अभी अभी खबर पढ़ी की बौद्ध भिक्षुओं ने कहा है, यदि रामलला मंदिर का निर्माण कार्य एक महीने में बंद नहीं हुआ तो वह आमरण अनशन पर बैठेंगें। मन बहुत विचलित हो गया। उनका दवा है की रामजन्मभूमि एक बौद्ध स्थल था। उनकी मांग यह भी है की इसे संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को ) को सौंप देना चाहिए और इस स्थल की खुदाई की जानी चाहिए।

बौद्ध भिक्षुओं का कहना है की जमीन के समतलीकरण में जो प्राचीन कलाकृतियां मिली है वह सिद्ध करती है की रामजन्मभूमि एक बौद्ध स्थल रहा है। वो चाहते हैं समतलीकरण में मिली हुयी सारी कलाकृतियों को सार्वजनिक किया जाये। भूमि समतलीकरण में एक शिवलिंग, सात काले पत्थर से बने हुए स्तम्भ, छै लाल बलुआ पत्थर से बने हुए स्तम्भ, एक पुष्पाकृति युक्त शिखर चक्र और चार खंडित मूर्तियां मिली थी। बौद्ध धर्म मानने वाले अयोध्या को साकेत मानते हैं, जो की प्राचीन काल में बौद्ध धर्म का केंद्र था। बौद्ध इस पुष्पाकृति युक्त शिखर चक्र को “धम्म चक्र” बता रहे हैं।

अयोध्या के जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय पर धरना रखकर साकेत मुक्ति आंदोलन के सदस्य और अखिल भारतीय आज़ाद बौध धम्म सेना ने कहा कि वे बौद्ध धर्म के संकेतों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश को भी इस बारे में ज्ञापन दिया है।

कांग्रेस के नेता श्री उदित राज ने मई २०२० में ही दावा किया था कि समतलीकरण में मिली हुयी सभी कलाकृतियां बौद्ध धर्म की हैं और उनकी इस बात को केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री श्री प्रह्लाद पटेल ने नकार दिया था। अभी तक मिली जानकारी के अनुसार समतलीकरण में मिली हुई कलाकृति, धम्म चक्र से भिन्न हैं।

चार सौ वर्षों से अधिक लड़ाई लड़ी हैं रामलला ने और अब यह रुकावट। इससे पहले भी नेपाल के प्रधानमंत्री के पी ओली शर्मा ने कहा कि रामलला अयोध्या के नहीं थे बल्कि वे तो नेपाल के थे। बहुत सोचने के बाद भी समझने में असमर्थ हूँ, ना जाने क्यों सबको रामलला के मंदिर बनाये जाने से इतनी समस्या है। क्यों हर कोई मंदिर निर्माण में बाधा डालना चाहता है ? आखिर हमारे रामलला कितना और इंतज़ार करेंगे?

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