हर बुद्धिजीवी, प्रगतिवादी, नारीवादी, साम्यवादी या किसी भी प्रकार के वादी को वर्तमान सरकार की मँहगाई निरन्त्रण तकनीक से आपत्ति रहती है और दूसरा सरकार के हर आपातकालीन आर्थिक कदम से। जिन्हें चन्द्रशेखर के सोना गिरवी से आपत्ति थी आजकल विमानन कम्पनी , बन्दरगाह , रेलवे स्टेशन आदि की गिरवी रखने की प्रक्रिया के समर्थक हैं। जो कभी एफ़ डी आई के समर्थक थे आज उसके लागू होने से चिढ़ रहे हैं और ये हाल हर शासन काल में सही है … मतलब भूमिकायें बदलती हैं क्रियायें नहीं …. द शो मस्ट गो ऑन।

हर सत्ता परिवर्तन मँहगाई नियन्त्रण और गरीबी उन्मूलन के असंभव वादों के एवज़ में जनता से प्राप्त समर्थन और मतों के आधार पर हीं हुआ है और हर नई उम्मीद और नई सरकार थोड़ी मँहगाई और बढ़ा देती है … और इसके बाद मतदाता फिर किसी नये मसीहा की उम्मीद सजाना शुरु कर देता है उसमें मोरार जी , विश्वनाथ , चन्द्रशेखर, अटल, मनमोहन , केजरीवाल, लालू नीतीश,मोदी, राहुल , कन्हैया, हार्दिक, जिग्नेश आदि आदि कोई भी हो सकता है।
परन्तु हर नई सरकार कुछ नया टैक्स हीं लगाती है। मँहगाई थोड़ा और बढ़ जाती है।


तो एक बार विचार करें कि
जब आपको वेतन के साथ मँहगाई भत्ता बढ़ता है आपको शिकायत क्यों नहीं होती?
अगर किसान के फ़सलों की खरीदी मूल्य में वृद्धि होती है तो आपको आपत्ति क्यों नहीं होती?
आप पेट्रोल पम्प चला रहे हैं और पेट्रोल की कीमत बढ़ जाये तो आपको आपत्ति क्यों नहीं होती है?
कोई नई सब्ज़ी अपने शुरुआती दिनों में मँहगी बिकती है पर आपको उसे खरीदने में शिकायत ना होकर गौरव की अनुभूति क्यों होती है?
सोने की बढ़ती कीमतें आपक परेशान क्यों नहीं करती हैं?
कारण एक है और आपको पता है कि आपूर्ति ज्यादा और माँग कम होगी तो कीमत गिरेगी और मँहगाई कम होगी और विपरीत होने पर यही सब उलटा होगा।
पर हम भारतीयों को प्याज़ मँहगा होने पर प्याज़ की तलब और बढ़ जाती है?
पेट्रोल की कीमत पर तो उन्हें भी नाराज़ग़ी होती है जिनके पास सिर्फ़ साइकिल होती है… आखिर क्यों?
अगर माइनिंग सेक्टर में कर्मचारियों का वेतन तो बढ़े पर तेल की कीमत कम हो आखिर क्यों?
किसान से गन्ना का खरीद मूल्य तो बढ़े पर चीनी सस्ती हीं बिके आखिर क्यों?
और किसान खाद बीज ये सब अध्हिक कीमत पर खरीदे पर अपनी उपज सस्ते में बेचे आखिर क्यों?
अब इतना तो स्पष्ट हो हीं गया कि क्रय या विक्रय मूल्य बाज़ार तय करता है सरकार नहीं… सरकार कुछ दिनों के लिये कुछ सब्सीडी देकर किसी अनिवार्य वस्तु की की मत नियन्त्रित रख सकती है बस ,,, और वो भी बस एक सीमित अवधि के लिये।
इसी उदारता के क्रम में कभी कोई एन टी आर १ रुपये किलो चावल बिकबा देता है तो कोई अम्मा अम्मा कैण्टीन चला देती है। कोई बच्चे बच्चियों को साइकिल तो कोई लैपटॉप मुफ़्त में बाँट देता है तो कभी कभी कुछ सरकार बैंकों को जिलाने के लिये या उनकी एन पी ए घटाने के लिये किसानों के ऋण माफ़ करने की आलमगीरी भी दिखाती है और इन सब शोशेवाज़ियों के खर्चे टैक्स के रूप में आम जनता के लिये मँहगाई बढ़ा देते हैं।

सरकारें बस बाज़ार को सम्हालती हैं , कभी कभी आपका भी कुछ भला हो जाये तो क्या कीजै।
ये बाज़ार हीं है जो किसानों की फ़सल २ रुपये प्रति किलो खेतों से उठाता है और आपको २०० रुपये प्रति किलो पैकेजिंग करके आपको बेचता है। पर आप भी किसान से २ के बदले डेढ़ रुपये में हीं खरीदना पसन्द करेंगे पर २०० रुपये प्रति किलो बिग बाज़ार से वही खरीदेंगे।
मँहगाई के लिये अन्ततः आप हीं जिम्मेवार हैं.. वैसे आप सरकार बदलने का खेल खेलते रहिये।
जय हो…

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