नम आँखों एवं विह्वल भावों को समय के बाँधों में रोक पाना कितना कठिन होता है, यह आज अनुभव हो रहा है! प्रधानमंत्री मोदी और उनकी यह मुद्रा, ओह, सदियों की साधना पूँजीभूत होकर इस एक व्यक्ति के रूप में आज प्रत्यक्ष साकार हो रही है! हम सब सौभाग्यशाली हैं कि इन्हें अपनी स्थूल आँखों से प्रत्यक्ष देख रहे हैं। कभी हम अपनी आने वाली संततियों को गर्वपूर्वक बताएँगे कि हाँ, हमने उस महामानव को चलते-फिरते, हँसते-मुस्कुराते, लोगों का अभिवादन करते, लोगों से अभिवादन लेते देखा था। इस तपस्वी के समक्ष शेष सभी राजनीतिक कद कितने बौने नज़र आते हैं! अहर्निश कर्मरत, बस एक ही धुन, एक ही ध्येय- जय भारत, जय-जय भारत! इस महामानव की यह मुद्रा और ऐतिहासिक-अविस्मरणीय दृश्य-चित्र देखकर कदाचित ऐसा ही कुछ भाव आज आपके मन में भी हिलोरें ले रहा होगा, जैसा ऊपर और नीचे के वाक्यों में वर्णित है!
माँ, मैं जब भी तुम्हारे पास आया अभिभूत हो बस तुम्हें ही निहारता रहा। माँ, तुम न जाने कितने युगों, कितने जन्मों से धरती और मानव-जीवन की आस और साध पूरी करती आयी हो! माँ, तुम्हारे जल से ही धरती का तृण-तृण मुस्काता है, यह शस्य-श्यामला धरती तुमसे ही तो जीवन पाती है, उत्तर भारत का कोना-कोना तुमसे ही तो आबाद है, तुम्हारे संस्पर्श मात्र से पतित भी पावन हो उठता है, तुमने ही हमारी सुसुप्त संवेदनाओं को स्वर दिया है, सामूहिक चेतना को बल दिया है! माँ, तमाम आक्रांताओं के भयावह अत्याचार के बावजूद तुमने भारत की सांस्कृतिक-धारा को कभी सूखने नहीं दिया, न जाने कितने जन्मों से तुम हमारी अकर्मण्यता और भीरुता के भार ढो रही हो! माँ, हमारी अकर्मण्यता और कायरता का पाप ढोते-धोते तुमने अपने अस्तित्व तक को दाँव पर लगा दिया! माँ, तुम्हारा यह पुत्र जहाँ एक ओर संस्कृति रूपी भागीरथी के अविच्छिन्न-अविरल प्रवाह के लिए कृत-संकल्पित है, वहीं दूसरी ओर निज संस्कृति के विरुद्ध चल रहे अपने ही बंधु-बांधवों को देखकर बहुत शर्मिंदा है। हो सके तो क्षमा करना माते!
माँ, तुम तो वरदायिनी, मुक्तिदायिनी, बलदायिनी हो! एक आशीर्वाद दो, भारत की सामूहिक चेतना को एक बार फिर स्वर दो, इसे जाग्रत कर दो, सदियों की पराधीनता ने इसे सांस्कृतिक शून्यता से भर दिया है। यह केवल तन से आज़ाद हुआ है, मन से आज भी इसके पोर-पोर में गुलामी की ग्रन्थियाँ गहरे पैठी हैं।
भारत के सांस्कृतिक सूर्य को डूबने से बचा लो माँ! सभ्यता के जिस सूरज को तुमने परवान चढ़ते देखा, दिक-दिगांत को प्रकाशित करते देखा, उसका ही अस्त कैसे देख और सह सकोगी, माँ! माँ, इसे एक बार फिर गौरवशाली, संकल्पधर्मी, संस्कृतिनिष्ठ राष्ट्र बना दो! शताब्दियों बाद तुम्हारा एक पुत्र (निःसंदेह नरेंद मोदी) संपूर्ण ईमानदारी, समर्पण और आस्था से इसके खोए गौरव को वापस लाने की भरपूर कोशिश कर रहा है, उसे बल दो, विश्वास दो! माँ, हमारा विश्वास ज़रूर कमजोर हुआ है, पर टूटा नहीं है। जब तक तुम प्रवाहित हो, भारत की धमनियों में राष्ट्रवाद और संस्कृति की रसधारा भी प्रवाहित रहेगी, तुम्हारे अस्तित्व में ही हमारा जीवन है, बल है, संकल्प है।
माँ, राम-कृष्ण-बुद्ध-महावीर-नानक-कबीर की इस धरती को पहले ही मलेच्छों ने बहुत रौंदा, बहुत लूटा, बहुत कलंकित किया। तुम तो वीर-प्रसूता हो, रत्नगर्भा हो, संकल्पधर्मा हो, कुछ ऐसा चमत्कार करो कि भीरुता व अकर्मण्यता त्याग तुम्हारे पुत्र वीरता व पुरुषार्थ का वरण करें! एक और आशीर्वाद दो माते, चाहे कहीं भी रहूँ, अपनी आख़िरी साँस तुम्हारी गोद में ही लूँ! बहुत सुख और सुकून है, तुम्हारी गोद में माँ! पर पराए राग-रंग में डूबे लोग शायद ही उसे महसूस कर सकें!
जय माँ गंगे, जय माँ भारती !
प्रणय कुमार
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