उप्र के जातीय ब्लू प्रिंट पर अगर नजर डालें तो पूर्वांचल और सेंट्रल यूपी की करीब 40 विधानसभा सीटें और 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर सैथवार कुर्मी, पटेल, वर्मा और कटियार मतदाता चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। पूर्वांचल के कम से कम 16 जिलों  में कहीं ८ तो कहीं 12 प्रतिशत कुर्मी वोटर राजनीतिक समीकरण बदलने की हैसियत रखते हैं। कानपुर, कानपुर देहात और आसपास के क्षेत्रों में कटियार और वर्मा खेती के साथ-साथ राजनीति में अच्छी हैसियत रखते हैं। उत्तर प्रदेश में कुर्मी जाति संत कबीर नगर, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती और सेंट्रल यूपी में कानपुर,अकबरपुर, एटा,बरेली और लखीमपुर जिलों में बहुतायत पाए जाते हैं। यहां पिछड़ों में यादवों के बाद सबसे बड़ी संख्या कुर्मियों की है।
पूर्वांचल और सेंट्रल यूपी की कुछ विधानसभा सीटों पर निर्विवाद रूप से अपना दल का अब तक वर्चस्व रहा है। लेकिन, अपना दल के दो फाड़ होने के बाद कुर्मी वोट तेजी से बिखर रहा है। यही एक बड़ी वजह है कि कुर्मी मतों को अपने पाले में करने की होड़ मची है।  पूरे प्रदेश की कुर्मी जाति का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि कुर्मी जाति कई वर्गों में बंटी है। इसलिए कुर्मियों का कोई एक क्षत्रप हो ही नहीं सकता। मसलन, रुहेलखंड में गंगवार कुर्मी हैं।
 संतोष गंगवार इनकी फसल काटते रहे हैं। कानपुर मंडल के कुर्मी कटियार और सचान हैं। यहां भाजपा की बड़ी नेता प्रेमलता कटियार हुआ करती थीं। इलाहाबाद मंडल की बात करें तो यहां कुर्मी पटेल हो जाते हैं। कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता रामपूजन पटेल और बाद कि दिनों में अपना दल के नेता सोनेलाल पटेल यहां के कुर्मी मतदाताओं की रहनुमाई करते रहे हैं। इधर, फैजाबाद मंडल में कुर्मी वर्मा हो जाते हैं। गोरखपुर और बस्ती मंडल में यही कुर्मी बिरादरी के लोग चौधरी, पटेल और सिंह टाइटल लिखते हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में महाराजगंज के सांसद पंकज चौधरी का कुर्मी वोटों में एक अच्छा रसूख है और उनको केंद्रीय मंत्री बनाकर बीजेपी ने इस वोट बैंक को साधने की पूरी कोशिश की है। वही कांग्रेस, आर पी एन सिंह और समाजवादी पार्टी नरेश उत्तम पटेल और कृष्णा पटेल के जरिए इस वोट बैंक को सहेजने में जुटी हुई है। गोरखपुर और आसपास के जिलों की अगर बात करें कुर्मी वोटर बीजेपी के बड़े सपोर्टर रहे हैं इस बार के चुनाव में भी यह वोट बैंक कमोबेश बीजेपी के साथ जुड़ा है और योगी आदित्यनाथ को ही उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनाने की बात कह रहा है।

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