(शनिवार, २१ नवंबर २०२०)
परसो टीवी चैनल्स ने आपको बताया कि भारतीय सेना ने फिर एक बार पीओके में घुसकर हमला किया है और भारतीय सेना को कहना पड़ता है कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई है तो फिर गलती किसकी निकालें? टीवी चैनल्स की? नहीं. टीवी चैनल्स को ये समाचार भेजनेवाली न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की.
प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया किसी जमाने में अत्यंत विश्वसनीय और जिम्मेदार समाचार संस्था मानी जाती थी. पीटीआई के संवाददाता देशभर में हैं. कुछ जगहों पर फुलटाइम वेतनभोगी और कुछ जगहों स्ट्रिंगर्स यानी पार्ट टाइम या फुटकर काम करने वाले पत्रकार. हर राज्य के छोटे छोटे सेंटर्स से आनेवाले समाचार प्रादेशिक मुख्यालय पर जुटते हैं. उन्हें ठीक से लिखा जाता है और फिर दिल्ली मुख्यालय में जाते हैं. वहॉं उनका चयन किया जाता है, एडिटिंग होती है, पुनर्लेखन होता है. उसके बाद देश भर में जिन जिन लोगों ने पीटीआई की सर्विस सब्सक्राइब की है, उन सभी को उनकी मांग के अनुसार समाचार भेजे जाते हैं. पहले टेलीप्रिंटर द्वारा भेजे जाते थे, इंटरनेट आए और फिर आपके कंप्यूटर में दिखने लगे. देश के तकरीबन सभी अखबार- सभी भाषाओं के-पीटीआई के ग्राहक होंगे. इसके अलावा अकाशवाणी, दूरदर्शन, शेयर बाजार, शेयर मार्केट के ब्रोकर्स, छोटे बडे उद्योगपति और टीवी चैनल्स इत्यादि पीटीआई की सर्विस सब्सक्राइब करते हैं जिसकी मासिक या वार्षिक फीस भरनी होती है.
पी.टी.आई. चार बार छलनी से छानकर समाचार प्रसारित करती है इसीलिए सभी को उस पर काफी विश्वास है. लेकिन अब पीटीआई का ऐसा स्तर नहीं रहा. पीओके में घुसकर भारतीय सेना ने फिर एक बार कैसा पराक्रम किया है जैसी गलत साबित हो चुकी ख़बर से इस बात का प्रमाण आपको मिल चुका है. भारतीय सेना की ओर से इस समाचार को लेकर जब स्पष्टीकरण दिया गया तब सभी को पता चला कि पीटीआई ने समाचार देने में बहुत बड़ा घोटाला किया है.
शेखर गुप्ता जैसे वामपंथी और हिंदूद्रोही पत्रकार ने ऐसे गलत समाचार देने के लिए टीवी चैनल्स की खूब खबर ली. वैसे शेखर गुप्ता को ऐसे मामलों में किसी की खबर लेने का कोई अधिकार नहीं है. वे जब इंडियन एक्सप्रेस' के संपादक थे तब उन्होंने भारतीय सेना में विद्रोह होने का भडकाऊ और देशद्रोही समाचार फ्रंट पेज पर मोटे अक्षरों में छापा था, जो स्वाभाविक रूप से बिलकुल गलत और निराधार था. शेखर गुप्ता की एक पत्रकार के नाते कितनी विश्वसनीयता रह गई है, ये हर कोई जानता ही है फिर भी
एडिटर्स गिल्ड’ के वर्षों तक वे मुखिया रह चुके हैं.
पीटीआई के कारण टीवी चैनल्स बिना किसी गलती के ही निशाने पे आ गए. पीटीआई के अलावा एक समाचार एजेंसी थी- यूएनआई- युनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया जिसका अब स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है. अब तो एपी-एएफपी- राइटर्स जैसी विदेशी न्यूज एजेंसियॉं भी भारत के समाचार भारतीय अखबारों को पहुंचाने लगी हैं. पीटीआई सहित ये सभी समाचार संस्थाएँ टिपिकल लेफ्टिस्ट विचारधारा रखती हैं. वामपंथी रंग में रंगी उनकी न्यूज सेवा भारतीय जनता का-हम जैसे पाठकों का तथा टीवी दर्शकों का भारी अहित कर रही हैं.
दो-तीन ताजातरीन उदाहरण लेते हैं. उससे पहले एक स्पष्टता करना चाहता हूँ. ये कहना आसान नहीं है कि इन समाचारों को कौन सी न्यूज एजेंसी ने भारत के विरुद्ध वामपंथी लहर दी है लेकिन किसी न किसी एजेंसी इसके लिए कारणीभूत होगी ही. मोटे तौर पर तो पीटीआई ही ऐसे कांड करने के लिए मशहूर है. लेकिन आज कल अधिकतर अखबार जो न्यूज देते हैं उसका सोर्स कौन सा है, ये कहने के बजाय कोष्ठक में (एजेंसी द्वारा) इतना ही लिखते हैं. पहले कोष्टक में स्पष्ट रूप से लिखा जाता था कि (पी.टी.आई.) या (यू.एन.आई.) और यदि अखबार के संवाददाता द्वारा दिए गए समाचार में पीटीआई की ही न्यूज के बारे में भेजा गया कोई नया मुद्दा शामिल होता तो लिखा जाता कि,‘इस दौरान, पीटीआई के अनुसार…’ इस तरह जो न्यूज आती उसके लिए कौन जिम्मेदार है, यह पाठकों के मन में स्पष्ट हो जाता था. प्रिंट मीडिया की घट रही विश्वसनीयता में और कमी करनेवाला यह भी एक पहलू है कि वे समाचार के स्रोत की जानकारी पाठकों को नहीं देते.
न्यूज़ एजेंसी द्वारा या फिर अपने अखबार के पत्रकारों द्वारा समाचारों को वामपंथी विचारधारा में घोलकर पाठकों के सामने रखने का निंदनीय कार्य भारत ही नहीं, यू.के-यू.एस.ए. में भी वर्षों से चल रहा है. निर्दोष पाठकों को चाशनी में घुली भाषा में लिखे गए इन समाचारों की सच्चाई के प्रति तनिक भी संदेह न हो, इतने (कु)तार्किक ढंग से समाचार लिखे जाते हैं.
आइए पिछले दो-तीन दिनों में छपे समाचारों पर नज़र डालें. लद्दाख में चुनाव होगा तो भाजपा फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फरेंस पार्टी का साथ लेगी, इस संबंध में समाचार आए थे. आपको आघात लगता है कि भाजपा को फारूख अब्दुल्ला की क्या ज़रूरत है? थोड़ा सा कुरेदने पर आपको पता चलेगा कि भाजपा ने कोइ बयान नहीं दिया है लेकिन फारुख अब्दुल्ला ने घोषणा की है कि कश्मीर में भले ही हम भाजपा के खिलाफ हों लेकिन लद्दाख में हम भाजपा का विरोध नहीं करेंगे. ऐसी घोषणा करने के दो कारण हो सकते हैं. एक तो फारुख अब्दुल्ला को पता है कि लद्दाख में भाजपा के सामने उनकी कोई क्षमता नहीं है. और दो, कश्मीर सहित भारतीय जनता के मन में देशद्रोही के रूप में बनी अब्दुल्ला फैमिली पहचान को धोया जा सके.
मोदी विरोधी मीडिया लॉबी ने फारुख अब्दुल्ला की इस घोषणा के ट्विस्ट करके प्रसारित किया: भाजपा लद्दाख के चुनाव में फारूख अब्दुल्ला का साथ लेगी. मोदी प्रेमी, भाजपा प्रेमी लोगों को उत्तेजित करने की मीडिया की इस चाल को आप समझ सकते हैं?
तीन दिन पहले समाचार आए कि भाजपा की सांसद रीता बहुगुणा के पुत्र मयंक की छह वर्ष की बेटी दिवाली में पटाखे से जल गई और उसकी मौत हो गई. रीता बहुगुणा के पिता हेमवतीनंदन बहुगुणा किसी जमाने में यू.पी. के मुख्य मंत्री थे और चरण सिंह प्रधान मंत्री हुआ करते थे तब वे कैबिनेट में वित्त मंत्री थे. रीता बहुगुणा चार साल पहले कांग्रेस से भाजपा में आईं और २०१९ में इलाहाबाद से लोकसभा में चुनी गईं.
दिवाली में पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के लिए सेकुलर लॉबी हर साल जद्दोजहद करती है. प्रदूषण का मुद्दा आगे रखकर सफल भी हो जाती है. रीता बहुगुणा की पौत्री की जल जाने से मौत होने की करुण घटना को वामपंथी मीडिया ने पटाखों और दिवाली से जोड दिया. असलियत क्या थी? त्यौहार के अवसर पर दिए की लौ से छोटी बेटी के कपड़े ने आग पकड ली और देखते देखते उसका कोमल शरीर ६० प्रतिशत से अधिक जल गया. अस्पताल में इलाज के दौरान वह भगवान को प्यारी हो गई. ऐसी दुखद घटना को `पटाखे से मृत्य हुई’ ऐसा विकृत रूप देने से भी वामपंथी मीडियावाले हिचकिचाते नहीं हैं.
पंडित बिरजू महाराज कथ्थक नृत्य के एक महान कलाकार हैं. भाजपा की सरकार ने उन्हें बेघर कर दिया – ऐसी खबर पढकर आपको आघात लगेगा या नहीं? बिलकुल लगेगा. एक आदरणीय कलाकार जिन्होंने सारा जीवन कला की साधना की, उनके सिर से उम्र के इस पडाव पर छत्र छीन लेने का काम शैतान ही करता है.
भाजपा ने ऐसा शैतानी भरा कृत्य किया? नहीं. कांग्रेस के जमाने में कांग्रेस की खुशामद करनेवाले कलाकार तथा कई तथाकथित बुद्धिजीवियों को तीन-तीन वर्ष की अवधि के लिए घर आबंटित किए गए थे जिससे एक हजार दिन की अवधि में वे निश्चिंत होकर काम करके स्थिर हो जाएं और फिर अपना घर ले सकें या फिर किराए की व्यवस्था कर सकें. लेकिन बडे पैमाने पर कलाकारों ने इन घरों को हजम कर लिया और दस-बीस-तीस वर्ष तक घर खाली नहीं किए.
पं. बिरजू महाराज ने अपनी मेहनत और प्रतिभा से करोडो रूपए कमाए हैं और दिल्ली में ही उनके एक से अधिक घर हैं. भाजपा सरकार ने उनसे सरकारी आवास वापस ले लिया तो उसमें गलत क्या है?
भाजपा के नेता खुद जिन नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं, उसी का ये अमलीकरण था. हाल ही में बिहार के चुनाव के बाद भाजपा के सुशीलकुमार मोदी को दोबारा डिप्टी सीएम नहीं बनाया जाएगा, ऐसी घोषणा होते ही कुछ ही घंटों में उन्होंने सरकारी निवास स्थान वापस दे दिया. इसके उलट चारा घोटाला करके अभी जेल में चक्की पीस रहे भ्रष्टाचार शिरोमणि चालू यादव (ये टाइपिंग मिस्टेक टाइपसेटर ने की है और उसे सुधारने का मन नहीं कर रहा है) के बिगड़ैल राजनेता पुत्र तेजस्वी यादव ने अपना सरकारी निवास स्थान दो साल तक खाली नहीं किया था और तब सुप्रीम कोर्ट को आदेश देना पडा था. स्व. अरुण जेटली ने तबीयत के कारणों से केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के कुछ दिनों बाद ही भव्य सरकारी बंगला खाली कर दिया और अधिकारियों को सौंप दिया था.
मीडिया किस तरह से आपको गुमराह करती है, हिंदुओं का हित सोचनेवाले नेता-राजनीतिक दल-संस्थाएं आपकी निगाह उतर जाएं, इसीलिए किस तरह से समाचारों को ट्विस्ट किया जाता है, ये आपने देख लिया. भविष्य में आप अपने आदर पात्र व्यक्तियों पर से विश्वास टूटने वाली कोई बात पढें, सुनें तब इस लेख को याद कीजिएगा.
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