सूर्य अस्त होता है तो घबराने के बात नही उदय भी होता है .

जो डूबता है वही उबरता भी है . जो ढलता है वही खिलता है.

यही छठ माता हमे सिखाती है

छठ में नियम है तो सयम भी है शरीर को दुःख है तो मन को अत्यधिक शन्ति भी ……छठ में सुखद सैया का त्यागने का परिचलन है तो तामसिक भोजन त्यागने का नियम भी है ….………………..

ब्रह्माण्ड में कही ढलते सूर्य का पूजा होता तो छठ पूजन में

जब महिलाये सूर्य समाधि में स्वयं निर्जल होकर भास्कर को जल समर्पित करती है तो अतुलनीय समर्पण के दर्शन होते है जो भारतीय नारी का श्रध्दा से परिचय करवाते है ….

छठ में सिर्फ सूर्य देवता तक सिमित नही होता ये हमारे प्रकृति प्रेम को भी दर्शाता है ………………..

छठ पूजा भारतीय संस्कृति के कृतज्ञता को दर्शनीय बनाता है

तालाब नदिया समन्दर का इतिहास मानव कल्याण के लिए हमेसा से रहा है …

सूर्य को अर्घ्य देते हुई छठ ब्रती

छठ पूजा का इतिहास:

पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजा था जिसका नाम प्रियंवद था। राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने यज्ञ करवाया। यह यज्ञ महर्षि कश्यप ने संपन्न कराया और यज्ञ करने के बाद महर्षि ने प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर प्रसाद के रुप में ग्रहण करने के लिए दी। यह खीर खाने से उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन उनका पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। यह देख राजा बेहद व्याकुल और दुखी हो गए। राजा प्रियंवद अपने मरे हुए पुत्र को लेकर शमशान गए और पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने लगे।

इस समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। देवसेना ने राजा से कहा कि वो उनकी पूजा करें। ये देवी सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं। यही कारण है कि ये छठी मईया कही जाती हैं। जैसा माता ने कहा था ठीक वैसे ही राजा ने पुत्र इच्छा की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया। यह व्रत करने से राजा प्रियंवद को पुत्र की प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि छठ पूजा संतान प्राप्ति और संतान के सुखी जीवन के लिए किया जाता है।………

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