जी हाँ ! सिर्फ दो पंक्तियों में ही पिछले 90 दिनों से किसानों के नाम पर विपक्षियों और विरोधियों द्वारा किए जा रहे धरने , प्रदर्शन को समझा समझाया जा सकता है .

फसल के लिए महत्वपूर्ण समय अपने खेत और खेती को यूँ ही छोड़कर कुछ किसान राजनेताओं के बहकावे , उकसावे में पिछले तीन महीने से बहकावे ,उकसावे में पिछले तीन महीने से जो रूठने -मनाने का हठ लट्ठ का मजमा लगाकर जो भी किया जा है तो अब थोड़ा रुक कर , ठहर कर यह देखना सोचना तो बनाता ही है कि इससे हासिल क्या हुआ ??

वृद्ध आंदोलनकारियों की मृत्यु ,किसानों की स्वच्छ बेदाग छवि को क्षति कुछ सिक्खों द्वारा लालकिले सहित पूरी राजधानी में हिंसा उपद्रव किए जाने के कारण लोगों द्वारा गुस्से से उन्हें दिया गया खालिस्तानी का तमगा , रेहाना , ग्रेटा और मियां खलीफा जैसी विवादित हस्तियों को पैसे देकर हासिल किया समर्थन से आंदोलन /संघर्ष की गंभीरता में आया हल्कापन और टूलकिट कांड के खुलने से राष्ट्रविरोधियों का समर्थन मिलने के आरोप , कुल मिलाकर यही सब वो सब कुछ , वो उपलब्धियां ही हैं जो इन आन्दोलनजीवियों के हिस्से में आई है .

देश के सिर्फ दो प्रदेशों के आढ़ती और ठेकेदार , कुछ किसान राजनेताओं के साथ मिलकर , पूरे देश द्वारा बहुमत से चुनी गई सरकार द्वारा संसद से पारित कानून को पूरी तरह से खत्म किए जाने की जिद पर बैठे हैं जो न ही प्रायोगिक है और न ही न्यायसंगत .

तिस पर तुर्रा ये कि आंदोलन कम अब ये राजनीति , अराजकता , हठधर्मिता ज्यादा दिख रही है और समय बीतने के साथ साथ ये सब कुछ देश के लोगों को समझ भी आ गया है .

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