राजनीतिक दर्शकों को मालूम होगा किस चिराग पासवान ने लगभग लोक जनशक्ति पार्टी के बुझते हुए चिराग में गठबंधन का वह तेल डाला कि क्रांति की टिमटिमाती हुई लौ अचानक देदीप्यमान ज्वाला में बदल गई। हाशिए पर जाती रामविलास पासवान की पारिवारिक पार्टी अचानक राष्ट्रीय स्तर की केंद्रीय सत्ताधारी पार्टी का एक प्रमुख घटक बन गई। 2014 के चुनाव में कांग्रेस , राजद, वाममोर्चा जैसे पार्टियों से गठबंधन छोड़कर तथाकथित सांप्रदायिक एनडीए से नाता जोड़ना चिराग की एक जोखिम पूर्ण स्थिति कहलाती परंतु एनडीए की जीत ने लोक जनशक्ति पार्टी को अचानक एक नया तेवर दिया। चिराग का जोखिम बेशकीमती इंजीनियरिंग बन गई। अगर देखा जाए तो नेताओं की संतानों में सबसे अधिक मितभाषी चिराग पासवान की दिखेंगे। राहुल , तेजस्वी, अजित आदि की लाइन से उठ गया चिराग ने शिष्टाचार और सम्भ्रान्त भाषा की एक नई परंपरा डाली है जिसमें अखिलेश यादव की तरह भाषागत शिष्टता और सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य की तरह कम बोलने की ताकत का एक गजब कांबिनेशन है। इस बार के विधानसभा चुनाव में नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोलकर एनडीए में रहना चिराग का एक मास्टर स्ट्रोक कहलाता है अगर चिराग की पार्टी कम से कम १० – २० सीटें जीत जाती और अपने दम पर सीटें जीतने की उपलब्धि चिराग को और मजबूत बनाती और नीतीश की सोलो और ऊबाई नीतियों के कारण ऊबी हुई जन आकाक्षा एण्टी इन्कम्बैन्सी के बदले एक नया ऑप्शन मिलता। शायद भाजपा का थिंक टैंक भी एक स्टैपनी टायर ले कर चल रहा था ।पर भाजपा की अपनी टंकी में इतना तेल नहीं था कि गाड़ी ५ साल चलती इसीलिये दो भाजपाई उपमुख्यमन्त्री बनाकर दलगत असन्तोष को डम्प किया गया और असली असन्तुष्ट को राज्यसभा का लॉलीपॉप थमाकर कुरुक्षेत्र से दूर किया गया और बिहार के मोदी को संसद की गोदी मिलने की उम्मीद दिखाई गई।अब चलें लोजपा की तरफ़…रामविलास के फ़्लड लाइट के वगैर चिराग की रौशनी में उतरी लोजपा पहले तो चुप रही क्योंकि इस पार्टी के जनतादल से युद्ध जीतने पर भाजपा यदि जदयू से किनारा करती तो इसे अधिक सहभागिता की पुरजोर उम्मीद थी और यदि दस बीस सीटें भी मिल जातीं तो भी बिहार में ये पारिवारिक कुनबा थोड़े और मन्त्री पद बटोर लेता पर चिराग के जोखिम ने असफल होकर इस पारिवारिक पार्टी के कर्ता धर्ताओं की उम्मीदों पर कुठाराघात कर दिया । इसीलिये शुरू हुई बलि के बकरे की तलाश और वह बना चिराग जो पूर्ण पासवान डीएनए नहीं है। चिराग का सौतेला परिवार भी मुखालफ़त में उतरा हुआ मिल जायेगा। इस वर्णसंकर पासवान को इसके कोर समर्थक और संस्थापक नेता गण सवर्ण समर्थक भी मानने लगे हों या प्रबल जीत पर उसके सवर्ण के प्रति भावी झुकाव से डर भी गये हों।अन्तर्जातीय विवाह में यदि असफलता न मिले तो उगते सूरज को सब सलाम कर लेते हैं पर सफलता के हाइवे पर जैसे हीं असफलता का स्पीड ब्रेकर मिला इस गाड़ी के पुरज़े बिखर जाते हैं। जातिगत मसला रहने पर राजद का तेजप्रताप आज भी उसी पार्टी में है चाहे रघुवंश जैसे दिग्गज बाहर चले गये परन्तु दलित , पिछड़ा, अनुसूचित जाति या जनजाति या कहें तो बहुजन समाज को केन्द्र बना कर निर्माण की हुई पार्टियाँ अक्सर अपना डीएनए सुरक्षित रखना चाहती है। ऐसा ना होता तो काँग्रेस कब का पल्ला झाड़ चुकी होती।आज चिराग़ लोजपा के समर्थकों और विरोधियों के लिये वैसा कौआ बनाहुआ है जो अपने पीछे मोर का पंख लगाये घूम रहा है जिसे उन्नति के दिनों में मोर भी बताया गया और लोजपा का संकट्मोचक भी और जैसे हीं ढलान दिखी तो न उसे कौवा भाव दे रहा है ना मोर।दरअसल भारतीय राजनीति में जो भी दल जाति , धर्म से ऊपर उठ कर मतदान करने की अपील करे तो मान लीजिये कि वह आपको ठग रहा है वरना केरल की साम्यवादी सरकार दलित पुरोहितों की नियुक्ति मन्दिरों में क्यों करवाती और कमसे कम एक मोहतरमा को किसी मस्ज़िद की मौलवी या एक चर्च में लेडी प्रमुख या फ़ादर के बदले मदर क्यों नहीं बनाती।कोई जाति और धर्म का समर्थन से आपको मूर्ख बनायेगा तो कोई मुखालफ़त करके लेकिन कोई भी जतिगत सुविधा का बँटवारा नहीं चाहेगा।कल का रणनीतिकार कुलदीपक आज जाति विहीन समाज की कब्र पर बेनूर चिराग़ बना हुआ है।
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