मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ जमीन पर बने शाही ईदगाह मस्जिद पर हिन्दुओं का दावा नया नहीं है और न यह अभी केशव मौर्य के कहने से शुरू हुआ है। राम मंदिर मुक्ति आंदोलन के साथ ही काशी और मथुरा को भी मुक्त कराने की बात चली थी। यहाँ तक कि आजादी के पहले 1935 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने काशी राज को मथुरा में जन्मभूमि के अधिकार सौंपे थे। जहाँ बाद में 1951 में ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट’ बना और यहाँ भव्य मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया गया।

आगे चलकर 1958 में ‘श्रीकृष्ण जन्म सेवा संघ’ का गठन हुआ। कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएँ निभानी शुरू कर दीं। इसके ठीक 10 साल बाद 8 अगस्त 1968 का वह कथित समझौता हुआ जिसका हवाला मिली गैजेट के लेख में दिया गया है।

दरअसल, श्रीकृष्ण जन्म सेवा संघ ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दाखिल किया था। लेकिन 1968 की तत्कालीन परिस्थितियों में शाही ईदगाह कमिटी और श्री कृष्णभूमि ट्रस्ट के बीच एक समझौता हो गया। इसके अनुसार, जमीन ट्रस्ट के पास रहेगी और मस्जिद के प्रबंधन का अधिकार मुस्लिम कमिटी को दे दिए गए। उसमें मुस्लिमों को शाही ईदगाह मस्जिद के प्रबंधन के अधिकार दे दिए गए। अब इसी समझौते को आधार बनाकर दावा किया जा रहा है कि ईदगाह मस्जिद पर पुनः दावा करने का कृष्ण भक्त हिन्दुओं को कोई अधिकार नहीं, बल्कि यह समझौते का उल्लंघन करते हुए धोखा है।

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