ऋषि अथवा मुनि,कहने पर हमारे हाथ अपने आप ही जुड़ जाते हैं और हमारा मस्तक आदर से झुक जाता है, इस भरतखंड में अनेक ऋषियों ने विभिन्न योग मार्ग के अनुसार साधना करके भारत को तपोभूमि बनाया है, उन्होंने धर्म और अध्यात्म विषय पर बहुत लिखा है और समाज में धर्माचरण और साधना इसका प्रसार करके समाज को सुसंस्कृत बनाया है। आज का मनुष्य प्राचीन काल के विभिन्न ऋषियों का वंशज ही है परंतु मनुष्य को उसका भान न रहने के कारण उन्हें ऋषियों के आध्यात्मिक महत्व का ज्ञान नहीं है। साधना करने पर ही ऋषि का महत्व और उनका सामर्थ्य हम समझ सकते हैं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी, ऋषि पंचमी के नाम से जानी जाती है। इस दिन ऋषियों का पूजन करने हेतु धर्म शास्त्रों में बताया गया है। प्रस्तुत लेख में यह व्रत करने की पद्धति और उसके विषय में अन्य जानकारी देने का प्रयत्न किया गया है उसका पाठकों ने लाभ लेना चाहिए। मनुष्य के संपूर्ण कल्याण के लिए जीवन व्यतीत करने वाले ऋषि मुनियों के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !
व्रत करने की पद्धति – इस दिन स्त्रियों ने सुबह आघाडा के दातुन से दांत साफ करने चाहिए। नहाने के उपरांत, पूजा से पूर्व मासिक माहवारी के समय जाने अनजाने में किए हुए स्पर्श के कारण जो दोष लगते हैं उनके निराकरण के लिए अरुंधती के साथ सप्त ऋषियों को प्रसन्न करने के लिए मैं यह व्रत कर रही हूं ऐसा संकल्प लेना चाहिए। पाट पर चावल के 8 ढेर रखकर उस पर 8 सुपारियां रखकर कश्यप आदि सात ऋषियों और अरूंधति का आवाहन कर षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इस दिन कंदमूल का आहार लेना चाहिए और बैलों के श्रम से उत्पन्न हुआ कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। ऐसा बताया गया है दूसरे दिन कश्यप आदि सात ऋषियों और अरुंधती का विसर्जन करना चाहिए। 12 वर्ष के पश्चात या फिर 50 साल की उम्र के पश्चात इस व्रत का उद्यापन कर सकते हैं। उद्यापन के पश्चात भी यह व्रत कर सकते हैं ।
अन्य जानकारी : नागों को ऋषि कहा जाता है। एक तरफ स्त्री और दूसरी तरफ पुरुष ऐसे हल खींचकर उससे उगा हुआ धान्य ऋषि पंचमी के दिन खाते हैं ऋषि पंचमी के दिन जानवरों की मदद से उगाए हुए अनाज नहीं खाने चाहिए। माहवारी बंद होने पर स्त्रियां ऋषि ऋण चुकाने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत करती है। 7 व्याहती (व्याहती अर्थात् जन्म देने की क्षमता) पूर्ण करने के लिए 7 वर्ष व्रत करते हैं। उसके पश्चात् व्रत का उद्यापन करते हैं।
संदर्भ :सनातन संस्था का ग्रंथ -‘ त्यौहार, धार्मिक उत्सव और व्रत ‘
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