अपने पिछले ब्लॉग में मैंने बताया की किस तरह वामपंथियों ने सती प्रथा के नाम पर हमारे धर्म में नारी सम्मान को ही हमारे विरुद्ध शस्त्र बनाया, आज एक और विषय की चर्चा करते हैं, अस्पृश्यता हमारे धर्म में आरम्भ से रही है इसे सिद्ध करने के लिए वामपंथी जिस हथियार का सबसे बड़ा प्रयोग करते हैं वो है एकलव्य, भारत का इतिहास गुरु और शिष्य की पारम्परिक कथाओं से भरा पड़ा है, ऐसे में एक महान गुरु का जातिवादी होना सभी को खल जाता है, सोचिये कोई कैसा गुरु होगा जो गुरुदक्षिणा में अपने शिष्य का अंगूठा मांग ले? वो भी केवल इस लिए क्यूंकि वो शिष्य एक भील का पुत्र था? हमारे मन में घृणा उत्पन्न होना स्वाभाविक है, अब तनिक ठहरिये और सोचिये की ये कथा हम अपनी प्राथमिक शिक्षा की किताबों में क्यों पढ़ते हैं? हमारे बचपन में ही हमारे मन में इस विषय को डाल दिया जाता है जिसके चलते पूरे जीवन हम समाज में हो रही कई घटनाओं में जाति खोजने लगते हैं, आजकल मीडिया भी घटनाओं को दिखाते समय जाति अवश्य देखता है, क्यूंकि मीडिया में वामपंथियों का एक बड़ा वर्ग कार्यरत है, आप उन्हें सरलता से पहचान सकते हैंl

हम इसपर कभी तर्क नहीं करते क्यूंकि हम अपने धर्मग्रंथों का अध्ययन नहीं करते, आइये जानते हैं कि एकलव्य था कौन….

एकलव्य का वास्तविक नाम अभिद्द्युम्र था, उसके पिता का नाम हिरण्यधनु था जो निषादों के राजा थे, श्रृंगबेर नाम के राज्य में उनके पिता का शासन हुआ करता था, उसके पिता कोई मामूली भील नहीं बल्कि उस समय के सबसे ताकतवर राजा जरासंध के सेनापति थे, वामपंथियों ने ये बात किन कारणों से छुपाई अभी आपको समझ आ जायेगा, अब आप तर्कसंगत होकर सोचिये की जरासंध जो की श्रीकृष्ण का सबसे बड़ा शत्रु अर्थात पांडवों का भी शत्रु था, उसका एकलौता पुत्र, शत्रु देश का युवराज चोरी से किसी के राज्य में राजकुमारों के शिक्षा संसथान के पास पाया जाए वो भी सशस्त्र तो क्या होगा? और क्यूंकि एकलव्य ने अपना परिचय दिया था इसलिए द्रोण जानते थे की एकलव्य भी एक राजपुत्र ही है और द्रोणाचार्य हस्तिनापुर में पितामह भीष्म से पहले ही अनुबंध कर चुके थे की वो हस्तिनापुर राजवंश और अपने पुत्र के अतिरिक्त किसी और वंश के राजकुमार को शिक्षा नहीं देंगे, जब एकलव्य धनुर्विद्या में निपुण हो गया तो द्रोणाचार्य ने उसकी धनुर्विद्या की अंतिम परीक्षा ली और उसका अंगूठा गुरुदक्षिणा में मांग लिया, और उसे उस विधा को प्राप्त करने का आदेश दिया जिसमें बाण चलते समय अंगूठे का प्रयोग नहीं किया जाता, इस प्रकार न केवल उन्होंने एकलव्य का जीवन बचा लिया बल्कि आधुनिक धनुर्विद्या का आरम्भ भी उसी दिन से हुआ, इस घटना ने एकलव्य को इतिहास में अमर कर दिया।

वामपंथियों ने इस कथा को हमें प्राइमरी में पढ़ाया क्यूंकि प्राइमरी का बच्चा तर्क नहीं करता, वो महाभारत में इस घटना को नहीं ढूंढ सकता, बचपन के इस झूठ को हम जीवनपर्यन्त नहीं भूलते, एक जाति विशेष के प्रति घृणा उत्पन्न करने, इतिहास को कलंकित करने और हमारे समाज को नीचा दिखाने के लिए वो इन कथाओं का प्रयोग करते हैं, हालांकि वो महाभारत और रामायण को काल्पनिक मानते हैं, पर अपनी सुविधा अनुसार एकलव्य, कर्ण, शबरी और शम्बूक के उदहारण देकर अपने ज्ञानी होने का झूठा प्रमाणपत्र भी स्वयं बांटते फिरते हैं।

आप जैसे ही एकलव्य का भेद खोलेंगे वो कर्ण की तरफ भागेंगे, कर्ण को जैसे ही आप सूतपुत्र से क्षत्रिय सिद्ध करेंगे वो शबरी की शरण में होते हुए शम्बूक पर समाप्त हो जाएंगे और जब घिर जाएंगे तो आपका, या आपके समाज का, या स्वयं आपका अपमान कर देंगे, जिस से की आप बौखला जाएँ और उन्हें बच निकलने का अवसर मिल जाए।

आपसे अनुरोध है की अपने बच्चों से उस महान आधुनिक धनुर्विधा के जनक, अभिद्द्युम्र का परिचय अवश्य करवाएं जिसे वामपंथियों ने ज़बरदस्ती सैकड़ों वर्षों से एक भील बनाकर, बेचारा दिखाकर उसका निरंतर शोषण किया है।

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