सच ही कहा था किसी ने किः भारत को दुशमन के लिए किसी भी बाहरी व्यक्ति संस्था का मोहताज़ रहने की जरूरत नहीं है खुद यहीं के अपने लोग ही पर्याप्त हैं।
भगोड़े हीरा व्यापारी नीरव मोदी के भारत प्रत्यर्पण हेतु दायर किए गए वाद का निर्णय और मा ननीय न्यायाधीश द्वारा उस्मने उल्लेखित , तथ्य, विशेषकर नीरव मोदी के पक्ष में गवाही देते हुए माकर्ण्डेय काटजू और थिप्से जैसे पूर्व न्यायमूर्तियों की गवाही , भारतीय न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाने जैसे एक एक विषय पर विस्तार से विधिक पक्ष को रखा।
नीरव मोदी की भारत वापसी हेतु प्रत्यर्पण की इस कार्रवाई में भारत को मिली सफलता कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण है। यह वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी की भ्रष्टाचार के विरूद्ध अपनाई गई ज़ीरो टॉलरेंस की नीति का ही दूरगामी परिणाम है कि नीरव मोदी की लाख तिकड़मों के बावजूद उसे विधि सम्मत कार्रवाई के लिए भारत को वापस किया जा रहा है।
ये सन्देश है उन सबके लिए जो ये मान कर चल रहे थे कि अपराध के लिए दण्डित होने की बारी आते ही वे विदेश में जाकर दंड से बच जायेंगे। मगर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है ब्रितानी न्यायालय का भारतीय न्याय व्यवस्था पर जात्या गया अटूट विशवास। वो भी तब जब देश की सर्वोच्च अदालत के सर्वोच्च पद पर आसीन रहा व्यक्ति किसी विदेश की अदालत में शपथपूर्वक बतौर एक विशेष्ज्ञ गवाह ,भ्रष्टाचार करके देश के करोड़ों रूपए लेकर भागे भगोड़े को बचाने के लिए पूरी न्यायपालिका की साख और ईमानदारी पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देता है।
अपनी हनक ऊल जलूल बयानों से खुद को सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमान और 99 प्रतिशत भारतीयों को मूर्ख करार देकर सुर्खियां बटोरने वाले काटजू साहब को उन्ही के द्वारा दी गई दलीलों के आधार पर ब्रितानी न्यायाधीश ने काटजू साहब और नीरव मोदी के हक़ में गवाही देने वाले दूसरे विशेष विधिज्ञ न्यायमूर्ति थिप्से के स्वार्थ और हित को भी बखूबी उजागर कर दिया।
काटजू साहब ने भारतीय न्यायवस्था को पक्षपातपूर्ण , धीमा और सबसे अधिक मीडिया से प्रभावित होने वाला बताते हुए नीरव मोदी को भारतीय न्यायपालिका के समक्ष विधि सम्मत कार्रवाई का सामना करने के लिए न भेजे जाने की सिफारिश की थी। इस कथन पर आश्चर्य /दुःख जताते हुए ब्रितानी अदालत ने काटजू के इस आचरण और कथ्यों को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया।
ब्रितानी न्यायालय ने भारतीय संविधान जो कि एक लिखित संविधान है उसमें सरकार के तीनों अंगों का दायित्व और शक्ति संतुलन की सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था को विशेष रूप से रेखांकित करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि जिस मीडिया ट्रायल का ज़िक्र काटजू साहब ने किया , स्वयं काटजू साहब इस अदालत में इतनी महत्वपूर्ण गवाही देने से पहले मीडिया से मुखातिब थे।
न्यायमूर्ति थिप्से जिन्होंने सिर्फ एक तारीख पर गवाही के लिए अपनी उपस्थति दी और रवि शंकर प्रसाद जी के एक तीखे बयान के बाद खुद को इस गवाही से अलग कर लिया ,द्वारा पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति पर राज्यसभा पद स्वीकार करने का जबरन उद्देश्य करने पर न्यायालय ने टिप्पणी की कि थिप्से स्वयं लाभ के पद को स्वीकार कर चुके हैं।
भारत में कुछ द्रोहियों के साँप सूँघ गया होगा एक बार फिर से ,और विजय माल्या जैसे समझ गए होंगे कि अगला नंबर किसका लगने वाला है। बार बार सरकार ये साबित कर रही है कि उसकी नीयत में कोई खोट नहीं है और न ही वो किसी को भी बख्शने जा रही है क्यूंकि लोगों ने जिस विशवास के साथ दूसरी बार सरकार को निर्णय लेने का दायित्व सौंपा है तो वो यूं ही नहीं है।
नीरव मोदी की दूसरी दलील की मुम्बई की आर्थर जेल उसके स्टेटस के हिसाब से ठीक नहीं है को सिरे से खारिज करते हुए अदालत ने कहा ,यहॉं वाली से बहुत ज्यादा बेहतर है निकल लो। अब मुम्बई की आर्थर जेल में जाकर उसको खुद की औकात पता चल जाएगी। इस फैसले ने वैसे भी बहुतों को उनकी औकात ही याद दिलाई है।
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