राजस्थान में कांग्रेस सरकार की नाक के नीचे खनन माफिया धड़ल्ले से अवैध खनन का काम कर रहे हैं बावजूद इसके गहलोत सरकार की तरफ से इन माफियाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही है. लेकिन इसी बीच एक संत जिन्होंने खनन माफियाओं के खिलाफ आवाज बुलंद की अब वो भी नहीं रहें. दरअसल भरतपुर जिले के पसोपा गांव में अवैध खनन पर रोक लगाने में सरकार की नाकामी के विरोध में आत्मदाह करने वाले साधु बाबा विजयदास की दिल्ली के एक अस्पताल में मौत हो गई। उन्होंने 20 जुलाई को केरोसिन डालकर खुद के शरीर में आग लगा ली थी। 21 जुलाई को उसकी स्थिति स्थिर बताई गई, लेकिन शनिवार सुबह उनकी मौत हो गई।

अवैध खनन के खिलाफ संत समाज का धरना-प्रदर्शन करीब 500 दिनों से चल रहा था। संतों ने राज्य सरकार को इलाके में खनन पर रोक लगाने के लिए हर संभव कोशिश की थी। बाबा हरिबोलदास ने करीब दस दिन पहले घोषणा की थी कि अगर सरकार ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया तो वह 19 जुलाई को मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह कर लेंगे। लेकिन बाद में उनसे और समय की मांग कर अधिकारियों ने मामले को आगे बढ़ा दिया। लेकिन 19 जुलाई तक जब सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं गई तो विरोध में बाबा नारायणदास पासोपा गांव में स्थित एक मोबाइल टॉवर पर चढ़ गए। चारों ओर इसकी चर्चा शुरू होते ही आस पास के कई संतों ने बाबा नारायणदास साथ दिया। इस बीच पुलिस ने बाबा हरिबोलदास को आत्मदाह करने से रोकने के लिए हिरासत में ले लिया।

इधर राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भरतपुर जिले में संत विजय दास की मौत के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। राजे ने कहा है कि जिस राज्य में संतों को आंदोलन करना पड़े, लोकहित में मांगों को मनवाने के लिए अपनी बली देनी पड़े, तो उस राज्य में इससे बड़ी अराजकता कोई और नहीं हो सकती।

राजे ने कहा कि घटना के बाद भी मुख्यमंत्री असहाय हो कर खुद स्वीकार करें कि प्रदेश में अवैध खनन नहीं रुक रहा। इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि संत की मौत का जिम्मेदार कोई है तो वह राज्य सरकार है। मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार संतों की आवाज समय रहते ही सुनकर एक्शन ले लेती तो आज एक संत की जान नहीं जाती। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।

 

 

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