मिजोरम के मुख्यमंत्री हैं “जोरमथंगा” जिन्हें राष्ट्रहित के ऊपर धर्म हित दिखाई देता है, जो अपने ईसाई धर्म होने के कारण राष्ट्रहित को भी तिलांजलि देने के लिए मजबूर हैं “जोरमथंगा” जोकि मिजो नेशनल फ्रंट क्षेत्रीय दल से ताल्लुक रखते हैं उन्होंने खुलेआम कुकी को के समर्थन में मिजोरम में रैली निकाली और जब खुद उनके राज्य से 600 हिंदुओं को बाहर निकाला जा रहा है तो उसका खामोशी से रहकर समर्थन कर रहे हैं।
मिजोरम में ईसाइयों की आबादी 87% है हिंदू वहां लगभग 8% हैं उसके बावजूद जब मणिपुर में मेथी और खुशियों के बीच हिंसक झड़पें हुई तो मिजोरम में लोगों ने ईसाई धर्म को देखते हुए रोगियों का समर्थन किया और वहां पर रहने वाले हिंदू वासियों को प्रदेश छोड़ने का अल्टीमेटम दिया गया ,यह सब कुछ मिजोरम में अलगाववादी संगठनों ने किया जिन्हें ईसाई मिशनरियों का खुला समर्थन प्राप्त और जब यह सारे काम हो रहे थे तो मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा खामोशी से अपने चादर के अंदर घुसे हुए थे ।यह बिल्कुल वैसा ही था जब रोम जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था।
मेइती समुदाय के 600 से ज्यादा लोग मिजोरम छोड़कर चले गए हैं। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।अपराध जांच विभाग के पुलिस अधीक्षक (विशेष जांच) वनलालफाका राल्ते ने यहां बताया कि इस वीडियो के सामने आने के बाद एक पूर्व उग्रवादी संगठन ने परामर्श जारी किया है, ऐसे में मेइती लोग हमले का शिकार बनाए जाने के भय से मिजोरम से चले गये।
पुलिस अधीक्षक ने कहा कि नागरिक संस्थाओं द्वारा मंगलवार को एकजुटता मार्च निकाले जाने के कारण भी मेइती लोगों में “असुरक्षा” की भावना है
क्या सिर्फ ईसाई होने के कारण किसी भी हिंसा वादी आंदोलन को समर्थन किया जा सकता है और उन्हें खुलेआम कत्लेआम करने की छूट दी जा सकती है ?क्या उनके समर्थन के लिए उनके खिलाफ लड़ रही दूसरी जाति को अपने राज्य से निकालने का ऑर्डर दिया जा सकता है ?और ऐसे आर्डर पर किसी तरह का कार्यवाही ना होना और भी दुखद है, वैसे भी जिन जिन क्षेत्रों में उत्तर पूर्व में ईसाइयों की आबादी बढ़ी है वहां देश विरोधी ताकतें बढ़ गई। उन्हें राष्ट्र से कोई मतलब नही, उन्हें मतलब है तो सिर्फ अपने धर्म से।
उन्हें ना हिंदुओं से मतलब है, ना भारत से, ना भारत की एकता और अखंडता से।

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