आज लगभग लाखों लोग कोरोना से मर चुके हैं । क्या हम कह सकते हैं कि सन २०२० में विश्व में एक कुरीति कोरोना प्रथा थी?
लगभग हर रोज अनगिनत लोग आत्महत्या करते हैं । सुना तो ये भी जाता है कि किसी देश में डेथ ट्यूरिज़्म भी प्रचलित है जहाँ आप अपने मनचाहे तरीके से मौत चुन सकते हैं क्योंकि वहाँ यूथेनेसिया गैर कानूनी नहीं । परन्तु क्या हम कह सकते हैं कि विश्व में आज आत्महत्या प्रथा प्रचलित है ?
दुनियाँ में हर रोज इतने घोटाले सामने आ रहे हैं पर क्या हम कह सकते हैं कि आजकल हमारे देश या विश्व में आर्थिक घोटाला प्रथा चल रही है?
परन्तु हमारे स्यूडो दान्ते राय साहेब ने बेंटिक भैया को कहा कि सनातनियों / हिन्दुओं में सती प्रथा नामक कुरीति है ( जबकि मेरा यकीन है कि राय साहेब ने बंगाल के बाद लंदन हीं देखा होगा भारत के बाकी हिस्से लंदन से लौट कर हीं देखा होगा या नहीं भी ) और भैय्या जी ने पहले बंगाल फिर महाराष्ट्र और ….. में सती प्रथा पर रोक लगा दी।
क्या १३५ करोड़ भारतीयों में कम से कम १ करोड़ लोग ये कह सकते हैं कि मेरे पूर्वजों में से कोई एक महिला सती हुई थी.? हरगिज नहीं . पर सती प्रथा है जबकि लगभग १ करोड़ लोग कोरोनाग्रस्त हैं पर WHO कोरोना प्रथा की घोषणा नहीं कर रहा है? आखिर क्यों ? जबकि अबतक एक धर्म के इतिहास में कानूनन लगभग एक करोड़ लोगों के साथ ये घटना हो चुकी होगी कि एक बार पति ने स्वेच्छा पत्नी परित्याग प्रक्रिया के बाद पछतावा करते हुए अगर उसी पत्नी के साथ रहने का निर्णय उस लिया तो उसे धर्माधिकारी के आदेशानुसार अपनी पत्नी किसी अन्य पुरुष के पास कायिक भोग के लिये छोड़नी होगी ( कम से कम एक रात अधिक का कोई निर्धारंण नहीं … ये सब आपसी श्रद्धा का विषय है ) … फिर ( इस मानवीय दया से परिपूर्ण प्रक्रिया के बाद ) दोनो एक साथ रह पायेंगे… पर ये कुप्रथा नहीं है। ये तो धार्मिक यम और नियम हैं पंच महाव्रत है। इस पर बात ना करें …. असहिष्णुता फैल जायेगी।
गणित कहता है कि सत्य की खोज के लिये एक बार प्रचलित झूठ को मान लिया जाये । तो चलें …एक बार इस नव दान्ते की बात मान ली जाये कि सती प्रथा भारत में प्रचलित थी और एक मर्द की लाश के साथ लगभग एक महिला ( ज्यादा भी हो सकता है क्योंकि बहुविवाह / बाल विवाह भी प्रचलित था )हर रोज जीवित जलाई जा रही थी।
अब एक घर की कामना कीजिये कि घर का एक अधेड़ मर गया हो और उसकी पत्नी को भी साथ जलाने का सामाजिक त्योहार सामने हो। मतलब एक विमान तैय्यार किया जा रहा हो और एक भैंसा गाड़ी , बैल गाड़ी या रस्से के साथ पालकी क्योंकि एक जिन्दा औरत भी जलाने के लिये ले जाई जा रही होगी ।
और ये हर रोज का काम होगा आज इस गाँव तो कल उस गाँव। दादी नानी नाम का रिश्तेदार तो डायनासोर और आर्किओप्टेरिक्स हो गया होगा । क्या हँसी आ रही है या रोना आ रहा है? हँसिये या रोइये कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि यह प्रथा है। रोज का मामला रहा होगा ना ? इसीलिये तो ब्रह्म समाज के पहले सिद्धार्थ का हृदय व्यथा से द्रवित हो गया होगा।
अगर हिन्दुओं में सती प्रथा प्रचलित थी तो ये कहावत गलत है क्या … राँड , साँढ , सीढ़ी, संन्यासी …. । ये विधवायें बँची कैसे … विलियम बेंटिक को घिस्सा देकर ( साभार शिवानी , कथा शीर्षक सती ) ।
मिथिला में विधवाओं के लिये सफ़ेद साड़ी पहनने का रिवाज है और उस साड़ी को शान्तिपुरी साड़ी कहते हैं और यह स्थान नदिया बंगाल में हीं है। क्या ये मज़ाक नहीं है कि एक कपड़ा निर्माता समूह सिर्फ़ भारत के अन्य प्रदेशों की विधवाओं के लिये सफ़ेद साड़ी बना रहा है कारण राय साहब के समाज में तो कोई विधवा हो हीं नहीं सकती थी। …. सती भी आखिर कोई चीज़ है , है कि नहीं।
खैर भारत मं सती शब्द का मूल प्रजापति दक्ष की बेटी सती थी पर वह पिता द्वारा पति के अपमान को न सह कर स्वयं पति के जीवित रहते हीं योगाग्नि में जल गई। महर्षि दधीचि की पत्नी के भी सती होने का जिक्र है। फिर त्रेता में सती सुलोचना का जिक्र है पर उसकी सास मन्दोदरी ने इस प्रथा का पालन नहीं किया। द्वापर में माद्री ने सती होने का निर्णय लिया , कुन्ती जीवित रही। कंस की पत्नियों ने भी सती होने की कोशिश नहीं की ।गीता के पहले अध्याय में अर्जुन की पूरी व्यथा पतिहीन स्त्रियों के व्यभिचार के कारण उत्पन्न वर्णसंकर सन्तानों की उत्पत्ति और उस कारण श्राद्ध और पिण्डोदक क्रिया के नाश होने को लेकर है। श्री कृष्ण ने भी तीन तेरह सुना कर अर्जुन के मुख्य सवाल को इग्नोर हीं किया । खैर कारण तो वही जाने पर अगर सती होना परम्परा होती तो अर्जुन का विषाद व्यर्थ था। इधर पति मरा उधर पत्नी सती । फिर कैसा व्यभिचार कैसी वर्ण संकरता? इसके अलावा लाखों सैनिक मरे पर किसी स्त्री ने अपने पति की मृत देह के साथ सती बनने की कोशिश नहीं की। मतलब यह प्रथा नहीं थी बस इक्का दुक्का घटने वाली विरल ( रेयरेस्ट आफ़ दि रेयर ) घटना थी।
कलियुग में ५१० ई० के एरण अभिलेख में राजा भानुगुप्त के अमात्य गोपराज के युद्ध में वीरगति के बाद उसकी पत्नी ने सती होने का निर्णय लिया। इसके बाद की सरी सती / जौहर की घटनायें मुगल आक्रमण काल की हैं जिसमें पराजय की स्थिति में आक्रमणकारियों के द्वारा अपने मृत शरीर के साथ किसी प्रकार के यौन व्यभिचार को न होने देने के संकल्प ने हीं इस विरल घटना को जन्म दिया ( अधिक जानकारी के लिये नैक्रोफ़ीलिया को इन्टरनेट पर तलाशें )। अत्यधिक प्रेम के कारण पतिके निधन के बाद पत्नी के स्वतः प्राण त्याग को सती हो जाने की घटना को सतीत्व का प्रमाण मान लेने के कारण यह बात श्रद्देय हो गई हो या जौहर जैसे भीषण त्याग के कारण सती को देवी की तुलना मिल गई हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये पर सती प्रथा के रूप में प्रचलित थी मुझे इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। कनिंघम के चेलों के कुछ रेखाचित्र भी सती की घटना पर बनाये हों तो अलग बात है।
अब चलें भारत के दिल की बात अग्नि पुराण और पराशर संहिता की ओर जहाँ लिखा गया है कि –
नष्टे मृते प्रव्रजिते क्लीवे च पतिते पतौ।
पंचस्वापत्सु नारीणाम् पतिरन्योविधीयते ॥
अर्थात् पति के नष्ट हो जाने ( खो जाने ) , मर जाने, संन्यासी होने , नपुंसक होने तथा पतित होने की अवस्था में उसकी पत्नी का दूसरा विवाह होना चाहिये।
अगर सती होना परम्परा होती तो ऋषि पराशर को दूसरे विवाह की बात कहने की जरूरत हीं नहीं थी।
एक और बात यदि सती प्रथा होती तो लोहित स्मृति में विधवाओं के प्रकार नहीं दिये गये होते –
दुर्भगा कुटिला काष्ठा चरमा चटुला वशा
वीररण्डा कुण्डरण्डावाधारण्डा तथापरा
दशानामपि चैतासां दशमाद्वात्परम् तथा ॥

अब श्राद्धादिक नियमो पर ध्यान दें तो कहा गया है कि पुरुष के मरने पर मुखाग्नि देने की परम्परा में कहा गया है कि “पुत्राभावे पत्नी स्यात् तदभावे सहोदरः” अर्थात् अगर मृतक पुरुष का पुत्र ना हो तो पत्नी मुखाग्नि दे और पत्नी के भी ना रहने पर सहोदर भाई। अब इस परिस्थिति में पत्नी मुखाग्नि दे या सती हो, सोचिये ?

अब प्राचीन भारत से आधुनिक भारत तक सती यानी पति के मृत देह के साथ अपना देह भी आग में जला देने की घटना लगभग बहुत कम है। फिर इसे एक प्रथा के रूप में प्रचारित या प्रसारित करने के पीछे राय साहब की सोच अपने स्थापित नये सम्प्रदाय ब्रह्म समाज में सदस्य बढ़ाने से अधिक कुछ नहीं था।
पति की मृत्यु होने पर पति के मृत देह के साथ स्वयं अग्नि स्नान कर ल्रेना एक अनूठी घटना हो सकती है, पति के मृत्यु सुनने के बाद पत्नी का सहज प्राण त्याग प्रेम की पराकाष्ठा हो सकती है या अपनी वैधव्य की स्थिति में असहायता की भावी आशंका में पति की चिता के साथ स्वतः जल जाना एक अवसादग्रस्त करने वाली घटना हो सकती है पर इन घटनाओं के आधार पर आप यकीनी तौर पर भले ना कह सकें पर आपको इस बात पर शक तो हो हीं जायेगा कि सनातन धर्म में सती प्रथा थी नहीं।

-अंजन कुमार ठाकुर
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