कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुबमीनार बनाई, यह स्पष्ट झूठा प्रचार है, यह अनेक प्रमाणों के आधार पर सिद्ध हो सकता है । प्रसिद्ध इतिहासकार आदरणीय पु.ना. ओक द्वारा किए गए शोध के कारणे ‘ताजमहल’ नहीं, अपितु ‘तेजोमहालय’ ऐसा हम दृढतापूर्वक कह सकते हैं । शाहजहां ने ताजमहल बनाया, इसके कुछ प्रमाण नहीं हैं । इस्लामी आक्रमणकारियों ने हिन्दुओं के हजारों मंदिर तोडे और हडपे । एक एक मंदिर के लिए 30-35 वर्ष न्यायालयीन संघर्ष करने की अपेक्षा संसद में हिंदुओं के मंदिर पुनः प्राप्त करने के लिए एक कानून बनाना चाहिए । हिन्दुत्वनिष्ठ दल को बहुमत होने के कारण यह सहज संभव है, ऐसा स्पष्ट प्रतिपादन इतिहास के अध्ययनकर्ता तथा अधिवक्ता सतीश देशपांडे ने किया । वे हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा ‘ताजमहल नहीं ‘तेजोमहालय’, कुतुबमीनार नहीं ‘विष्णुस्तंभ’ !’ इस विषय पर आयोजित ‘ऑनलाइन’ विशेष संवाद में बोल रहे थे ।
भारतीय पुरातत्व विभाग ने 1970 से आज तक इंटैक और आगाखान कमिटी के अधीन रहकर काम किया । दूसरी ओर पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से झूठा इतिहास हिंदुओं के माथे पर मारा । हमारे मंदिर और इतिहास की स्मृतियां हटाने के लिए सुनियोजित प्रयास किया गया । सरकार को हिन्दुओं की ऐतिहासिक धरोहर और मंदिरों का शोध कर उन्हें सबके लिए खोलना चाहिए; परंतु देश का पुरातत्त्व विभाग भी राजनीति में फंसा है । अल्पसंख्यकों की चापलूसी के कारण अनेक हिन्दू वास्तु जो मुसलमानों ने स्वयं के नियंत्रण में ली हैं, वे आज भी वैसी ही हैं, ऐसा प्रतिपादन ‘द्रौपदी ड्रीम ट्रस्ट’ की संस्थापिका नीरा मिश्रा ने किया ।
इस समय ‘दिल्ली उच्च न्यायालय’ की अधिवक्ता अमिता सचदेवा ने कहा कि, आज जो धार्मिक स्थल इस्लामी शासकों द्वारा निर्मित बताए जा रहे हैं, वे वास्तव में हिन्दुओं के प्राचीन धार्मिक स्थल हैं । यह अधिकांश हिन्दुओं को ज्ञात ही नहीं है । इसलिए हिंदुओं में इससे संबंधित जागृति करनी चाहिए । आज मंदिरों के पैसे का उपयोग सरकारी भ्रष्टाचार के लिए किया जा रहा है । इसका हिन्दुओं को विरोध करना चाहिए । कुतुबमीनार हिन्दू और जैनों के 27 मंदिर तोडकर बनाई गई है, ऐसा पुरातत्त्व विभाग ने स्वयं प्रकाशित पुस्तक में कहा है; परंतु इस पुस्तक के तथ्य के विरोध में भूमिका उन्होंने न्यायालय में ली है । इसके विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए ।
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