“क्या आपने रेल यात्रा की है? क्या आपको वो दिन याद हैं जब स्टेशन पर पटरियों को देख कर घिन आती थी ? क्या आप जानते हैं की भारतीय रेलवे ने 68,800 डिब्बों में 2,45,400 से अधिक जैव शौचालय या बायो टॉयलेट लगायें हैं, यानि 100%?”
जो युवा है वह शायद नहीं समझ पाएँ|क्योंकि एक छोटी सी बात अतीत के विषय में कोई बहुत कुछ ज्यादा नहीं बोल पाती और वह भी तब जब हमारे में ना कोई इच्छा हो और ना ही ऐसा कोई अवसर हो जिससे कि हम अतीत को जानें! अब प्रश्न उठता है कि मैं किस अतीत की बात कर रहा हूं?
आज करीब-करीब सारी ट्रेनों में बायो टॉयलेट फिट होने के कारण हमारे समय की एक बहुत बड़ी व्यवस्था शायद गायब हो जाएगी| ट्रेनों में जब हम शौचालय का प्रयोग करते थे,तो फ्लोर में टॉयलेट में छेद से हमें चलती ट्रेन से पटरियाँ नीचे दिखाई देती थी| क्योंकि वह जो छेद होता था वहीं से पानी शौच इत्यादि सब कुछ सीधे पटरियों पर गिरता था| और यही व्यवस्था थी, कोई इस पर प्रश्न नहीं उठाता था और ना ही कभी जरूरत महसूस की गई की इस व्यवस्था को परिवर्तित किया जाए,इससे गंदगी फैलती है|
शौचालय में बाकायदा लिखा रहता है कि “कृपया जब ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी हो तो शौचालय का प्रयोग ना करें” यह हल था इस बात का कि यदि प्लेटफार्म पर खड़ी ट्रेन में लोग शौचालय का प्रयोग करेंगे तो पटरियाँ गंदी होंगी उस प्लेटफार्म की| लेकिन स्वाभाविक है कि इस प्राकृतिक प्रक्रिया को अधिकतर यात्री रोक ना पाते थे और पटरियाँ सदैव गंदी ही रहती थी| जिन पर मक्खियां आकर बैठती थी और वही मक्खियां आसपास की दुकानों पर,जहां खान-पान का सामान बिक रहा हो वहां रखे खाद्य पदार्थों पर बैठती थी|पर इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता था,सब अच्छे से चल रहा था|अचानक से पेट खराब हो जाता तो हम कहते थे अरे अभी थोड़े दिन पहले ट्रेन से आए हैं,इसीलिए पेट खराब हो गया इस पर कोई विवेचना नहीं होती थी कि क्यों पेट खराब हो गया| ट्रेनों में नियमित रूप से झाड़ू लगना,पोछा लगना,फ्रेशनर का स्प्रे यह सुविधा शायद विशेष ट्रेनों में या उच्च क्लासों में उपलब्ध थी| जनरल या कैटल क्लास (एक बड़े नेता ने कहा था) को शायद स्वच्छता की आवश्यकता नहीं थी|आज यूनिफॉर्म पहने हुए बिल्कुल ही प्रोफेशनल तरीके से सफाई करते हुए लोगों को जब देखते हैं तो याद आता है वह समय,जब कोई बच्चा या कोई विकलांग एक गंदा सा झाड़ू लिए या अपनी शर्ट को उतार कर उससे जमीन पोंछने के बाद हर यात्री से मांगता था तो एक एक रुपए पाता था| और यही व्यवस्था थी,कोई किसी को कुछ नहीं कहता था|आज “कोच मित्र” जैसे ऐप हैं,ऑनबोर्ड हाउसकीपिंग सर्विसेज हैं और निर्धारित स्टेशनों पर तुरंत आकर सधे हुए तरीके से सुनिश्चित किया जाता है कि ट्रेन का डब्बा साफ हो! आज सामान्य नागरिकों की सक्रिय सहभागिता व् उनके दिए गए सुझाव व् शिकायतें सकारात्मक परिवर्तन का एक बड़ा करक बन चुके हैं| क्या इस बदलाव को देखकर आंख बंद कर लेनी चाहिए ??
एक समय था,जो अब इतिहास बनता जा रहा है,की अगर स्टेशन पर पटरियों को देख ले तो अच्छा भला आदमी बीमार पड़ जाए इतनी गंदी हुआ करती थी| आज आपको सुखी पटरिया पटरियाँ और उन पर ब्लीच डाला हुआ मिलेगा| एक अच्छी शुरुआत हो चुकी है, बस इसमें कोई रुकावट न आये|
गंदे प्लेटफार्म जहाँ पर बैठना तो दूर, शरीर का कोई हिस्सा छू भी जाए तो चित्त विचलित हो जाता था| वर्तमान में आप कहीं भी बैठिये|करीब-करीब 24 घंटे सफाई चलती है और जगमग करते प्लेटफार्म बदलते समय की ओर इशारा करते हैं|
स्वच्छ भारत के अंतर्गत जिस प्रकार का काम रेलवे ने किया है वह तो कोई प्रमाण देने की जरूरत नहीं है क्योंकि 10 साल से अधिक किसी की भी आयु हो वह या तो सफाई देखता हुआ बड़ा हो रहा है और या तो उसने पहले जो गंदगी देखी है और आज जो स्वच्छता है उसे देखकर समझ पा रहा है|
ट्रेनों में चार्जिंग प्वाइंट की सुविधा केवल एसी या उच्च श्रेणी में उपलब्ध थी,स्लीपर क्लास में बहुत समय बाद दरवाजे के पास एक चार्जिंग पॉइंट देना शुरू किया गया| यानि करीब 72 या 100 लोगों के लिए 1 चार्जिंग पॉइंट!! आज आप देखें तो जैसी व्यवस्था एसी या उच्च श्रेणी में उपलब्ध है ही वैसी ही व्यवस्था स्लीपर क्लास में भी है|
जिन मित्रों ने जनरल क्लास में यात्रा की है उनको ऊपर वाली बर्थ तो याद होगी ही जो स्टील के पाइप की होती है,उसपर ना आप लेट सकते हैं ना बैठ सकते हैं| क्या सोच कर उसे बनाया गया था यह नहीं समझ पाता हूँ| और सर्दी में तो वह ठंडी ठंडी पाइप इतना आनंद दे जाती है कि पूरी तरह साफ हो जाता है की हम किस श्रेणी के हैं|पर आज आप यदि ध्यान दें,तो देखेंगे कि जनरल श्रेणी की सीटों में भी परिवर्तन आ रहा है,ऐसा परिवर्तन जिससे स्पष्ट दिखता है कि ध्यान इस तरफ है कि जो भी इस पर बैठे वह आराम से बैठ पाए|
पहले हम मॉल में जाते थे तो शायद एस्केलेटर देखने को मिलते थे, लेकिन आज करीब-करीब हर बड़े स्टेशन पर आपको एस्केलेटर मिलेंगे| इसका लाभ क्या है वो कभी एक भारी सूटकेस को सीढ़ियों पर लेकर चढ़े हों तो आप अवश्य अंदाजा लगा पाएंगे| सामान लेकर एस्केलेटर पर जाना और सही प्लेटफॉर्म पर पहुंचना एक सहज प्रक्रिया हो गई है|
छोटा सा दिमाग है, जो बातें आती गई वह मैं लिखता चला गया!! पर मैं जानता हूं कि आप सभी प्रबुद्ध हैं और बहुत ही बारीक नजर रखते हैं| इसलिए एक अनुरोध है कि अगर मुझे यह सब दिख रहा है तो आपको भी कुछ दिख ही रहा होगा| कृपया सभी से साझा करें ताकि हम भी जाने की और क्या क्या बदलाव आए|अच्छे बदलाव या बुरे बदलाव यह तो पढ़ने वाले पर छोड़ देते हैं!!
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