भारत की दो कमजोरियां है – पहली कि उसकी यादाश्त बहुत कमजोर है, और दूसरी कि उसे, दुनिया को अपनी नज़रों से देखने की आदत नही है। आम जनमानस के मुद्दों में बामपंथी अपना एजेंडा कैसे घुसा देते हैं, ये समझना भारत के आम जनमानस के लिए किसी रॉकेट साइंस की तरह है, जिसे अक्सर आम भारतीय समझ नही पाते और इनके ट्रैप में फंसकर, इनके विरोध में होते हुए इनके एजेंडे को सफल करने में इनका सहयोगी बन जातें हैं।

मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ – CAA आंदोलन के तुरंत बाद दिल्ली में दंगे हुए, उस दंगे का मास्टरमाइंड ताहिर हुसैन के घर से किसी महिला के अंडरगारमेंट व दूसरे शिनाख्त मिले जो ये इशारा करता था वहां पर किसी महिला का रेप हुआ और उसे फिर मार कर पास के नाले में फेंक दिया गया।

इस पर सुदर्शन न्यूज़ ने उसी शाम को एक स्टोरी चलाई, और देखते ही देखते पूरा लुटियंस इकोसिस्टम सुदर्शन पर टूट पड़ा और उन पर आरोप लगाया गया कि उनकी ख़बर से दंगा दोबारा भड़क सकता हैं और सरकार से मांग की गई कि न सिर्फ सुदर्शन पर कार्यवाही की जानी चाहिए बल्कि चैनल को ही बंद कर देना चाहिए। और ऐसी ये पहली घटना नही है। मेरे पास इस वक्त जब मैं इस लेख को लिख रहा हूँ कम से कम 20 उदाहरण है मग़र लेख का मुद्दा भटक जाएगा। इसलिए उन्हें छोड़ता हूँ।

26 जनवरी 2021 में दिल्ली में एक बार फिर वही स्थित… चारो तरफ अराजकता हुड़दंग के बीच ट्रेक्टर पलटने से एक आंदोलनकारी की मौत, और ठीक उसी समय राजदीप पहले ट्वीट करता है कि ” पुलिस की गोली से एक युवक की मौत’ और उसके तुरंत बाद इंडियाटुडे पर लाइव बोलता है, और साथ ये भी कहता है कि “उसने लाश देखी है उसपर बुलेट का निशान भी है।”

एक्सपर्ट कहतें है कि इसी ख़बर के बाद अचानक पुलिस पर हमले बढ़ गए। अब जरा याद कीजिये कि सुदर्शन के ऊपर आरोप था कि ‘उसे वह ख़बर इसलिए नही चलानी चाहिए थी क्योंकि इससे हिंसा भड़क सकती थी।’ अगर बात करें ख़बर की तो वह अपुष्ट थी मगर असत्य नही, जबकि राजदीप की ख़बर पूरी तरह से झूठी थी, और ये बात राजदीप को भी पता थी।

इसी बीच आपको याद रखने की जरूरत है कि इसके एकदिन पहले इसी राजदीप ने राष्ट्रपति भवन से जारी की गयी सुभाषचंद्र बोस की तश्वीर पर भद्दा कमेंट करके राष्ट्रपति के विवेक पर भी सवाल उठा चुके थे, अतः राष्ट्रपति भवन की तरफ से बाकायदा इंडिया टुडे को नोटिस भेजी गई। अब चूँकि राजदीप एक सीरियल ऑफेंडर है इसलिए इस बार उस पर FIR हो गयी। FIR होने के तुरंत बाद, वह एडिटर गिल्ड जो अर्नब की असंवैधानिक गिरफ्तारी पर भी कान में तेल डाल कर सो रहा था, अचानक हरकतके आ गया, आनन फानन इन गिद्धों की मीटिंग हुई और हंगामा शुरू।

हद यहाँ तक थी कि 6 साल से ट्विटर से गायब रवीश पांडेय को भी वापस ट्विटर पर बुलाया गया क्योंकि इन्हें यकीन हैं कि, क्योकि वह एक बड़े पुरस्कार का विजेता है अतः उसके ट्वीट की गूँज, दुनिया तक पहुँचेगी और उसके बाद वसिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम में बड़े बड़े लेख लिखे जायेगे और भारत की आलोचना होगी कि देखिए भारत मे किस तरह प्रेस की आजादी को कुचला जा रहा है। जबकि वही दुनिया जब अर्नब को करवाचौथ के दिन जब उसके घर से उसके बेटे और पत्नी के सामने घसीटते हुए ले जाया तब खामोश थी, उसमें किसी को प्रेस की आजादी पर हमला नही लगा।

ये सब ऐसे ही नही होता! इसके पीछे एक पूरा तंत्र काम करता है जिसकी अपना फुलप्रूफ प्लान है।

इस देश का सबसे बड़ा मुद्दा, जो सीधा अमितशाह से जुड़ा है उस उदाहरण से समझिये पर ये बामपंथी इकोसिस्टम कैसे काम करता है?

जज लोया का केश याद है? एक छोटी सी मैगज़ीन है ‘कारवाँ’ जो विशुद्ध रूप बामपंथी लम्पटों के द्वारा चलायी जाती है, उसने एक आदमी को ‘जज लोया’ का रिश्तेदार बनाया और उसके हवाले से ख़बर छापी कि जज लोया की मौत ‘प्राकृतिक’ नही बल्कि साजिस है।


कारवाँ पर ये ख़बर छपते ही, उसे रवीश पांडेय ने उठाया और बिना पुष्टि के उसे ndtv पर कारवाँ का हवाला देकर चलाना शुरू किया, उसके बाद बामपंथी वकील प्रशांत भूषण उसे लेकर सुप्रीमकोर्ट पहुँच गया, और अंत में इस गिरोह की कार्यप्रणाली के अनुसार, इकोसिस्टम की सरदार ‘कांग्रेस’ ने उस पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दिया, जिसके बाद कारवाँ से शुरू हुई एक फेक स्टोरी हर चैनल पर हैडलाइन बन गयी। मतलब समझिये, एक टुच्ची सी मैगज़ीन ने एक झूठी स्टोरी छापी, और उसे इस इकोसिस्टम बिना किसी रिश्क के इतना बड़ा बना दिया।

मुद्दा बड़ा बनते ही जज लोया का एकलौता बेटा और पत्नी सामने आये और उन्होंने इस झूठ का खंडन भी किया मगर तब तक झूठ पूरी दुनिया का चक्कर लगा चुका था, और झूठ के उस शोर में हाइकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के जज भी सफाई देने बाहर आये, उन्होंने भी उस झूठी, प्लांटेड स्टोरी का खंडन किया मगर झूठ के शोर में वह आवाज किसी को भी सुनाई नही दी।

मामला थमने पर जब झूठी ख़बर पर कार्यवाही की बात आई तो चूँकि कांग्रेस ने ndtv की ख़बर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की, इसलिए वह भी पाकसाफ, ndtv ने कारवाँ के हवाले से ख़बर चलाई, वह भी बच कर निकल गए, और अंततः कारवाँ पर गाज गिरी मग़र उसकी पहले ही कौन सी विश्वसनीयता थी जो उसका नुकसान होगा।

एक पूरा मुद्दा उछल चुका था। चुनाव के बीचोबीच माहौल भी बन गया था मग़र झूठी स्टोरी के वावजूद सब पाकसाफ भी निकले।

लुटियंस मीडिया ने द वायर, क्विंट, ऑल्ट, फाल्ट जैसे तमाम ऐसे पोर्टल बना रखे है जिनके जरिये झूठी ख़बर प्लांट की जाती है और उसके बाद बड़े खिलाड़ी उसे दुनिया भर में फैला देतें है। डालने बचाव में ये झुंड में रोते हैं, दूसरों पर हमला भी झुंड में ही करतें है इसलिए जब पूरी दुनिया से ये लगभग समाप्त हो चुकें, मुट्ठी भर लोग अपनी इसी रणनीति और एकता के कारण आज भी ताकतवर है और इनकी आवाज दुनिया के हर फोरम पर सुनी जाती है।

– राजेश आनंद

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