हिंदी सिनेमा सालों पहले ही समाज के प्रति अपना कर्त्तव्यबोध , नैतिकता ,सामाजिक सन्देश जैसी जिम्मेदारियों से खुद को मुक्त करके ,अभिव्यक्ति के नाम पर सारी मर्यादाएं पार करते हुए बिलकुल ही नग्न हो चुका है | समय समय पर सुशांत सिंह की मौत जैसी घटनाएं इस बात की तस्दीक करती हैं ऊपर से चमक दमक से लकदक करता बॉलीवुड असल में अंदर से बेहद बदबूदार और सड़ाँध से भरा हुआ है |

बस बात इतनी है कि जानते सब हैं मगर अपने अपने स्वार्थ और विवशता के कारण कोई भी खुल कर इन सब बातों का विरोध नहीं करता और जो ऐसा करने की हिम्मत करता है उसे फिर ये बॉलीवुड का खास गैंग हर तरह से शोषित और प्रताड़ित करके तोड़ने की जुगत में लग जाता है | कंगना रनौत , पायल रोहतगी आदि जैसे बाग़ी तेवर वाले लोग अकेले कर दिए जाते हैं |

ये तो अब एक कम उम्र का बालक भी समझ सकता है कि पिछले कुछ समय में हिंदी सिनेमा में ,बेतहाशा पैसा , यौन उन्मुक्ततता , अपराधजगत से साँठ गॉंठ आदि जैसे कुवृत्तियों के प्रवेश से हिंदी सिनेमा अब अपराध ,नशा , दिखावा ,हिंसा ,झूठ ,शोषण का एक खतरनाक अड्डा बन कर रह गया है | इस अड्डे के अपने डॉन हैं ,अपनी ही फ़ौज और अपने ही हथियार हैं , पैसा इसका अपना जब अपराधियों स्मग्लरों के पैसे से मिल जाता है तो वो पैसा फिर कानून ,सरकार ,प्रशासन ,मीडिया आदि को मैनेज करने में लगाया जाता है |

सोच के देखिये कि आजकल हर दूसरी तीसरी फिल्म सौ दो सौ और सात सौ करोड़ तक का बेतहाशा पैसा कमा कर देती है , वो फिल्म जो किसी की मेहनत ,किसी का दर्द ,किसी की मौत को , किसी के जीवन की कहानी को भुना कर सिर्फ और सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के धंधे को और अधिक चोखा बनाने की रेस में लगा हुआ ये अड्डा बहुत ही निष्ठुर , क्रूर ,धूर्त ,दोहरे चरित्र वाला और निर्दयी हो गया है |

पिछले दो दशकों में एक नई पीढ़ी जिसे लगता है कि इस दुनिया की शुरुआत व्हाट्सएप से हुई थी और अंत ट्विट्टर से हो जाएगा ,ये पीढ़ी बहुत तेज़ भागना चाहती है ,हालांकि पहले ही बहुत अधिक से  ज्यादा तेज़ तो ये पहले ही भाग रही है | ये शार्ट कट से शिखर तक पहुंचने को उतावली पीढ़ी फिर इसके लिए कुछ भी ,कैसे भी करने को तत्पर है | क्या आज से पांच वर्ष पहले किसी ने कल्पना की होगी कि कभी मोबाइल के कैमरे से अपनी ही फोटो खींचने ,सेल्फी लेने , के चक्कर में ही प्रति वर्ष सैकड़ों लोग अपनी जान गँवा देंगे ? मगर ये हो रहा है और खूब हो रहा है | तो इस तेज़ गति से भागती पीढ़ी को सारी पुरानी परम्पराएं ,मान्यताएं ,व्यवहार सबसे द्रोह  करना है और सबको चुनौती देनी है | और वो दे रहे हैं वो भी अपने स्तर और अपने अंदाज़ में ही |

एक समय हुआ करता था जब ग्रामीण क्षेत्रों में नाटक नाटिका में और फिर बहुत बाद में शुरू हुए सिनेमा जगत में भी ,युवतियों/महिलाओं की उपस्थिति पर समाज को आपत्ति हुआ करती थी | बदलते हुए समय के साथ सब कुछ बदलता गया और फिर ये परिवर्तन तो शाश्वत नियम है प्रकृति का | लेकिन इस बीच जो सबसे अधिक चिंताजनक बात हुई वो ये कि नारी ने बहुत ही आसानी से खुद को एक उत्पाद की तरह देखे समझे जाने जैसे गंभीर बदलाव को भी अपनी मौन सहमति दे दी |

सिर्फ एक आँख मारने वाले दृश्य को लेकर रातों रात देश में मशहूर हुई नवोदित अभिनेत्री प्रिया वारियर का  पूरा अभिनय करियर उस एक दृश्य के पार्श्व में चला गया | ही टू और मी टू ,कास्टिंग काउच ,नाम आप बदलते हुए समय के हिसाब से जो समझें मगर ये हिंदी सिनेमा और सिनेमा ही क्यों ,बड़े कार्पोरेट जगत , मीडिया आदि तमाम ,हर क्षेत्र में आज भी अब भी स्त्री को भोग्या उत्पाद सा बना कर रख दिया गया है | और ये इतना सर्व ग्राह्य होता जा रहा है कि इसकी मौन अप्रत्यक्ष सहमति खुद परिवार और समाज से भी मिल जाती है |

एक नवोदित अभिनेत्री ,जुम्मा जुम्मा एक आध सिनेमा या उससे थोड़े अधिक सिनेमाओं में अभिनय करने वाली एक नई अभिनेत्री ,के अपने और परिवार के पास खर्च करने के लिए बेतहाशा पैसे का जाना और वो भी लगातार होते रहना | बेतहाशा संपत्ति और आय के स्रोतों का स्पष्ट नहीं होना | खुद रिया का पहले सीबीआई जाँच की मांग करना और फिर खुद ही उसका विरोध करना | देश के सबसे अधिक महंगे वकील में से एक को अपने बचाव के लिए अनुबंधित करना | आदित्य ठाकरे से लेकर महेश भट्ट तक से नजदीकियों की खबरें ,फोटो आदि | इतना सब कुछ सामने होने के बावजूद भी पूरे दो महीने की जांच के बावजूद मुम्बई पुलिस कुछ भी कहने बताने में संकोच हो रहा है | इन सबका सीधा सा अर्थ है कि ये घटना सरल और स्वाभाविक नहीं है ,इसलिए इससे जुड़े सच ,चाहे वो कितना ही घिनौना और कड़वा क्यों न हो  ,सामने आना बहुत जरूरी है |

इस देश में एक ख़्वाब जो सबसे ज्यादा बेचा खरीदा  जा रहा है वो है सबको ही बहुत कम समय और मेहनत में पूरे देश में लोकप्रिय होने के नए नए नुस्खे | एक अभी अभी थोड़े दिन पहले सरकार द्वारा बंद किया हुआ टिक टॉक और   ऐसे तमाम टीवी शोज़ , रिएल्टी शोज़ , टैलेंट हंट आदि के नाम पर नई पीढ़ी की एक पूरी नस्ल को ही जबरन स्टार बनाने की जो कवायद चल रही है ये सब उसी की परिणति है | रातों रात अरबों लोगों में पहचान बना कर हीरो हीरोइन बन कर स्पेशल  हो जाना भला कौन नहीं चाहेगा ? फिर इसके लिए रास्ते और तरीके जो भी हों ,फर्क ही क्या पड़ता है ? 

इस बीच मैं परवीन बॉबी ,भाग्य श्री , जिया खान , प्रत्यूषा बनर्जी , दिशा सालवान ,और इन जैसे जाने कितने ही नामों के जीवन मृत्यु के साथ जुड़े सच  को जान समझ रहा हूँ ,गुस्सा और तल्खी बढ़ती जा रही है हिंदी सिनेमा के प्रति। …….मिलता हूँ अगले आलेख में इसी विषय के साथ | 

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