कभी वो भी दौर था कि जब नारद, शादी करवाने वाले पुरोहित , हिन्दू पुलिस और वकील आदि मसखरे के रूप में फ़िल्मों दिखाये जाते थे और सारे हिदू दर्शक धर्मनिरपेक्षता का अफ़ीम चाट कर अपने हीं धार्मिक प्रतिमानों का अपमान देखकर भी सिनेमाहालों में शीतल पेय का घूँट भरते हुए ठहाके लगाते थे जबकि उसी दौर के चित्रित मौलवी , इमाम ,मुसलमान पदाधिकारी, जज, पुलिस, पादरी आदि बड़े आस्थावान दिखते थे, हमेशा हर हालत में नमाज़ और रोज़े रखते हुए या सीने से सलीब लगाये और हाथों मे बाइबिल थामे।
ये तो अक्षय कुमार की फ़िल्मी देश भक्ति का दौर आया तो मुसलमान भी दाग़ी दिखाये जाने लगे वरना ” खुश तो बहुत होगे तुम ” की सफलता के लिये सिद्धि विनायक जाने वाला फ़िल्मों में चाहे मन्दिर ना जाता हो पर जेब में सातसौछियासी का बिल्ला जरूर रखता था।
वो भी दौर था कि जिसका कोई नहीं उसका खुदा होता था परन्तु भगवान नहीं।
धर्मनिरपेक्षता की अफ़ीम की पिनक हीं है कि आज भी फ़िल्म ’सिन्स’ आफ़िशियली रिलीज नहीं हो पाई और आज तक एक भी फ़िल्म में मुसलमान मित्र गद्दार नहीं है जबकि हिन्दु गद्दार मित्रों की कोई कमी नहीं।
खैर फ़िल्मों के बादशाह शाहरुख की फ़िल्म ’ रब ने बना दी जोड़ी ’ का टिकट लेखक को ब्लैक में भी ना मिल सका और अलीगढ़ के सिनेमा हाल ग्रैण्ड सुरजीत लौटना पड़ा था और उसी प्रचण्ड लोकप्रियता के शाह ने सनातनियों की असहिष्णुता पर एक बयान क्या दिया उस एक बयान ने पठान को रईस से ज़ीरो बनने पर मज़बूर कर दिया।
आज ये शाह डिज़्नी हॉट स्टार के विज्ञापन में अपनी बेइज़्ज़ती करवा कर पैसा कमाने पर मज़बूर है। ऐसा क्यों?
वज़ह एक है… शायद सनातनियों ने अपना पैसा खर्च कर के अपनी बेइज़्ज़ती देखने की धर्मनिरपेक्ष सोच पर ताला लगा दिया है। ये हाल शाहरुख का हीं हुआ है ऐसा नहीं। दंगल के पहलवान की सुपरस्टारी अब सीक्रेट हीं रह गई है जबकि सुल्तान की तीसरी दबंगई फ़्लाप हो चुकी है।
ओम शान्ति ओम की नायिका एक बार देशद्रोह के प्रति तटस्थता , उदासीनता या अप्रत्यक्ष समर्थन करने वाले जे एन यू के छात्रों के धरने में क्या पहुँची , बाजीराव की मस्तानी छपाक से सिने प्रेमियों की नज़र से उतर चुकी है।
सनातनी आमतौर पर सुविधाभोगी होते हैं और उन्हें धर्मनिरपेक्षता का कीड़ा कालिज के दिनों में हीं काट चुका होता है पर कट्टर दक्षिणपन्थी सत्ता ने अपने ७ साल की अवधि में कुछ कालजयी निर्णयों की वज़ह से अलसाये हिन्दुत्व में ऐसी ताज़गी भर दी है कि वह कतिपय कटु निर्णयों के बाद भी सरकार क साथ छोड़ने की मंशा नहीं दिखा रही है।
सनातनी प्रतिमानों का मज़ाक उड़ाकर सनातनियों की हीं जेब से पैसा उड़ाने की बालीवुडीय षडयन्त्र से अब सनातनी रूबरू हो चुके हैं। सनातन का मज़ाक उड़ाने वाले कई रुस्तमों के लक्ष्मी बम फ़ुस्स हो चुके हैं और शहन्शाह अपना चेहरा नहीं दिखा पा रहे हैं।
शायद हिन्दुत्व , बाज़ार और ग्राहक के रूप में भी अपनी ताकत पहचानने लगा है।
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