टाइम की प्रभावशाली लिस्ट में शाहीन प्रयोग
देशविरोधी सोच और हिंसा का समर्थन देने वाली किसी सोच को प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल करके टाइम वाले आखिरकार क्या संदेश देना चाहते हैं?
देशविरोधी सोच और हिंसा का समर्थन देने वाली किसी सोच को प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल करके टाइम वाले आखिरकार क्या संदेश देना चाहते हैं?
अमेरिका की प्रसिद्ध मैगजीन ‘टाइम’ ने इस वर्ष विश्व के सौ प्रभावशाली लोगों की सूची जारी की है। टाइम की इस साल की सूची में पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा बाॅलीवुड एक्टर आयुष्मान खुराना, शाहीन बाग आंदोलन से सुर्खियों में आईं बिलकिस दादी और गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई और प्रोफेसर रविंद्र गुप्ता शामिल हैं। मूलतः यूपी के बुलंदशहर जिले और फिलवक्त दिल्ली में रहने वाली 82 वर्षीय बिलकिस दादी टाइम की लिस्ट में शामिल होते ही फिर एक बार सुर्खियों में है। यहां सवाल यह है कि जिस आंदोलन की कोख से हिंसा ने जन्म लिया हो। जिस आंदोलन की वजह से देश में जान-माल का भारी नुकसान हुआ हो। जिस आंदोलन से दिल्ली के लाखों लोगों को तीन महीने अत्यधिक कष्ट उठाने पड़े हों। जिस आंदोलन से निकले नारों ने देश में भय का माहौल बनाया हो? जिस आंदोलन का बायोप्राडक्ट देशभर में हिंसा के तौर पर सामने आया हो। ऐसे किसी आंदोलन से जुड़ा कोई नाम या चेहरा भला कैसे प्रभावशाली हो सकता है? वो किस तरह सकरात्मक तरीके से देश को प्रभावित कर सकता है? किसी खास समूह, वर्ग या गैंग का ऐसे चेहरे या नाम से प्रभावित होना अलग बात है, लेकिन किसी लोकतांत्रिक और पंथ निरपेक्ष देश में ऐसे चेहरों का कभी प्रभावशाली नहीं माने जाने की परंपरा रही है।
ये खुला तथ्य है कि शाहीन बाग के धरने ने शांतिपूर्ण विरोध की आड़ में देशभर में हिंसा, लूटपाट और उपद्रव की जमीन तैयार की। इस आंदोलन से निकली गर्म हवाओं ने दिल्ली समेत देश के कई राज्यों को हिंसा की अग्नि की झुलसा डाला। दिल्ली की हिंसा में 50 से अधिक बेकसूर लोग मारे गये। करोड़ो रुपये कीं सरकारी और निजी सम्पत्ति स्वाहा हो गई। ऐसे में सवाल यह है कि देशविरोधी सोच और हिंसा का समर्थन देने वाली किसी सोच को प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल करके टाइम वाले आखिरकार क्या संदेश देना चाहते हैं?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि पश्चिमी मीडिया का शुरू से ही हमारे देश के प्रति नजरिया नकारात्मक रहा है। वो तेजी से विकसित और शक्तिशाली होते भारत से चिढ़ता है। पश्चिमी मीडिया ने देश के अंदर और बाहर हमेशाा देशविरोधी विचारधारा और ताकतों को मजबूत करने और आवाज देने का काम किया है। टाइम के संपादक कार्ल विक ने मैगजीन के ताजा अंक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुस्लिम विरोधी साबित करने की पूरी कोशिश की है। पश्चिमी मीडिया एक सोची समझी रणनीति और एजेण्डे के तहत वो किसी न किसी तरह विश्व बिरादरी में भारत सरकार की अल्पसंख्यक, किसान, दलित, किसान, आदिवासी विरोधी छवि बनाने का कुचक्र रचता रहता है। शाहीन बाग की दादी को प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल करना पश्चिमी मीडिया के भारत विरोधी एजेण्डा का एक हिस्सा है। वामंपथी विचाराधारा से प्रभावित पश्चिमी मीडिया की एक मजबूत समर्थक लाॅबी नेताओं, सामाजिक कार्यकताओं, पत्रकारों, बुद्विजीवियों आदि के रूप में हमारे देश में मौजूद है। ये लाॅबी देश में भारत विरोधी शक्तियों के एजेण्डे को आगे बढ़ाने का काम करती हैं। एजेण्डे को लागू करने के लिये जमीन तैयारी करती है। शाहीन बाग का आंदोलन भी उसी भारत विरोधी लाॅबी के दिमाग की उपज था, जिसका सिर्फ और सिर्फ एक मकसद था, भारत सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी घोषित करना।
देखा जाए तो शाहीन बाग के आंदोलन में देशविरोधी लाॅबी ने जिस तरह भोली-भाली घरेलु महिलाओं को बरगलाया, वो अपने तरीके का शायद पहला मामला है। शाहीन बाग से पूर्व देश में कई बड़े और असरकारी आंदोलन हुये हैं। लेकिन किसी आंदोलन की आड़ में महीनों मुख्य मार्ग पर कब्जा करने से लेकर देशभर में दंगों की जमीन तैयार करने का इतिहास आपको नहीं मिलेगा। धरने में शामिल अधिकतर दादियों को तो सीएए के बारे में ज्यादा जानकारी ही नहीं थी। उन्हें यह भी मालूम नहीं था कि उनके हाथ में तिरंगा और प्लेकार्ड पकड़ाकर चंद शातिर दिमाग उनसे अपना कौन सा देश और समाज विरोधी स्वार्थ सिद्ध करवा रहे हैं। दादियों को तो शायद ये भी पता नहीं होगा कि उनकी आड़ में कितने लोगों ने लाखों-करोड़ों की कमाई कर ली। कितने बेनाम और सी ग्रेड चेहरे रातों रात मीडिया में छा गये। कितनों ने अपनी राजनीति चमका ली। दिल्ली से लखनऊ तक कई ऐसे सोशल एक्टिविस्ट, राजनीतिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी और पत्रकार हैं, जिनकी दुकानें शाहीन बाग के आंदोलन से गुलजार हुई हैं।
देश के अंदर और तमाम ऐसी शक्तियां है जो मोदी सरकार की छवि को निरंतर दागदार करने में जुटी हैं। वो किसी न किसी तरह मोदी सरकार को मुस्लिम विरोधी साबित करने में जुटी रहती हैं। वास्तव में वर्ष 2019 में एनडीए की दोबारा धमाकेदार वापसी, तीन तलाक पर कानून, जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाकर मोदी सरकार ने एक साथ तमाम लोगों की राजनीति, समाजसेवा और दलाली की दुकानों का शटर गिरा दिया था। मोदी सरकार के इन फैसलों से नाराज लाॅबी ने नागरिकता कानून की आड़ में अपने गुस्से, खीझ और नाराजगी का सार्वजनिक उग्र प्रदर्शन किया। दिल्ली और देश के कई इलाकों में उपद्रव और हिंसा करके एक समुदाय ने अपनी ताकत का एहसास कराने का प्रयोग किया था। दिल्ली पुलिस की एफआईआर में इस बात का खुलाास हो चुका है कि दिल्ली हिंसा में तमाम देश विरोधी ताकतें सक्रिय थी। शाहीन बाग में आंदोलन के नाम पर जो कुछ भी हुआ वो सबने देखा है। आंदोलनकारी महीनों सड़क घेरकर बैठे रहे, जिसके कारण महीनों तक लाखों लोगों की जिन्दगी बुरी तरह प्रभावित हुई। शाहीन बाग और आसपास के क्षेत्र के बुजुर्गों, बच्चों, महिलाओं, रोगियों, आफिस जाने वाले और व्यापारियों ने खून के आंसू इस आंदोलन की वजह से रोये हैं। जिस तरह आंदोलनकारी गैर कानूनी तरीके से तीन महीने तक सड़क कब्जाये रहे, ऐसा कोई दूसरा उदाहरण आपकों पढ़न-सुनने को नहीं मिलेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि शाहीन बाग की दादी का नाम सोची समझी रणनीति के तहत प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया गया है। असल में पश्चिम का भारत विरोधी मीडिया और देश में उसकी समर्थक लाॅबी दादी का नाम लिस्ट में शामिल करने ये संदेश देना चाहती है कि भारत के मुसलमानों द्वारा नागरिकता कानून का विरोध करना उचित था। नागरिकता कानून के विरोध की आड़ में हुई हिंसा, उपद्रव, अराजकता और गैर कानून काम भी जायज थे। असल में देशविरोधी लाॅबी शाहीन बाग की दादी की आड़ में अपने तमाम कुकृत्यों, हिंसा, अराजकता और गुनाहों को छिपाना चाहती है। वो यह साबित करना चाहती है कि मोदी सरकार ने ऐसा माहौल तैयार किये जिसे अल्पसंख्यक डर गये। वो आंदोलन को मजबूर हो गये। और उसके बाद शाहीन बाग और हिंसा तक जो कुछ भी हुआ वो मोदी सरकार की अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों की वजह से हुआ। देश में अराजकता और हिंसा का प्रदर्शन करने वाले मासूम और डरे हुये थे। वो न्याय और समानता की खुली हवा में सांस लेना भर चाहते थे।
पश्चिमी मीडिया और देश में बैठी उसकी समर्थक लाॅबी की यही मानसिकता है कि उन्हें शाहीन बाग जैसे अराजक, अलोकतांत्रिक, गैरकानूनी आंदोलन की दादियां तो दिख जाती हैं, लेकिन देश की हजारों बेटियों को प्रेरित करने वाली ‘शूटर दादियां’ दिखाई नहीं देतीं। टाइम वालों को देश को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बुलंदी पर ले जाने वाले इसरो प्रमुख के. सिवन, लाॅकडाउन में लाखों देशवासियों के मददगार सोनू सूद, सैकड़ों अनाथ बच्चों के लिये जीवन समर्पित करने वाली सिन्धुताई और तीस साल अथक मेहनत करके तीन किलोमीटर लंबी नहर खोदने वाले लौंगी भुईंयां जैसे तमाम प्रेरणादायी और प्रभावशाली लोगों पर नजर नहीं आते। बिलकिस दादी आपको तो शायद पता भी ही नहीं होगा कि आपकी आड़ में देशविरोधी ताकतों ने देश की प्रतिष्ठा, भाईचारे, सौहार्द और शांति के साथ कितना बड़ा षडयंत्र और खिलवाड़ किया है। और टाइम वालों, कभी टाइम मिले तो अपनी नकारात्मक, एकपक्षीय, सड़ी-गली सोच और पत्रकारिता से थोड़ा सा ऊपर उठकर देखना आपको देश में ऐसे तमाम चेहरे मिल जाएंगे जिन्हें देशवासी प्रभावशाली ही नहीं, प्रेरणादायी भी मानते हैं। टाइम की लिस्ट में दादी का नाम शमिल करना कोई संयोग नहीं बल्कि शाहीन बाग और दिल्ली हिंसा के पीछे लगी ताकतों का एक शाहीन प्रयोग है।
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