आज जब हम भारतीय समाज मुख्यतः हिन्दू समाज को देखते हैं तो यह 3000 जातियों और 25000   उपजातियों में विभाजित हैं। यह जाति ही है जो भारत में किसी व्यक्ति की सामाजिक दशा,व्यवसाय रहन-सहन तय करता है। जाति प्रथा इतनी मजबूत है कि अगर कोई व्यक्ति गैर जाति में शादी करता है तो उसे सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। यहां तक की उसकी हत्या भी हो सकती है। सभी जातियों में एक दूसरे से श्रेष्ठ और ताकतवर दिखाने की होड़ लगी रहती है। राजनीति न सिर्फ इस गोलबंदी को बढ़ावा देती है बल्कि जाति और आरक्षण के नाम पर हिंसक आंदोलन को बढ़ावा देकर एक समुदाय के वोट को हथियाने की कोशिश होती रही है। अब यह प्रश्न उठता है कि जति प्रथा की उत्पत्ति कहाँ हुई और इसका अस्तित्व क्या है?

              वेद तथा जाति

वेदों में जाति व्यवस्था का कोई वर्णन नहीं है,पर वर्ण व्यवस्था का वर्णन है, जो जन्म आधारित नहीं हैं। जाति प्रथा वर्ण व्यवस्था का ही विकृत रूप हैं। हमारे समाज मे यह काफी प्रचलित है कि ब्राह्मण ब्रह्मा जी के मुख से, क्षत्रिय बाजु से, वैश्य जांघ से, तथा शुद्र पैर से जन्म लेता है। पर मुझे आज तक मुख, बाजु, जांघ और पैर से जन्मा कोई व्यक्ति नहीं मिला है। यजुर्वेद के अध्याय 31 के पुरुष सूक्त  का 10वाॅ मंत्र है मुख कौन है? हाथ कौन हैं? जांघ कौन है? और पैर कौन हैं? 11वे मंत्र में जवाब मिलता है कि ब्राह्मण मुख हैं, क्षत्रिय हाथ हैं, वैश्य जांघ है, तथा शूद्र पैर हैं। इसके अगले मंत्र में शरीर के अन्य भाग जैसे मन, ऑख इत्यादि का वर्णन है। यह मंत्र चारो वर्णो के सामाजिक रचना का अप्रतिम आलंकारिक वर्णन करती है।समाज मे ब्राह्मण सोचने तथा बोलने, क्षत्रिय रक्षा करने, वैश्य सहयोग और पोषण तथा शूद्र समाज को आधार देकर गति प्रदान करने का कार्य करते है।

वैदिक संस्कृति में प्रत्येक जन्म से शूद्र ही होता है। वैदिक ज्ञान आधारित शिक्षा पूर्ण करके योग्य बनना दूसरा जन्म माना जाता है। ये तीनों  वर्ण द्विज कहलाते है क्योंकि इनका दूसरा जन्म अर्थात विद्या जन्म होता है। जो व्यक्ति वेदों के ज्ञान को प्राप्त करने से वंचित रह जाता है वही शूद्र है। यद्यपि वेदों में शूद्रों को यथोचित आदर दिया जाता है ताकि सामाजिक व्यवस्था ना बिगड़े।

 उदाहरण

  • ऐतरेय ऋषि दास तथा अपराधी पुत्र थे।वेदों की शिक्षा प्राप्त करके ब्राह्मण बने तथा ब्राह्मण और  ऐतरेय उपनिषद की रचना की।
  • विश्वामित्र क्षत्रिय थे परंतु बाद मे ब्राहमणत्व को प्राप्त किया,उनके पुत्र शूद्र बने ।
  • ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना।
  • विदुर दासी पुत्र थे तथापि वे ब्राह्मण हुए और हस्तिनापुर के मंत्री बने।
  • गणिका (वेश्या) के पुत्र महर्षि  जाबाल अथर्ववेद के ऋषि बने।

   अगर जाति प्रथा ने किसी का नुकसान किया है तो वह हिन्दू धर्म तथा मानवता का ही किया है। इसने हिन्दू समाज मे गंभीर विसंगतियों को जन्म दिया हैं और इसने बहुत बड़े वर्ग को अमृत तुल्य वैदिक ज्ञान से वंचित रखा है। जाति प्रथा के कारण ही विदेशी आक्रांत भारत पर 1000 हज़ार वर्ष शासन करने मे सफल हुए, देश का बंटवारा हुआ तथा जातिय नरसंहार हुए। आज इस विकृत, पिछड़े तथा खूनी  व्यवस्था को खत्म करने की जरूरत है।

 संभार:हिन्दू धर्म के दलित

 

 

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