सिसक रही मेवाड़ धरा तुर्कों के अत्याचार तले ,
अकबर विनाश बन कर आया संकल्प लिए चित्तौड़ जले ,

संख्या गणित सामन्तों ने, उदय और प्रताप को समझाया ,
निज प्रजा भार तब राणा जी ,जयमल पत्ता पर छोड़ चले ,

लाया म्लेच्छ सेना अपार , छोटा सा राज्य हराने को ,
जयपुर का राजा आन मिला , रजपूती रक्त बहाने को ,

चार माह संघर्ष चला , मेवाड़ हठी पर आन डटे ,
अकबर के मन में क्रोध पला , स्वातन्त्रय वीर पीछे ना हटे ,

बरसा बारूद तोपें तुर्की , जो दृढ प्राचीर गिराती थीं ,
अगले दिन ही वह भागखण्ड ,  पुनर्निर्मित वो पाती थीं ,

जब न्यून हुए भोजन पानी , मेवाड़ी जनता ने ठानी ,
अब साका जौहर करना है , सर ऊँचा रख कर मरना है ,

हिन्दू वीरों का रक्त पान , काली के खप्पर में होगा ,
रण की वेदी पर शीश दान , शिव के त्रिशूल सम्मुख होगा ,

प्रांगण में हिन्दू मानस के ,  रणचंडी बढ चढ कर नाची ,
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश शुद्रों ने , अपनी अंतिम गीता बांची ,

मीठे सम्बन्ध भी हुए क्षीण , जब काल चढ गया माथे पर ,
कोमल हृदय पाषाण हुए , परिजन चिता सजा निज कर

पतियों बापों ने अग्नी दी , तुम चलो मैं पीछे आता हूँ ,
असुरों को हिन्दू मानस का , प्रतिशोध आज दिखलाता हूँ ,

ना पीड़ा थी ना क्लेश कोई , सब कुछ भय शंकाहीन हुआ ,
मृत्यु के उस आलिंगन में , मन देश व काल विहीन हुआ ,

अग्नि लपटों में धधक धधक , जौहर की वेदी चमक उठी ,
हाड़ और माँस की भेंट लिए , हर हिन्दू बाला दहक उठी ,

प्राणों के बन्धन टूट गए , रण योद्धा जीवनमुक्त हुए
निज पर के सारे भेद मिटे , जीवन मृत्यु संयुक्त हुए

हर वीर चिता सम्मुख बैठा , पीने को मौन अग्नी वेदना ,

जौहर अंगारों में स्तब्ध , हुई विगत स्मृति से सब चेतना ,
जौहर की रात विलक्षण थी , ना दुख था नहिं कोई विलाप ,
पुरुषों की सेना आतुर थी , रणचंडी से करने मिलाप ,

कर में कृपाण मुँह में बीड़ा , मल चिता भस्म विस्मृत पीड़ा ,
सर केसरिया थे पैर नग्न , अब हुआ चित्त काली निमग्न ,

जयमल कंधे पर कल्ला के , अति प्रेम सहित आरूढ़ हुए ,
मृत्यु का तांडव देख देख , मुग़ली कर्तव्य विमूढ हुए ,

चारों हाथों में खड्ग लिए ,  तुर्कों को जी भर कर काटा ,
और हनूमान से भैरव पोल , का मार्ग शवों से था पाटा ,

फिर पाँच तत्व के पिंजरे में , कहीं तीर कटार तलवार लगी ,
कट फट कर दोनों खेत रहे , बलिदानी जोत अखंड जगी ,

अंतिम पंक्ति भी टूट पड़ी , पत्ता ने हाथी गिरा दिए ,
रख प्राण हथेली पर खेले , मुग़लों के प्राण ही सुखा दिए ,

आया अकबर गज पर सवार , कुचला पत्ता को पटक पटक ,
क्षत विक्षत मुख से अट्टहास , इक वार में दिया शीश झटक ,

शाही सेना का नाश देख , अकबर क्रोधित हो पगलाया ,
दंडित करने निर्दोष प्रजा , नरमुंडो का ढेर लगवाया ,

थे देख रहे परताप विवश , दूरी से अपने लोगों को ,
जौहर का धुँआ काट रहा , राणा के बोझिल तन मन को ,

चित्तौड़ दुर्ग का नरसंहार , जब समाचार बन कर पाया ,
राणा की तपती आँखों में , पीड़ा का रक्त उभर आया ,

बोले हैं साक्षी महादेव , इस हत्या का  लूँगा प्रतिकार ,
है शपथ जलाए बच्चों की , यवनों का होगा नरसंहार  ,

घाटी दिवेर में राणा ने , बलिदानों का प्रतिशोध लिया ,
मेवाड़ रिक्त कर मुग़लों से , पत्ता जयमल तर्पण भी किया ,

चित्तौड़ के जौहर साका ने , मेवाड़ भूमि को अमर किया ,
धर्म और मान की रक्षा में , जन जन ने कैसा समर किया ,

हे हठी वीर सबला नारी , तुम मिटे तथापि झुके नहीं ,
आशीष हमें दो स्वर्गों से , यह सत्य सनातन रुके नहीं

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