लालू यादव और हम बिहारी लोग
लालू यादव के शासन को "जंगल राज" कहे जाने से मुझे घोर आपत्ति है क्योंकि ....
लालू यादव के शासन को "जंगल राज" कहे जाने से मुझे घोर आपत्ति है क्योंकि ....
पिछले हफ्ते लालू यादव के नौवीं फेल बेटे तेजस्वी यादव का भाषण सुने, भाषण में राष्ट्रीय जनता दल के स्थापना दिवस के अवसर पर उनके बेटे लालू यादव के ‘योगदान’ को याद दिला रहे थे। कोई भी व्यक्ति, खास कर महिला, जिसने नब्बे का दशक बिहार में बिताया है वो अपने व्यक्तिगत अनुभव से बता सकता है की लालू राबड़ी की सत्ता से भयावह जीवन में कुछ नहीं देखा और भोगा होगा। जी, भोगा इसलिए कह रही हूँ क्यूंकि स्वयं भोगा है। लालू यादव के शासन को “जंगल राज” कहे जाने से भी मुझे घोर आपत्ति है क्योंकि जंगल का भी अपना एक कानून और अनुशासन होता है। दहशत, गुंडागर्दी, अपहरण, चोरी, डकैती, लूट, हत्या ये सब इतनी आम बात थी कि बिहार में रहकर प्रगतिशील जीवन की कोई कल्पना नहीं थी।
मेरा कॉलेज से घर आने का समय चार बजे के आस पास का था और मुझे आज भी याद है की माँ ऑटो स्टैंड पर भाई को लेकर खड़ी रहती थी अगर मुझे आने में दस मिनट की भी देरी हो जाये तो उनकी क्या हालत होती वह समझा पाना कठिन है। हम लोगों को “दिने-दिन जाना है तो चली जाओ”, ये प्रयतः घरों में सुनने को मिलता था क्योंकि सूर्य ढलने के बाद आपके सलामती की गारंटी और भी कम हो जाती। लालू राबड़ी के राज में एक मात्र उद्योग जिसका बोलबाला था और वो फला-फूला, वो था “अपहरण”।
दिन-दहाड़े लोगों का उठाया जाना बहुत आम बात थी। डॉक्टरों को क्लिनिक आते जाते हुए फिरौती के लिए उठवा लिया जाता था, जिसके चलते अनगिनत बार बिहार डॉक्टर संगठन ने हड़ताल किया, सरकार से गुहार लगायी लेकिन ये सारा उद्योग लालू यादव के संरक्षण में ही चल रहा था इसलिए किसी प्रकार की प्रशासनिक सहायता की कोई उम्मीद थी भी नहीं। उद्योगपतियों या व्यापारियों के बच्चे भी आये दिन उठवा लिए जाते थे, और प्रयतः इन घटनाओं के लिए मारुती की ओमनी वैन का प्रयोग किया जाता था। मुझे अभी भी याद है की जब भी सड़क पर ओमनी वैन दिखती थी, तब परिवार वाले हाथ खींच कर सड़क से दूर कर देते थे या अगर हम अपनी सवारी में हैं तो वैन के अंदर झाँकने की कोशिश करते थे की कोई किडनैप होकर तो नहीं जा रहा। कोई व्यापारी यदि व्यापार में कोई लाभ पाए या कोई महँगा सामान खरीदे तो कार घर बाद में आएगी, फिरौती का कॉल पहले। आप इतना समझिये कि यह अपहरण उद्योग इतना फैला था कि चार/पाँच साल के बच्चे, बुजुर्ग कोई भी इससे छूटा नहीं था। यह सभी संगठित होकर अपहरण पुलिस/प्रशासन और सत्ता के साथ मिल कर इस उद्योग को चलाते थे। इन लोगों ने सामाजिक व्यवस्था से लेकर पुलिस और न्याय व्यवस्था तक का मजाक बना दिया गया था और जेलों में फाइव स्टार सुविधाओं के साथ अपराधियों को मौज कराया जाता था।
लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने अपने पिता के कार्यकाल में हुयी ‘भूल-चूक’ के लिए क्षमा मांगी | हम बिहारी लोग बहुत बड़े दिल के होते हैं तेजस्वी जी लेकिन जो आपके पिता ने किया और जो करवाया, वो अक्षम्य है | आपके माता-पिता ने सैकड़ों घर उजाड़े, बच्चों को अनाथ किया, करोडों बिहारियों का भविष्य बर्बाद किया और चाणक्य की धरती के लोगों के मन से आशा की किरण की कामना पर भी सम्पूर्ण ग्रहण लगा दिया। कितने ही लोग बिहार में अपना घर द्वार छोड़ पलायन कर गए, कितने ही लोग मार दिए गए, कितने ही अपाहिज होकर न्याय के लिए लड़ते लड़ते खुद ख़त्म हो गए, सोच कर ही मन काँप उठता है। आज विदेश में बैठ कर नब्बे का काला दशक याद करते हुए देह सिहर जा रहा है, और आप माफ़ी की बात करते हैं? तेजस्वी जी आपके माता पिता के कुकर्मों और अपराधों के लिए आपके परिवार और पार्टी को बिहार की जनता कभी माफ़ नहीं कर सकती।
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1 Comment
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एकदम सही और सटीक | उन दिनों फिरौती जिसे रंगदारी टैक्स कहा जाता था भी इसी गुंडागर्दी का एक एक्सटेंसन था | खुद इसका पूरा कुनबा ही एकदम से सबसे बड़ा लुटेरा बन बैठा था और आज फिर उसी फिराक में है | काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती