गृह प्रदेश बिहार में अब वर्षा ऋतु में बाढ़ का आना नहीं बल्कि बाढ़ का नहीं आना समाचार और कहिये तो चमत्कार सरीखा होता है | पिछले कुछ सालों से देश के तमाम बड़े टीवी चैनलों ने बाढ़ में हेल हेल कर डूबती उतराती रिपोर्टिंग में अभ्यस्त हो चुके कलाकारों की एक पूरी टीम तैयार की हुई है |

इत्तेफाक देखिये इस प्रदेश का इस सुशासन काल से पहले जो राज्य मुख्य मंत्री थे उन्होंने पूरी दुनिया में घोषणा कर दी थी की कोई अलग नया थ्योरी “सोशल इंजीनियरिंग ” उनका ईजाद किया हुआ है (उनके अपने एक दर्ज़न संतानों के उत्पादन के अतिरिक्त को बड़ा योगदान टाईप से ) | बहुत बाद में पता चला कि गाय भैंस का चारा तक खा पचा गए आज तक बेटा सब गांजा पी के गोबर कर दे रहा है ,यत्र कुत्र |

इसके बाद जो राज्य को नसीब हुए ,वो बाकयादा खुद दक्ष इंजीनियर ऊपर से बाबू सुशासन भी | लगा था कि पंद्रह वर्ष तक राज्य की कमान संभालने के लम्बे समय में अगला कुछ न कुछ तो ऐसा करेगा ही कि हर साल हफ्ता वसूलने जैसी ठसक के साथ आ घुसती है बिहार में बाढ़ की लहरें | मुझे याद है कि अपने गृह जिला मधुबनी से गाँव की तरफ जाते हुए एक अधखुदी हुई नहर तब से वहां उसी जगह रुकी हुई है जब हम अपने बचपने में थे | हम वृद्ध हो चले मगर वो नहर अभी अपने बाल्य काल में ही है |

फिर किसी ने समझाया ,सठियायल हैं क्या हो , पर ईयर ई जो बजट से हट कर मिलता है सबको , सुविधा उविधा ऊ ई फ्लड रिलीफ ,डिज़ास्टर रिलीफवा वाला फंड में से ही न एक्सपेसेंस किया जाता है , तब उसके लिए भी तो एकदम से सारा सॉल्व नहीं न किया जा सकता है | फिर आपको क्या लगता है ,पब्लिक को एतना अंडर एस्टीमेट नहीं न करिए | सब लोक को आदत पड़ा हुआ है |

देखते नहीं हैं ,दू हज़ार मुक्ति मोर्चा से साधन संपन्न बिहार अपने ही आपको ठीक नहीं कर पा रहा है | नहीं कुछ हुआ तो मधुबनी चित्रकला या मिथिला चित्रकला के बीच बहुत घनघोर द्वन्द चल रहा है | हालांकि मिथिला/मधुबनी चित्रकला के मन में यही चल रहा होगा, बेटा लोग तुम लोग नाम से ज्यादा काम पर ध्यान दो न अब |

कोसी ,कमला ,बलान आदि के कछार पर बसे ग्रामीण समाज के पास ऐसे अनेक किस्से और घटनाएं हैं जो सुनकर महसूसकर बहुत सी रूहें काँप उठेंगी | हर साल बारिश के रूप में आकाश से धरती को मिलने वाली अमृत बूँदों को सहेजना तो दूर वो हर साल हमारे लिए पहले से अधिक क्रूर होकर सामने आ रही हैं | अपने रौद्र से रौद्रतम रूप में|

इस बार बिहार के लिए ये चुनौती दोहरी होगी | राज्य की बहुत नाजुक चिकित्सा व्यवस्था के बीच कोरोना महामारी का बढ़ता हुआ प्रकोप ,दिन रात मूसलाधार बरसता मेघ और उफनती हुई नदियाँ | इन सबके बीच धीरे धीरे आने वाली खबरें , राहत बचाव आदि विषयक घोषणाएं भी औपचारिक लगेंगी |

सबसे बड़ी विडम्बना यही है अब इस प्रदेश की ,कि उसके पास चुनने के लिए विकल्पों का अभाव है ,नितांत अभाव | और इसका सबसे बड़ा कारण एक ये भी है कि ऐसी आपदाओं के समय समाज के बीच से खुद के समाज के लिए कुछ करने का अवसर प्रस्तुत होने पर खुद को उसके लिए उपस्थित होने में ये हमेशा ही झिझक जाता है |

बिहार से झारखंड अलग होने के समय एक नारा जो सबकी जुबान पर चढ़ गया था वो था अब बिहार में बचेगा क्या

बालू ,आलू और लालू | और यहीं से हुई थी शुरुआत बिहार को पतन की गर्त में धकेलने की | ये दौर बिहार में फिरौती और अपने स्थानीय भाषा में कहें तो रंगदारी टैक्स से प्रदेश वासियों का परिचय कराने वाला था जिसने ज्यादा आनाकानी की उसे अपहरण वाला सिलेबस भी पढ़वा दिया गया

यही वो समय था जब लालू यादव ने अपनी माई को याद किया था , माई भूल गए क्या आप m y , यानी मोहम्डन यादव एलायंस ,इसे उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग का नाम देकर इस कोर्स में चरवाहा विद्यालय के नाम पर अंतर्राष्ट्र्रीय जगत में अपनी खुराफात फिट कर दी | एक बहुत ही बेहतरीन उद्देश्य के साथ शुरू हुई ये योजना भी जल्दी ही असफल करार दी गई |

अब से अगले कुछ दिनों तक यूँ ही बिहार में बाढ़ का तांडव चलता रहेगा और इससे बड़ी बदकिस्मती और क्या हो सकती है कि , पूरे देश समुदाय का ध्यान खींचने को सबको कहा जाए -सेव बिहार |

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