देश में बड़े बड़े मठों और गढ़ों को तोड़ने की मुहिम में जब जब देश की अवाम उठ खड़ी हुई है तब तब उस हरेक जनक्रांति को झुठा बताया गया है। 1975 में जब जेपी और डॉक्टर लोहिया के आदर्शवादी नारों से सम्पूर्ण भारत ने जागकर इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनीतिक बिगुल फूंका था तब भी उस जनक्रांति को झूठा बताया गया था। ठीक उसी तर्ज पर 2014 में जब देश की जनता ने नरेंद्र दामोदर दास मोदी को अपना जननायक चुना तब भी बने हुए मठों में बैठे हुए मठाधीशों ने घोषणा कर दी थी कि मोदी ने EVM हैक की है, क्योंकि उन्हें लगता था कि 70 साल से देश की सत्ता पर काबिज नामदारों को हटाना नामुमकिन है। 
सत्ता के दम्भ के अलावा एक सत्ता पोषित दम्भ भी है जोकि इंडियन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सर पर नाचता रहा है।

मीडिया के मुगल घराने इसी सत्तापोषित अहंकार को अपनी बपौती समझकर नम्बर 1 होने का दावा करते रहे हैं। ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए ये मीडिया मुगल बरसों से भारत के जनमानस को अपने भूत-प्रेत, बिन ड्राइवर की कार से चलाते आ रहे हैं, अब जब उस बादशाहत को जुम्मा जुम्मा 1 साल आए चैनल ‘रिपब्लिक भारत’ ने तोड़ा है तो इनके पांव तले जमीन खिसक गई है। कांग्रेस माइंडसेट से सुसज्जित इन मीडिया मुगल चैनल्स को लग रहा है कि एक अकेला अर्नब गोस्वामी उन्हें हरा कैसे सकता है? जबकि वो दशकों से भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर बादशाहत कर रहे हैं,तो ऐसे में घोषणा की जा रही है कि TRP के बक्से खराब हैं।

 
इन दो पक्षों को अगर आप सामान्य बुद्धि के मानकों से तौलेंगे तो भी समझ आ जाएगा कि ये मानसिकता कितनी रुग्ण है जो सत्य को सहजता से स्वीकार नहीं करती है,बल्कि जनमानस के मन में शंका के बीज बोकर वितंडा पैदा करती है। पांव के नीचे की ज़मीन खिसक जाने पर भी दोनों तरफ के ‘राहुल’ कहते फिर रहे हैं कि EVM मशीन खराब है और TRP के बक्से खराब हैं, जबकि इसी EVM और इन्हीं TRP बक्सों से पहले ये राज कर चुके हैं। मगर जबतक सत्ता और सर्वश्रेष्ठ होने की मलाई मिलती रही तबतक बिल्ली छींकी नहीं और जब मोदी जैसा जननायक 2014-19 में पटकनी दे चुका है …रिपब्लिक जैसा चैनल 6 महीने में ही पिछले 4 हफ्तों से लगातार पटखनी दे रहा है तब विधवा विलाप शुरू कर दिया गया है।

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