अभी हाल ही में वाइफ स्वैपिंग की एक घटना का जिक्र केरल के कोट्टायम जिले में हुआ है।
एक गरीब और अशिक्षित इंसान के लिए पत्नी का उसका दैहिक सतीत्व उसकी प्रतिष्ठा का उच्चतम मानक है। उसे वह असूर्यम्पश्या भी इसीलिए रखता है कि पराई नजर भी उस पर ना पड़े ।
परंतु पत्नी का दैहिक विनिमय या पासिंग द पार्सल केवल शिक्षित , बुद्धिजीवी, प्रगतिशील , संपन्न और संभ्रांत लोगों में ही संभव है। चूंकि केरल १००% साक्षर और शिक्षित राज्य है और सारे बुद्धिजीवी हैं इसीलिए वहां यह घटना हुई यह स्वाभाविक भी है और प्रलयंकारी भी।
मेरा यकीन है कि जो महिला इस दैहिक अनाचार के खिलाफ खड़ी हुई होगी अब तक वह तुलनात्मक रूप से निश्चित हीं अशिक्षित , दकियानूसी और गँवार घोषित कर दी गई होगी ।
एक दकियानूसी , अनपढ़ गँवार और पिछड़े समाज में पलने वाली महिला अपना शील हरण स्वैच्छिक रूप से ऐसे नहीं करवा सकती है और न हीं उसका दकियानूसी, पुराण पंथी अनपढ़ और गरीब पति भी ऐसी घटना को अपनी मर्जी से स्वीकार कर सकता है।
ये तो केरल की शत प्रतिशत साक्षर भूमि से चारित्रिक पतन की एक पयस्विनी प्रस्फुटित हुई है जो आने वाले दिनों में भारतीय आर्ष परंपरा को अनंत काल तक कलंकित करती रहेगी और भारत चाह कर भी इस कलंक से मुक्त नहीं हो पाएगा।
जिस क्षेत्र में शंकराचार्य ने जन्म लिया और विश्व के एकमात्र मौलिक गणितज्ञ ने अपने प्रमेय , साध्य ,अनुमेय और संकल्पनाओं को एक देवी के आशीर्वाद का प्रतिफल बताया, वह राज्य सामाजिक मान्यताओं को तोड़कर खुद को प्रगतिशील होने के मार्ग पर चल पड़ा है।
जिस दिन मनुष्य ने मनुष्य होने के बदले बुद्धिजीवी होना स्वीकार कर लिया उसी दिन से परंपरा, संस्कार और सामाजिकता ताक पर रख दी जाती है ।
सवाल है, ऐसा क्यों?
जवाब है , वामपंथी विचारधारा।
ये विचारधारा असंतोष पर चलती है, इसीलिए हर संतुलित परिस्थिति में ये असंतोष का अंकुरण करती है।
अगर आप आस्तिक हैं तो ये विचारधारा आपकी आस्तिकता के खिलाफ असंतोष पैदा करेगी। पर जहां मरने का डर होगा वहां चुप। जैसे सबरीमाला और शिंगणापुर में महिलाओं के प्रवेश के लिए आसमां सर पे उठाया जाएगा पर एक भी महिला को इमाम या चर्च का हेड बनाने की कोशिश पर साँप सूंघ जाएगा। अगर किसी का दाम्पत्य सरस और सहज व्यतीत हो रहा हो तो उसे बताया जाएगा कि मात्रा अपनि विवाहिता से कायिक भोग कौन सी बड़ी बात है, विवाहेतर संबंध भी कोई बुरी बात नहीं है।
आगे चलकर अप्राकृतिक संबंध , विषमलिंगी और मानवेतर कायिक भोग को भी अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। और इन सब को जो चीज हतोत्साहित कर सकती है वह है धर्म, संस्कार ,आस्था और परंपरा परंतु इसके बारे में वामपंथ की टैगलाइन है धर्म अफीम है।
फिर चाहे पत्नी बदल कर एक्सचेंज कर या आपस में शेयर कर के थ्रिल/रोमांच तलाशने पर अंकुश कौन लगाएगा?
किसी भी प्रकार का धर्म या संप्रदाय ही वह पहरेदार है जो एकांत में भी आपके विचारों पर अंकुश लगा सकता है।

मैं नाम भूल रहा हूंँ परंतु संस्कृत के एक महा कवि ने लिखा है कि साक्षर को अगर उलटा कर दिया जाए तो राक्षस बनता है और ये दैहिक लिप्सा में थ्रिल की तलाश साक्षरों को राक्षस बना कर ही चैन लेगी।

मैथिली , मगही और भोजपुरी भाषा में जो ईंट ज्यादा सिंक जाती है उसे झाम या झामा बोलते हैं। उस ईट की चिनाई नहीं होती बल्कि उसे तोड़कर बजरी के साथ मिलाकर या तो फर्श में मिला दिया जाता है या कंक्रीट बनाने में इस्तेमाल किया जाता है या पहले के समय में महिलाएं बर्तन मांजने के लिए स्क्रबर के रूप में उपयोग करती थी। यानी ज्यादा सिंकाई हो जाए तो ईंट भी काम की नहीं रहती, वही बात साक्षरता में भी है।
शत प्रतिशत साक्षरता भी मनुष्य और उस राज्य को कब ईंट से झाम में बदल दे पता नहीं चलता और केरल जो कि १००% एजुकेटेड से ओवरएजुकेटेड हो चुका है अब ईंट से झाम में बदलने की स्थिति में आ चुका है।
साक्षरता की भट्ठी में ये सिंकी हुई यह मनुष्य रूपी ईंटें कब झाम में बदल जाएँ क्या पता?

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