ताज़ा समाचार के अनुसार सीरम इस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया के पुणे स्थित टर्मिनल 1 में भीषण आग लगी जिसमे झुलसकर ५ लोगों की दर्दनाक मृत्यु हो गई , ये आग टर्मिनल के चौथी और पांचवीं मंज़िल पर लगी, ये निर्माणाधीन ईमारत थी अतः यहाँ न कोई वैक्सीन रखी थी और न ही ये प्लांट का हिस्सा थी। मौके पर १० दमकल की गाड़ियां पहुँच चुकी हैं और आग बुझाने का काम निरंतर जारी है। इस घटना ने एक बार फिर लोगों को काफी डरा दिया, अभी जांच की जा रही है इसलिए आग के कारणों का कुछ पता नहीं चल पाया है।

आइये जानते हैं की भारतीय समाज में आज की इस घटना से उत्पन्न भय का कारण क्या है?

साज़िश का शिकार होते भारतीय वैज्ञानिक

दरअसल परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) से मिली जानकारी बताती है कि 2009 से 2013 के दौरान दस परमाणु कर्मियों की रहस्यमयी तरीके से मौत या हत्या हुई है। वर्ष २०१० में वैज्ञानिक एम पद्मनाभन (48 वर्ष) का शव उनके उच्च सुरक्षा से लैस कॉलोनी में स्थित उन्ही के घर में पाया गया था, 2012 में पुलिस ने अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी, इसमें पद्मनाभन की हत्या की बात तो उसने मानी लेकिन कहा कि इस मामले की जांच आगे बढ़ाने के लिए उसके पास पर्याप्त सबूत नहीं है. यह मामला इस रिपोर्ट के बाद खत्म हो गया।

14 जून, 2009 में कर्नाटक स्थित कैगा परमाणु रिएक्टर से जुड़े एक सीनियर इंजीनियर लोकनाथन महालिंगम की लाश काली नदी में पाई गई थी। वे हफ्तेभर पहले रहस्यमय तरीके गायब हो गए थे, पुलिस के मुताबिक यह मामला आत्महत्या का था लेकिन महालिंगम के परिवार के सदस्य इससे सहमत नहीं हैं, उनका मानना है कि महालिंगम का अपहरण कर उनकी हत्या की गई है. पुलिस इस केस को भी बंद कर चुकी है।

साल 2013 में विशाखापत्तनम के पास रेलवे लाइन पर केके जोश और अभीश शिवम के शव पाए गए थे। ये दोनों इंजीनियर देश की पहली स्वदेसी परमाणु पनडुब्बी अरिहंत के निर्माण से जुड़े रहे हैं।

साल 2011 में बार्क की एक वैज्ञानिक उमा राव की मौत का मामला भी चर्चा में रहा है, इसके बारे में याचिका दावा करती है कि पुलिस ने राव की मौत को आत्महत्या बताया था जबकि उनके परिवारवालों का कहना है कि यह बात मानने की उनके पास एक भी वजह नहीं है।
कोठारी ने अपनी याचिका में इन हत्याओं के पीछे साजिश की आशंका जताई है, इसके लिए फॉरेंसिक विशेषज्ञों की राय का जिक्र करते हुए कहा गया है कि संदिग्ध हत्या से जुड़े इन सभी मामलों में उंगलियों के निशान और ऐसे गवाह गायब हैं जो पुलिस जांच को सही दिशा दे सकें. याचिका के मुताबिक ये हत्याएं पेशेवर तरीके से अंजाम दी गई हैं और अमूमन विदेशी खुफिया एजेंसियों को इनमें महारत हासिल होती है।

शास्त्री जी की हत्या सबने स्वीकारी पर जांच किसी ने नहीं की

वैज्ञानिकों के अतिरिक्त आप स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री को कैसे भूल सकते हैं जिन्हे एक षड्यंत्र के तहत ताशकंत में मार दिया गया और तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने केवल जनता की सुहानुभूति ली पर कभी इस षड्यंत्र की जांच नहीं करवाई। उनका नीला पड़ा शरीर और गायब हो चुका रसोइया स्वतः ही सिद्ध कर रहे थे की भारत को आत्मनिर्भर बनाने का प्रथम प्रयास करने वाले शास्त्री षड्यंत्र का शिकार हुए पर उनकी मृत्यु एक अनसुलझी पहेली बनकर रह गई।

पिछले वर्ष कर्णाटक के Iphone प्लांट पर हुआ हमला भी एक साज़िश के तहत किया गया था जब हज़ारों की भीड़ अचानक इकठ्ठा हुई और पूरे प्लांट को तहस नहस कर दिया, ये भारत के “मेक इन इंडिया” के सच होते सपने को आघात पहुँचाने के लिए की गई एक बड़ी साज़िश थी।

आज जब दुनिया कोविड से परेशान और त्रस्त भारत की तरफ देख रही है, वहीं भारत का बेगैरत विपक्ष गिद्ध की भाँती एक गलती की प्रतीक्षा कर रहा है, कि किसी प्रकार ये ऐतिहासिक उपलब्धि मौजूदा सरकार के लिए एक नए संकट में बदले और वो इसे एक बड़ा मुद्दा बनायें, विपक्ष राफेल, चीन और बालाकोट की घटना को भुनाने का प्रयास और साज़िश कर चुका है, ऐसे में किसी प्रकार के षड्यंत्र से इंकार नहीं किया जा सकता।

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