब आप किसी पार्टी में जाते हैं, तो आप उन लोगों की आलोचना करते हैं, जो बचे हुए भोजन को कूड़ेदान में फेंक देते हैं, लेकिन हम उस बचे हुए खाने को भूल जाते हैं जो हम खुद टेबल के नीचे छिपाकर चुपके से वहां से निकल जाते हैं। हम ऐसी किसी भी स्थिति के लिए खुद को दोष नहीं देते हैं। लेकिन हम आत्म-अवशोषितहो कर दूसरों को आंकते हैं | हम आमतौर पर इन चीजों को अनजाने में करते हैं, लेकिन दु:ख की बात यह है कि ये एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है। हम अपनी कमियां कभी नहीं देखते। इसके अलावा, हम हमेशा दूसरों की टांग खींचने के अवसरों की तलाश करते हैं। हम किसी को दुखी करने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
यह मौलिक आरोपण त्रुटि अक्सर छात्रों द्वारा कक्षा में भी प्रदर्शित की जाती है। वे आमतौर पर अपने शिक्षकों द्वारा क्रोध की अभिव्यक्ति के पीछे के कारणों को कम करके आंकते हैं। सामान्यतः विद्यार्थी यह मान लेते हैं कि उनके शिक्षक के क्रोधित होने का मुख्य कारण यह है कि उनका स्वभाव गंभीर है। लेकिन वास्तव में, छात्रों द्वारा की जाने वाली गतिविधियाँ जैसे दुर्व्यवहार, अध्ययन में प्रयास की कमी, या जानबूझकर उकसाना ही सबसे पहले शिक्षक को गुस्सा दिलाता है।
भले ही मौलिक आरोपण त्रुटि में ही एक शब्द “त्रुटि” है, फिर भी हम इस तरह की सोच को प्रदर्शित करते हैं क्योंकि यह एक मानसिक शॉर्टकट के रूप में कार्य करता है। यह हमें वास्तविकता की परवाह किए बिना तेजी से और आसानी से निर्णय लेने की अनुमति देता है। अत: हमेशा तर्कसंगत रूप से सोचें, और अपने अहंकार को हावी ना होने दें |
डॉ आर के पांचाल
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