किसान के रूप में धरने पर बैठे पूंजीपति चाहते हैं कि सारी फसलों को सरकार के द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाए। देश की कुल टैक्स आय 16 लाख करोड़ है। यदि इनकी मांगे मान ली जाएं तो देश का 25 लाख करोड़ रूपया फसल खरीदने में ही खर्च हो जाएगा। बाकी जो गरीब, मजदूर, फैक्ट्री वर्कर, बच्चे, बूढ़े, बीमार और छोटे, मझोले किसान हैं उनका क्या होगा? यदि इन तथाकथित किसानों की बात मान ली जाए तो भारत फिर से 1970 के उस युग में चला जाएगा जहां हमें अमेरिका और कनाडा से कृषि उत्पाद खरीद कर अपने लोगों का पेट भरना पड़ता था। देश के केवल 6% किसानों को नयून्तम समर्थन मूल्य यानि की MSP नसीब होता है। ये मजबूत, पूंजीपति किसान अपने फसल को MSP पर बेच कर छोटे और मँझोले किसानों का हक मार रहे हैं।  इन  राजनीतिक रंगे सियारों के आंदोलन की बागडोर मोदी विरोधियों के हाथ में है। 2014 से और कोई हथकंडा काम नहीं आ रहा तो तथाकथित किसान को सामने करके पीछे से छदम युद्ध किया जा रहा है। यह एक खतरनाक प्रयोग है। इसमें शाहीन बाग की जिहादी दादियां और देशद्रोही ताकतें अपनें हाथ सेक रही हैं। यह इस बात से साफ हो जाता है कि कनाडा, ब्रिटेन और स्पेन के मंत्री इस पर अपने कमेंट दे रहे हैं। इस विरोध के तार ना सिर्फ आईएसआई बल्कि चीन तक पहुंचते हैं।

किसान को भूमि का संरक्षक कहा गया है। पंजाब में पानी का स्तर लगातार नीचे गिरा है. अब इसे एक सूखा क्षेत्र माना जाता है. वहां पर गेहूं और धान की अतिशय खेती करना किसी भी भूमि संरक्षण के मानकों के खिलाफ है। इसके अलावा जितनी मात्रा में गेहूं और धान, जिसकी आज देश को आवश्यकता नहीं है, उसे आप सरकार को बंधक बनाकर बाजार से ऊंचे दाम पर अपनी राजनीतिक ताकत के बल पर बेचना चाहें तो इसे एक प्रकार का भूमि विरोधी अतिवाद ही कहा जाएगा। सरकार का पैसा किसका है? सरकार कोई मजदूरी तो करती नहीं है? पैसा है देश के करदाता का यानी आपका और हमारा। अगर हम इस बात का विरोध नहीं करेंगे तो हमारे जरूरी उपयोग के मूलभूत सुविधाओं जैसे की सड़क,बिजली, पानी, स्कूल, एयरपोर्ट, रेल इन सब का जो विकास हम देखना चाहते हैं वह हमें कतई नहीं मिलेगा। क्योंकि सारा पैसा पंजाब के पूंजीपति किसानों के जेब में पहुंच जाएगा। इनमें से बहुत सारे पूंजीपतीं किसान हैं जो जमीन बटाई पर देकर कनाडा, ब्रिटेन और दिल्ली जिमखाना में शैम्पेन पीते हैं। फसल होने पर सरकार से दाम लेकर वापस अपनी सम्पन्न जिंदगी बिताने वापस आ जाते हैं। यही लोग ज्यादा हल्ला मचा रहे हैं। आज भी इनको इनकी प्रतिभागिता से कहीं ज्यादा पैसा दिया जा रहा है और मेरे हिसाब से यह इनको और आलसी बना रहा है। बहुत सारे कनाडा, ब्रिटेन और दिल्ली जिमखाना में बैठे हुए तथाकथित किसान इस व्यवस्था का अनुचित लाभ उठा रहे हैं। वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान के छोटे और मझोले किसान जो खेतों में कमरतोड़ मेहनत करते हैं, उनको यह लाभ नहीं मिल पा रहा। यह हमें निर्धारित करना है कि क्या हम एक देश के रूप में एक छोटे पूंजीवादी, सुविधाभोगी वर्ग से डर जाएंगे और उनकी बातों में आकर देश में आगे कोई कृषि सुधारवादी नीति लागू नहीं करेंगे।

21वीं सदी में संरक्षण वादी नीतियों का कोई ज्यादा उपयोग नहीं है। वो भी उस फसल के लिए जिसका जरूरत से ज्यादा उत्पादन हो रहा है। जिस प्रदेश में नए तरीके के फसलों का प्रयोग किया गया जैसे कि ड्रैगन फ्रूट, खजूर, लीची,अन्य तरह के उत्पाद वही किसान संपन्न हुआ है। इन क्षेत्रों में किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की रेवड़ी के भरोसे नहीं बैठा है। सड़क नहीं बंद कर रहा है, ना ही दिल्ली को बंधक बनाने की कवायद में लगा है। जिओ का बहिष्कार नहीं कर रहा है। जो जिओ के बहिष्कार कर रहे हैं उनके अपने घर वाले फ्री डाटा के लिए जिओ में लगे रहते होंगे। पंजाब के पूंजीपति किसानों को अपने कनाडा ब्रिटेन और दिल्ली जिमखाना के प्रवास को छोड़कर खेतों में वापस आना चाहिए और उन्नत किसानी करने की ओर बढ़ना चाहिए। अगर आप उन्नत किसानी करके खेती का बाजारीकरण कर पाए यानी अपने उत्पाद को पैकेज करके बाजार में बेच सकें तो ना सिर्फ आपकी इनकम सौ गुनी तक बढ़ेगी अपितु आप दूसरे देशों के ब्रांड का भारत में प्रभाव भी कम कर सकेंगे। पतंजलि, अमूल, सुला के अनुभव से कुछ सीखिए। 

इसका उदाहरण साधारण है कि हमारे देश में पिज़्ज़ा, पास्ता, नूडल्स जैसे गेहूं से बने उत्पादों का बहुत बड़ा बाजार है। तो अगर पंजाब के यह पूंजीपति किसान अपने गेहूं को पिज़्ज़ा,पास्ता,नूडल्स बनाकर बेचें तो उन्हें एमएसपी से 100 गुना से ज्यादा कमाई होगी। और इस क्रम में वह किसानी के उन्नत तरीकों का इस्तेमाल करके सस्यावर्तन यानी रोटेशन ऑफ क्रॉप्स भी कर सकेंगे. और जो फॉर्म फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स लगेंगे उन में रोजगार के अवसर बनने से बहुत सारे किसानों के परिवार के लोगों को रोजगार भी मिलेगा। और अगर आप कनाडा और ब्रिटेन में अपने उत्पाद को एक्सपोर्ट कर पाए तो फिर तो बल्ले बल्ले!! तो दिल्ली को बंधक बनाने, जिओ का बहिष्कार करने और देश को धमकी देने से अच्छा है कि आप अपने गिरेबान में झांके, खेतों में उतरे, मेहनत करें और बाकी प्रदेश के छोटे और मझोले किसानों के मेहनत और जिजीविषा से संदेश लेते हुए या तो उनके जैसी भूमि संरक्षण, सस्यावर्तन और खुले बाजार में सामान बेचने की जहमत पाले नहीं तो अपने आप को किसान छोड़कर ‘पूंजीपति’ कहना शुरू करें।

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