संस्कृत भाषा की रचना, कार्यक्षेत्र और महत्व!
        19 अगस्त से 25 अगस्त तक पूरे देश में संस्कृत सप्ताह मनाया जा रहा है। संस्कृत दिवस हर साल श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है। संस्कृत ईश्वर की बनाई हुई भाषा है। यह विश्व की सभी भाषाओं की जननी हैं। संस्कृत के महत्व को आज पश्चिमी लोग भी स्वीकार करते हैं। पश्चिमी कंप्यूटर वैज्ञानिक एक ऐसी भाषा की तलाश में थे, जो कंप्यूटर सिस्टम का उपयोग करके दुनिया की आठ भाषाओं में से किसी में भी तुरंत अनुवाद कर सके। उन्होंने उस भाषा को संस्कृत पाया। कंप्यूटर सिस्टम के लिए संस्कृत दुनिया की सर्वश्रेष्ठ भाषाओं में से एक है। वेद, उपनिषद, गीता आदि मूल ग्रंथ संस्कृत में हैं। जिस देववाणी संस्कृत ने मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखाया, उस देववाणी को ही कृतघ्न मनुष्य, विशेष रूप से स्वतंत्रता के बाद के भारत के अनेक राजकीय नेताओं ने नष्ट करने की कोशिश की है, यह कहना अतिश्
योक्ति नहीं होगा । सभी को इस प्रयास को विफल करने का प्रयास करना चाहिए। यह लेख संस्कृत भाषा की सुंदरता और महानता के बारे में है।

संस्कृत भाषा का निर्माण

यह बताते हुए कि संस्कृत भाषा कैसे अस्तित्व में आई, कुछ पश्चिमी लोग कहते हैं, “पहली बार, इंसानों को पता चला है कि ‘उनके मुंह से आवाज आती है’। उन ध्वनियों के चिन्ह, चिन्हों के चिन्ह और उन चिन्हों के अक्षर थे। उसी से अक्षर, वस्तुओं के नाम, सभी भाषाएँ, यहाँ तक कि संस्कृत भी बनीं।’ निसंदेह, यह सब असत्य है। यह सृष्टि ईश्वर की इच्छा से निर्माण हुई है। मनुष्य के निर्माण के बाद, भगवान ने मनुष्य को वह सब कुछ दिया जिसकी उसे आवश्यकता थी। इतना ही नहीं, भविष्य में मनुष्य को जो चाहिए, उसे उपलब्ध कराने के लिए उसने व्यवस्था की है। सृष्टि से पहले भी ईश्वर ने एक ऐसी भाषा की रचना की जो मनुष्य के लिए मोक्ष के लिए उपयोगी है और चैतन्य से परिपूर्ण है। इस भाषा का नाम ‘संस्कृत’ है।

एक विशाल शब्दावली वाली भाषा

स्त्री शब्द के लिए संस्कृत में कई शब्द हैं, जैसे नारी, अर्धांगिनी, वामनगिनी, वामा, योशिता। इनमें से प्रत्येक शब्द महिलाओं की सामाजिक, पारिवारिक और धार्मिक भूमिका को दर्शाता है। संस्कृत की शब्दावली इतनी विशाल है कि उसे जानने के लिए एक जीवन पर्याप्त नहीं होगा।’

पशु, वस्तु और भगवान के लिए कई नामों वाली संस्कृत भाषा!

संस्कृत में, जानवरों, वस्तुओं आदि को कई नाम देने की प्रथा थी, उदा. जैसे बैल को बलद, वृषभ, गोनाथ जैसे ६० से अधिक; हाथी को गज, कुंजर, हस्तिन, दंतिन, वारण जैसे 100 से अधिक; सिंह को वनराज, केसरीन, मृगेंद्र, शार्दुल 80 से ऊपर; पानी को जल, जीवन, पानी, पेय,उदक तोय; सोने को स्वर्ण, कंचन, हेम, कनक, हिरण्य आदि नाम हैं।’ सूर्य के 12 नाम , विष्णु सहस्रनाम, गणेश सहस्रनाम कईयों को याद रहते हैं इनमें से प्रत्येक नाम उस देवता की एक अनूठी विशेषता बताता है।

वाक्य में शब्दों को आगे, पीछे करने पर भी अर्थ नही बदलता

कोई फर्क नहीं पड़ता कि शब्द वाक्य में कहाँ है, वाक्य का अर्थ नहीं बदलता है, उदा। ‘राम: आम्रखादति।’ का अर्थ है ‘राम आम खाता है’, कोई फर्क नहीं पड़ता कि वाक्य कैसे लिखा जाता है, अर्थ वही रहता है – ‘आम्र खादती राम:।’ ‘खादती राम: आम्र। इसके उलट’ अंग्रेजी वाक्य में शब्द का स्थान बदलने पर अर्थ बदलता है उदा, Rama eats mango.’राम आम खाता है।’ यह वाक्य Mango eats Rama. ( ऐसे लिखा तो उसका अर्थ है ‘ आम राम को खाता है’),  जहां संस्कृत का अध्ययन होता है वहा संस्कृति वास करती है ।
(‘देववाणी की जैसी संस्कृत का उच्चारण भी सुन लेने पर भी प्रसन्नता का अनुभव होता है।’) संस्कृति: संस्कृतश्रिता।’ इसका अर्थ है, ‘संस्कृति संस्कृत की शरणस्थली है’ अर्थात् जहाँ संस्कृत का अध्ययन होता है, वहाँ संस्कृति निवास करती है। संस्कृत पढ़ने वाला व्यक्ति सुसंस्कृत, विनम्र होता है।’

अखंड भारत की निशानी

संस्कृत को प्राचीन काल से ही पूरे भारत की भाषा के रूप में जाना जाता रहा है। कश्मीर से लंका तक, वगंधर से मगध तक नालंदा, तक्षशिला, काशी और अन्य विश्वविद्यालयों से छात्र विभिन्न विज्ञान और विद्या का अध्ययन कर रहे थे। इस भाषा के कारण रुदट, कैय्यट, मम्मट जैसे कश्मीरी पंडितों की रचनाएँ सीधे रामेश्वर तक प्रसिद्ध हुईं। आयुर्वेद में चरक पंजाब से, सुश्रुत वाराणसी से, वाग्भट सिंध से, कश्यप कश्मीर से और वृन्द महाराष्ट्र से है; लेकिन संस्कृत ने इसे संपूर्ण भारतीय बना दिया।’

राष्ट्रभाषा संस्कृत होती तो राष्ट्रभाषा को लेकर झगड़ा नहीं होता
‘राष्ट्रभाषा क्या होनी चाहिए’ पर संसद में बहस हुई। दक्षिण भारत ने हिंदी का कड़ा विरोध किया। एक फ्रांसीसी दार्शनिक ने कहा, “अरे, तुम बहस क्यों कर रहे हो? संस्कृत आपकी राष्ट्रभाषा है। आरंभ करें।” आपने संस्कृत जैसी पवित्र भाषा खो दी। तो झगड़े नहीं होंगे तो क्या होगा ? आज पूरे भारत में कहर है।’- गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी

संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है (संस्कृत अमृत है!)
देववाणी का झंडा अब वैश्विक स्तर पर पहुंच गया है और इसका श्रेय उन लोगों को जाता है जिन्होंने इस भाषा के लिए पहल की है। सभी भाषाओं की जननी संस्कृत न केवल पूर्वी बल्कि पश्चिमी देशों को भी आकर्षित कर रही है! संस्कृत भारत की ही नहीं विश्व की मूल भाषा है और इससे प्राप्त सभी भाषाएं प्राकृत हैं ! चूँकि संस्कृत ईश्वर की भाषा है, इसमें अपार चैतन्य है, यह अमृत है, अमर है !!’

‘संस्कृत भाषा’ के रूप में हिंदू संस्कृति की जागरूक विरासत को संरक्षित करने के लिए संस्कृत सीखें!

कालिदास, भवभूति आदि महान कवियों की प्रतिभा संस्कृत में फली-फूली। संस्कृत में चैतन्य है। हालाँकि संस्कृत में लिखने का अर्थ समझ में नहीं आता है, लेकिन इसमें चैतन्य और सात्विकता का लाभ होता है। संस्कृत में चैतन्य है । संस्कृत यह वाणी, मन, बुध्दि की शुद्धि करनेवाली भाषा है । अपनी प्राचीन संस्कृति भाषा का महत्व पहचाने ! हिंदू संस्कृति की चैतन्यमय विरासत को संजोने के लिए संस्कृत सीखें , विद्यालय में भी संस्कृत सिखाने के लिए आग्रह करें !

संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ देववाणी संस्कृत की विशेषताऐं व संस्कृत को बचाने के लिए उपाय

चेतन राजहंस,राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

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