रक्षाबंधन त्यौहार का इतिहास, शास्त्र एवं मनाने की पद्धति

श्रावण पूर्णिमा पर आनेवाले त्यौहार रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई का औक्षण कर प्रेम के प्रतीक के रूप में उसे राखी बांधती है । भाई अपनी बहन को भेंटवस्तु देकर उसे आशीर्वाद देता है । सहस्रों वर्षों से चले आ  रहे इस रक्षाबंधन त्यौहार का इतिहास, शास्त्र, राखी सिद्ध करने की पद्धति और इस त्यौहार का महत्त्व इस लेख में बताया गया है ।

रक्षाबंधन का इतिहास 
पाताल के बलिराजा के हाथ पर राखी बांधकर, लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बनाया एवं नारायण को मुक्त करवाया । वह दिन था श्रावण पूर्णिमा।’
बारह वर्ष इंद्र और दैत्यों में युद्ध चला। अपने 12 वर्ष अर्थात उनके 12 दिन। इंद्र थक गए थे और दैत्य भारी पड रहे थे। इंद्र इस युद्ध में स्वयं के प्राण बचाकर भाग जाने की सिद्धता में थे। इंद्र की यह व्यथा सुनकर इंद्राणी गुरु की शरण में पहुंची । गुरु बृहस्पति ध्यान लगाकर इंद्राणी से बोले, ‘‘यदि तुम अपने  पातिव्रत्य बल का उपयोग कर यह संकल्प करो कि मेरे पति देव सुरक्षित रहें और इंद्र की दांयी कलाई पर एक धागा बांधो, तो इंद्र युद्ध में विजयी होंगे ।’’ इंद्र विजयी हुए और इंद्राणी का संकल्प साकार हो गया ।

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।

अर्थ: ‘जो बारीक रक्षासूत्र महाशक्तिशाली असुरराज बलि को बांधा था, वही मैं आपको बांध रही हूं । आपकी रक्षा हो । यह धागा न टूटे और सदैव आपकी रक्षा हो ।’

 भविष्यपुराण में बताए अनुसार रक्षाबंधन मूलत: राजाओं के लिए था । राखी की एक नई पद्धति इतिहास काल से प्रारंभ हुई ।

राखी बांधने के पीछे का शास्त्र

राखी पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन वातावरण में यमतंरगों की मात्रा अधिक होती है । यमतरंगे पुरुष साकारत्व होती हैं । अर्थात वे पुरुषों की देह में अधिक मात्रा में गतिमान होती हैं । इसी कारण यमदूत अथवा यमराज को प्रत्यक्ष चित्र-साकारने की दृष्टि से साकारते समय पुरुष स्वरूप में साकारा जाता है । पुरुषों की देह में यमतरंगों का प्रवाह प्रारंभ होने पर उनकी सूर्यनाडी जागृत होती है और इस जागृत सूर्यनाडी के आधार से देह में स्थित रज-तम की प्रबलता बढकर यमतरंगें पूर्ण शरीर में प्रवेश करती हैं । जीव की देह में यमतरंगों की मात्रा 30 प्रतिशत से अधिक होने पर उसके प्राणों को धोखा होने की संभावना होती है; इसलिए पुरुष में विद्यमान शिवतत्त्व को जागृत कर जीव की सुषुम्नानाडी अंशतः जागृत किया जाता है । प्रत्यक्ष शक्तिबीज द्वारा अर्थात बहन द्वारा प्रवाहित होनेवाली यमतरंगों को तथा उन्हें प्रत्यक्ष कार्य करने हेतु सहायता करने के लिए सूर्यनाडी को राखी का बंधन बांधकर शांत किया जाता है ।

भावनिक महत्त्व

रक्षाबंधन के दिन बहन द्वारा भाई के हाथ पर राखी बांधी जाती है । उसका उद्देश्य होता है, ‘भाई का उत्कर्ष हो और भाई बहन की रक्षा करे ।’ भाई को राखी बांधे, इससे अधिक महत्त्वपूर्ण है कोई युवती / स्त्री किसी युवक / पुरुष को राखी बांधे । इस कारण विशेषतः युवकों एवं पुरुषों के युवती अथवा स्त्री की ओर देखने के दृष्टिकोण में परिवर्तन होता है ।

राखी बांधना  

चावल, स्वर्ण एवं श्वेत सरसों को छोटी पोटली में एकत्रित बांधने से रक्षा अर्थात राखी बनती है। वह रेशमी धागे से बांधी जाती है ।

चावल (कच्चे) के कणों का समुच्चय राखी के रूप में रेशमी धागे से बांधने की पद्धति क्यों है ?

‘चावल सर्वसमावेशकता का प्रतीक है । अर्थात वे सभी को अपने में समा लेनेवाले तथा सर्व तरंगों का उत्तम आदान-प्रदान करनेवाला है । चावल का समुच्चय श्वेत वस्त्र में बांधकर वह रेशम के धागे से शिवरूपी जीव के दांए हाथ पर बांधना अर्थात एक प्रकार से सात्त्विक रेशमी बंधन सिद्ध करना । रेशमी धागा सात्त्विक तरंगों का गतिमान वहन करने में अग्रणी है । कृति के स्तर पर प्रत्यक्ष कर्म होने हेतु यह रेशमी बंधन प्रत्यक्ष सिद्ध किया जाता है । राखी बांधनेवाले जीव में विद्यमान शक्तितरंगें चावल के माध्यम से शिवरूपी जीव की ओर संक्रमित होने से उसकी सूर्यनाडी कार्यरत होती है तथा उसमें विद्यमान शिवतत्त्व जागृत होता है । चावल के कणों के माध्यम से शिव की क्रियाशक्ति कार्यरत होती है एवं वायुमंडल में कार्यतरंगों का गतिमान प्रक्षेपण करती हैं, जिससे वायुमंडल के रज-तम कणों का विघटन होता है । इस प्रकार रक्षाबंधन का मूल उद्देश्य शिव और शक्ति के संयोग से इस दिन का लाभ प्राप्त करना है । यह मानवजाति की दृष्टि से अधिक इष्ट होता है ।’

प्रार्थना करना

बहन भाई के कल्याण हेतु एवं भाई बहन की रक्षा हेतु प्रार्थना करें । साथ ही वे ईश्वर से यह भी प्रार्थना करें कि ‘राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु हमसे प्रयास होने दीजिए।’

राखी के माध्यम से होनेवाला देवताओं का अनादर रोकिए !

आजकल राखी पर ‘ॐ’ अथवा देवताओं के चित्र होते हैं । राखी का उपयोग करने के उपरांत वे अस्त-व्यस्त पडे हुए मिलते हैं । यह एक प्रकार से देवता एवं धर्मप्रतीकों का अपमान है, जिससे पाप लगता है । इससे बचने के लिए राखी को जल में विसर्जित कर देना चाहिए !

चेतन राजहंस,राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.