कोजागरी पूर्णिमा ( शरद पूर्णिमा )

कोजागरी पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट रहता है इस रात्रि को लक्ष्मी तथा इंद्र की पूजा की जाती है । मध्य रात्रि लक्ष्मी जी पृथ्वी पर आकर जो जगा रहता है उसको धन-धान्य और समृद्धि प्रदान करती है, ऐसी कथा है । इस दिन का महत्व और पूजा विधि सनातन संस्था द्वारा संकलित किए हुए लेख से समझ कर लेते हैं ।
इतिहास : श्रीमद्भागवत के कथनानुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज मंडल में रास उत्सव मनाया था ।
इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट अर्थात कोजागरी पर्वत के निकट रहता है, इसी कारण इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहते हैं ।
उत्सव मनाने की पद्धति : इस दिन नवान्न (नए धान्य का) भोजन करते हैं। श्री लक्ष्मी जी एवं ऐरावत पर बैठे हुए इंद्र की पूजा रात को के जाती है, पूजा होने के पश्चात पोहा और नारियल का पानी भगवान और पितरो को समर्पित कर नैवेद्य के रूप में ग्रहण करते हैं और अपने घर आए अन्य लोगों को भी देते हैं । शरद ऋतु के पूर्णिमा के स्वच्छ चांदनी में दूध ओटाकर चंद्रमा को ओटाए हुए दूध का नैवेद्य दिखाते हैं और उसके पश्चात नैवेद्य के रूप में वह दूध ग्रहण करते हैं चंद्रमा के प्रकाश में एक अनोखी आयुर्वेदिक शक्ति है । उस कारण यह दूध आरोग्य दायी बनता है इस रात्रि को जागरण करते हैं मनोरंजन के लिए अलग-अलग खेल खेले जाते हैं, दूसरे दिन सुबह पूजा का उद्यापन किया जाता है ।
कोजागिरी पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी और इंद्र इनकी पूजा करने का कारण : कोजागरी पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी तथा इंद्र की पूजा की जाती है । उसके कारण इस इस प्रकार हैं, इन दो देवताओं को पृथ्वी पर तत्त्व रूप से अवतरण के लिए चंद्र आग्रहात्मक आवाहन करता है । लक्ष्मी आल्हाददायक तथा इंद्र शीतलता दायक देवता है । इस दिन वातावरण में ये दो देवता तत्त्व रूप से आते हैं तथा उनका तत्त्व अधिक मात्रा में कार्यरत रहने के कारण उनकी पूजा की जाती है ।
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