मुग़लों की तारीफ़ करते नहीं थकने वाले बुद्धुजीवियों की एक लम्बी जमात है अपने यहाँ । हमारी किताबों में भी पढ़ाया गया की मुग़लकाल हमारे इतिहास का स्वर्ण काल है । खाने से लेकर इमारत बनाने तक की जितनी उन्नति उस काल में हुई ( बुद्धिजीवियों के हिसाब से ), उतनी कभी नहीं हुई ।

अगर मुग़ल ना आते तो हिंदुस्तान में अंधेरा होता , ना खाने को होता , ना कपड़े होते , ना इमारतें होतीं । शेर-ओ-शायरी भी नहीं होती । कुछ नमूने तो यहाँ तक कह देते हैं कि मुग़ल ना होते तो हम गाय और गोबर में जी रहे होते ।

तो लल्ला , ये बताओ हम “काफिरों” से अलग होकर जो मुलुक़ बनाया “पाकिस्तान” उसमें कितने ताजमहल बनवा दिए गए ? कितने लाल क़िले ? ४७ के बाद तो खुल के आज़ादी थी , बना डालते और दिखाते दुनिया को कि ज़ी देखो हमने अलग होकर क्या क्या कर डाला ।

मुग़ल अगर इतने सहिष्णु थे तो जे बताओ , कभी पाकिस्तान का प्रधानमंत्री दिवाली की बधाई काहे नहीं देता ? १९२०-३० की फ़ोटो तक हैं कि कैसे शिवरात्रि से लेकर विजयदशमी तक मनायी जाती थी कराची में , बलूचिस्तान में । तो अब काहे नहीं मनाते ? सरहदें बन जाने से इतिहास तो नहीं बदल जाता ?

( फ़ोटो इंटर्नेट से )

तो भैया ऐसा है , मुग़ल ऐसे थे , वैसे थे वाला ज्ञान अपने पास रखो । हमें सब पता है , जहां से आए थे वहाँ २ कमरे का मकान ना बना पाए और यहाँ आकर ताजमहल बना दिया । इस सारी उलटबासियों का जीता जागता उदाहरण है पाकिस्तान कि कैसे एक सभ्यता और संस्कृति नष्ट की जाती है ।

इसके उलट कभी हमारे मंदिर घूमना , कलाकारी के ऐसे उत्कृष्ट नमूने मिलेंगे की दांतों टले उँगली दबा लोगे । संगीत और कला का तो लिखा भी नहीं जा सकता इतनी गहराई है । ग्रंथ हैं , महाकाव्य हैं और ये सब तब हैं जब आक्रमण करके नालंदा और तक्षशिला तक जला दिए थे । वरना हम कहाँ होते । ख़ैर , हम फिर से वहाँ पहुँचेंगे । और बिना किसी पर आक्रमण किए , बिना किसी को लूटे ।

और एक बात और , अगर ४७ में बाँटे ना गए होते तो ये तीनों मुल्क मिलकर आज दुनिया के बहुत से देशों पर भारी पड़ रहे होते । इतिहास ये भी याद रखेगा !!!

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