राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण उसके शब्द शब्द और व्यवहार के निर्वाह से परिलक्षित होता है | समाज के बीच रहते हुए सबको विशिष्ट दायित्वबोध कराने की परम्परा को संजोए हुए संघ के सभी वार्षिक उत्सव भी अपने आप में एक सामाजिक आंदोलन और सांस्कृतिक समरसता के पर्याय सरीखे हैं |

संघ द्वारा आहूत ,हिन्दू समाज के ,हिंदुत्व दर्शन के और सामाजिक साझेदारी के प्रतीक ये छः उत्सव यथा , विजयदशमी महोत्सव ,मकरसंक्रांति महोत्सव , वर्ष प्रतिपदा महोत्सव हिन्दू साम्राज्य दिवस महोत्सव ,गुरु पूर्णिमा महोत्सव और रक्षा बंधन महोत्सव | यदि इन सब महोत्सवों का एक ही मूल कोई एक ही निष्कर्ष निकाला जाए तो वो होगा भारत जैसे बहु आयामी फलक वाले देश में ये त्यौहार ही सबको एकात्मकता के सूत्र में पिरो देते हैं |

भारत भू हमेशा से उत्सव का योग्य पात्र रहता आया है क्यूंकि उसने मिट्टी और वनस्पति से अभी तक अपना नाता पूरी तरह से खत्म नहीं किया है  | उत्सव का प्रारूप कैसा हो पर विमर्श से अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है उनके निहितार्थ समाज का कल्याण कार्य |

रक्षा बंधन यानी रक्षा रक्षा करने /के लिए कटबद्ध होने को ही तो कहते हैं =जुड़ना | संघ का अर्थ और इससे बेहतर भला और हो भी क्या सकता है संघ यानि जुड़ना | अत्यंत प्राचीन समय से ही धार्मिक ऐतिहासिक और प्रकृति प्रसंगों के साथ साथ राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़े प्रसंगों को लेकर अनेक पर्वों को मनाने की परिपाटी यहां उपस्थ्ति हुई है | यही कारण है की हिन्दू समाज को नया उत्साह प्रदान करने वाला प्रतिदिन कोई न कोई पर्व विद्यमान रहता है | इसलिए भारत को पर्वों का देश कहा जाता रहा है और दुनिया में ये सिर्फ ऐसा इकलौता देश है जो उत्सवों से इतना प्रचुर है |

स्वयसेवक संघ हिन्दू समाज में व्याप्त क्रूटियों को नष्ट करके ऐसे समता मूलांक समरसता युक्त शक्तिशाली संगति हिन्दू समाज के लिए कटिबद्ध है जो अपने प्राचीन वैभव को पुनः प्राप्त कर सके | अतः स्वाभाविक रूप में रक्षाबंधन को भी उसने अपने उत्सवों में सम्मिलित किया है |

वैदिक मन्त्र “ॐ सह नाववतु ” अर्थात हम दोनों परस्पर मिलकर रखा करें ,का यही सन्देश है की समाज के सभी वर्ग ,गुरु व् शिष्य ,मार्ग दर्शक व् साथक ,पुजारी व् भक्त , राजा व् प्रजा ,नाई व् पुरुष ,यजमान व् पुरोहित ताहता नेता व् अनुयायी सभी रक्षाबंधन के दिन परस्पर के मतभेदों को बुलाकर धागे के पवित्र सूत्र में एक दूसरे को बांधकर परकसर रक्षा आकरके संत्यायुक्त समरस समाज के विसास में सक्रिय भूमिका बांधकर परस्पर रखा करके समतायुक्त समरस समाज के विकास में सक्रिया भुमिका निहाए | शासकों , धन कुबेरों ,प्रबुद्धों व् प्रज्ञावानों तथा साधारण जनता के बीच के भेद बहावों को मिटाकर उनमे एक दूसरे की सेवा करने ,रक्षा करने तथा परस्पर कर्तव्य-निर्वाह करने एक भाव जागृत करे

(अंश उद्धरण : पुस्तिका ,संघ उत्सव से )

वर्तमान समय जो अब तक के पिछले सारे काल खण्डों से अधिक चुनौतीपूर्ण और जोखिम भरा है देश अंदर और बाहर दोनों मोर्चों पर संघर्ष स्थति में है , ऐसे समय में ही संगठन की ताकत , संघ की उपयोगिता बार बार प्रमाणित होती रही है |

स्वयंसेवक , अपने श्रद्देय भगवा ध्वज को श्रद्धा बंधन सुमन अर्पित करते हैं और फिर पूरी दुनिया को एकाकार करने का संकल्प दोहराते जाते हैं ,दोहराते जाते हैं | रक्षा बंधन का दायरा इतना अधिक विशाल और पवित्र है कि समाज के लिए फिलहाल चुनौती बनी हुई सोचें इनमे कब कहाँ विलीन हो जाती हैं पता नहीं चलता |

संघ वर्दीधारी होने के कारण हरी वर्दी में अपनों को सरहदों पर सिंह नाद करते देखने को अपने बहुत करीब से महसूस करता है | सरलता से समझा जाए तो संगठन ही शक्ति है और रक्षा बंधन जैसे अटूट और रचनात्मक रिश्ते की ढाल जैसे  तो हमारे जांबाज़ फौजी ,पुलिस ,डॉक्टर सब हैं आज हमारी रक्षा सूत्र के निगेहबान |

सनातन संस्कृति को समझने वाले बहुत बेहतर समझते हैं कि जब एक दूसरे की रक्षा और सुरक्षा का संकल्प लिया जाता है तो उसके लिए सबसे पहली बुनियादी बात होती है एक दूसरे से जुड़ कर एक संगठित स्वर के रूप में स्थापित होना|

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