सोशल मीडिया पर फ़िलहाल सुशांत सिंह राजपूत की तथाकथित “आत्महत्या” का मुद्दा छाया हुआ है । उनका पार्थिव शरीर , उन्हीं घर में पाया गया । उसके बाद सोशल मीडिया पर शेयर हुई तस्वीरों , काफ़ी लोगों के बयानों और परिस्थितियों को देखने के बाद लोगों के मन म शंका आयी और सोशल मीडिया से मेन स्ट्रीम मीडिया होता हुआ मुद्दा अब राजनीतिक गलियारे में पहुँच चुका है । दो राज्यों की पुलिस और प्रवर्तन निदेशालय ( ED) भी जाँच में लग गया है और पूरी उम्मीद बंध चुकी है कि सच सामने ज़रूर आएगा ।
निर्भया केस में भी सोशल मीडिया की ताक़त नज़र आयी थी , सरकार को हिला के रख दिया था । ये आज की जनता की बहुत बड़ी ताक़त है , ग़लत – सही चर्चा हो सकती है पर ये तरीक़ा आवाज़ उठाने के लिए काफ़ी असरदार है ।
पर 1966 में भारत ऐसा नहीं था ।
1947 के बाद के भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री , ताशकंद में भारत-पाक बातचीत के लिए वहाँ गए थे । एक समझौता हुआ था । पर अचानक से उनकी मृत्यु का समाचार आया ।लेखक-पत्रकार-रिसर्चर अनुज धर की 2019 में आयी किताब “Your Prime Minister is Dead” , शास्त्री जी की मृत्यु से जुड़े लोगों , दस्तावेज़ों और पारिस्थितिक साक्ष्यों से परिचित कराती है । शास्त्री जी की मृत्यु हृदयघात से हुई बतायी गयी थी । पर बहुत सी ऐसी बातें हैं जो संशय पैदा करती हैं , जैसे :
– उनके शरीर का पोस्ट्मॉर्टम नहीं कराया जाना ।
– शरीर के रंग का नीला हो जाना ।
– गर्दन के पास से ख़ून का रिसाव और शरीर का बहुत ज़्यादा फूल जाना ।
– चेहरे पर धब्बे पड़ जाना , उसपर चंदन का लेप लगाना, फिर भी धब्बों का ना छुपना ।
इसके अलावा ऐसी बहुत सी बातें , जो ख़ासकर शास्त्री जी के परिवार वालों की तरफ़ से की गयीं , जिसमें उनकी पत्नी ललिता शास्त्री का धर्म-युग पत्रिका को दिया साक्षात्कार जिसमें उन्होंने बताया था कि शास्त्री जी की डायरी उन्हें नहीं मिली ।
इस सबको अनुज ने अपनी किताब में विस्तार से बताया है ।
किताब की शुरुआत में प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों को लेकर एक ख़ाका खिंचता है कि वहाँ क्या हुआ होगा । फिर धीरे धीरे उनके विरोधाभास सामने आते हैं । संसद में उठी चर्चाओं का ज़िक्र आता है क्यूँकि बहुत से MPs भी आधिकारिक बयानों से अलग राय रखते थे । दयाभाई वी॰ पटेल की एक रिपोर्ट की बात भी है जिसकी कापी अनुज को भारत की बजाय अमेरिका में मिली । आगे , बहुत सी RTI के ज़रिए सरकार से सवाल पूछने पर गोलमाल जवाब मिलने की बातें है । कुछ और बयानों का भी ज़िक्र है, जैसे : रूस को शास्त्री जी को खाने में ज़हर दिए जाने का शक था , कुछ लोग हिरासत में लिए भी गए थे । पर ये बात भारत में शायद ही किसी को पता रही हो ।
अगर ये हत्या थी तो बहुत से लोग शामिल होंगे इस साज़िश में , क्या रूस या अमेरिका की ख़ुफ़िया संस्थाएँ थीं इसके पीछे , नहीं तो क्या इसका भारत की राजनीति से कुछ लेना-देना था क्या ? कभी कोई जाँच हुई ही नहीं जो ये पता लगाए :
– शास्त्री जी को मिशन के बाक़ी लोगों से अलग क्यूँ रखा गया था ।
– दो सबसे क़रीबी लोग जो शास्त्री जी के साथ थे , डॉक्टर चुग और राम नाथ : डॉक्टर चुग एक सड़क दुर्घटना में मारे गए और रामनाथ ने भी अपनी टाँग गवाँ दी एक और सड़क दुर्घटना में ।
– शास्त्री जी का पूरा सामान कभी घरवालों को क्यूँ नहीं मिला ( फ़्लास्क जिससे उन्होंने आख़िर में पानी पिया था और उनकी पर्सनल डायरी )
साथ ही और बहुत सी बातों को किताब में रखा गया है , जैसे शास्त्री जी के चश्मे के केस में उनकी पत्नी को एक नोट मिला था : I have been betrayed | इसका क्या मतलब था और उस नोट का बाद में क्या हुआ ? क्या भारत सरकार ने रूस या किसी और देश से शास्त्री जी की मृत्यु के बारे में कोई जानकारी माँगी ?
क्या शास्त्री जी मृत्यु और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के “disappear” होने में कोई सम्बंध है ?
ऐसे बहुत से सवालों का जवाब खोजते हुए बहुत से दस्तावेज़ों को प्रस्तुत किया है किताब में । साथ ही साथ आगे क्या किया जाता सकता है , इसका भी रोड-मैप बताया गया है ।
इन वजहों से ये किताब पढ़ने लायक़ बन जाती है । इतिहास और राजनीति में रुचि रखने वालों को तो ज़रूर पढ़नी ही चाहिए ।
वापस से सुशांत सिंह राजपूत वाले केस की बात करें तो उनकी मौत से कुछ दिन पहले ही उनकी पूर्व-मैनेजर दिशा की भी “तथाकथित” आत्महत्या की बात हो रही है , और इन दोनों मौतों को जोड़कर देखा जा रहा है । क्या आपको पता है भारत की परमाणु-यात्रा के पितामह होमी जहांगीर भाभा भी शास्त्री जी की मौत के आस-पास ही वायुयान दुर्घटना में मारे गए थे ? क्या इसमें भी कोई लिंक है ? इसकी डिटेल भी आपको किताब में मिलेगी !!!!
मौक़ा मिलते ही पढ़ने की सिफ़ारिश है
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