30 जनवरी 1948 को नाथुराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी लेकिन गोडसे घटना स्थल से फरार नहीं हुए थे बल्कि उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया था।

नाथुराम गोडसे समेत 17 अभियुक्तों पर गांधी की हत्या का मुकदमा चला था।

इस मुकदमे के दौरान न्यायमूर्ति खोसला ने नाथूराम से अपना वक्तव्य पढ़कर सुनाने को कहा था जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया।हालांकि कांग्रेस सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य को प्रतिबंधित कर दिया।

लेकिन नाथूराम गोड़से के भाई एवं गांधी हत्या के सहयोगी गोपाल गोडसे ने 60 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद नाथूराम के वक्तव्य को प्रकाशित करवाया।

नाथुराम गोडसे ने गांधी वध के पक्ष में 150 दलीलें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जिनमें से कुछ मुख्य अंश निम्नलिखित है –

नाथूराम गोड़से का विचार था कि गांधी की अहिंसा की नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वे अपना अधिकार नहीं प्राप्त कर पाएंगे।कानपुर में मुसलमानों ने गणेश शंकर विद्यार्थी को निर्दयतापूर्वक मार दिया। महात्मा गांधी भी हिन्दुओं से गणेश शंकर की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलने और बलिदान करने की बाते करते थे।

1919 के जालियांवाला बाग़ हत्याकांड के बाद पूरे देश में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आक्रोश था। देश की जनता इस हत्याकांड के खलनायक जनरल डायर के विरूद्ध अभियोग चलाने के उद्देश्य से गांधी के पास गई लेकिन गांधी ने भारत वासियों के इस आग्रह को ठुकरा दिया।

गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया। गांधीजी खुद को मुसलमानों के हितैषी की तरह पेश करते थे। कहीं मुसलमान उनसे नाराज ना हो जाए इसलिए उन्होंने केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा 1500 हिन्दुओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं के जबरन मुसलमान बनाए जाने की घटना का विरोध नहीं कर सके।

गांधीजी ने दिल्ली स्थित एक मंदिर में नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी ने एक तानाशाह की तरह उनके विरोध को दरकिनार कर दिया।गांधीजी एक बार भी किसी मस्जिद में गीता का पाठ नहीं कर सके।

23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी दे दी गई किन्तु गांधी ने इस फांसी को रुकवाने का प्रयास नहीं किया बल्कि उन्होंने इसे उचित माना।

काग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में बहुमत से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया था किन्तु गांधी ने अपने प्रिय सितारमैया को समर्थन दे दिया और नेताजी को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया।

गांधी ने कश्मीर के राजा हरि सिंह से कहा की कश्मीर एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अतः यह का राजा कोई मुस्लिम होना चाहिए इसलिए राजा हरि सिंह को शासन त्याग काशी जाकर प्रायश्चित करना चाहिए जबकि गांधीजी ने हैदरबाद के निज़ाम के शासन का समर्थन किया जबकि हैदराबाद एक हिंदू बहुल क्षेत्र था।

14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था किन्तु महात्मा गांधी ने वहां पहुंचकर इस प्रस्ताव का समर्थन किया जबकि गांधीजी ने एक बार खुद कहा था कि भारत का विभाजन मेरी लाश पर होगा। ना सिर्फ भारत का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोषों की हत्याएं हुई और गांधीजी कुछ नहीं कर पाए।

सेक्युलरिज्म के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण के जन्मदाता गांधीजी ही थे।जब मुस्लिमों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का विरोध किया तो गांधीजी हिंदी के स्थान पर हिन्दुस्तानी को बढ़ावा देने लगे। बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का प्रयोग शुरू हुआ।

कुछ मुसलमानों द्वारा वन्देमातरम गाने का विरोध करने पर गांधीजी जी झुक गए और इस गीत को भारत का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया।

गांधीजी ने अनेक अवसरों को छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप,गुरु गोविंद सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा जबकि उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे आजम की उपाधि दे दी।

भारत को स्वतंत्रता के पश्चात पाकिस्तान को एक समझौते के तहत पाकिस्तान को 75 करोड़ रुपए देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपए दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर 1947 को काश्मीर पर हमला कर दिया इससे क्षुब्ध होकर भारत सरकार ने 55 करोड़ की राशि पाकिस्तान को ना देने का निर्णय लिया जिसका गांधीजी ने विरोध किया और आमरण अनशन पर बैठ गए जिससे मजबूर होकर भारत सरकार को 55 करोड़ की राशि पाकिस्तान को देनी पड़ी।

गांधीजी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे। फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या नाजायज।

इन घटनाओं को देश विरोधी मानते हिए नाथुराम गोडसे ने महात्मा गांधी के वध को न्यायोचित माना।

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