९३ वें बलिदान दिवस पर काकोरी काण्ड के स्वतंत्रता सेनानियों को सादर नमन

काकोरी की घटना को अंजाम देने वाले आजादी के सभी दीवाने उच्च शिक्षित थे। काकोरी की घटना को क्रांतिकारियों ने काफी चतुराई से अंजाम दिया था। इसके लिए उन्होंने अपने नाम तक बदल लिए। खजाने को लूटते समय क्रांतिकारियों को ट्रेन में एक जान पहचान वाला रेलवे का भारतीय कर्मचारी मिल गया। क्रांतिकारी यदि चाहते तो सबूत मिटाने के लिए उसे मार सकते थे लेकिन उन्होंने किसी की हत्या करना उचित नहीं समझा। उस रेलवे कर्मचारी ने भी वायदा किया था कि वह किसी को कुछ नहीं बताएगा लेकिन बाद में इनाम के लालच में उसने ही पुलिस को सब कुछ बता दिया। इस तरह अपने ही देश के एक गद्दार की वजह से काकोरी की घटना में शामिल सभी जांबाज स्वतंत्रता सेनानी पकड़े गए।

९३ वां बलिदान दिवस – अमर शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जी

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को उत्तर प्रदेश के गोण्डा जिले में एक क्रान्तिकारी महानायक का स्थान प्राप्त है। प्रति वर्ष १७ दिसम्बर स्थानीय जिला प्रशासन के लिये राजकीय महत्व का दिवस होता है। इस दिन जिले के समस्त विद्यालयों एवं प्रशासनिक प्रतिष्ठानों में राजकीय उत्सव का माहौल रहता है। सभी सम्बद्ध प्रतिष्ठानों में शहीद लाहिड़ी के सम्मान में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इन समस्त सांस्कृतिक आयोजनों का केन्द्र बिन्दु गोण्डा का जिला कारागार होता है। कारागार के फाँसीघर में स्थापित लाहिड़ी की प्रतिमा के समक्ष यज्ञ का आयोजन किया जाता है।

17 दिसम्बर 1928 को शांत हुई थी प्रतिशोध की ज्वाला

१९२८ में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिये भयानक प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में भाग लेने वालों पर अंग्रेजी शासन ने लाठी चार्ज भी किया। इसी लाठी चार्ज में आहत होकर लाला लाजपत राय जी की मृत्यु हो गई थी, क्रांतिकारियों के सब्र का बांध टूट गया और लालजी की मौत का बदला लेने का प्रण किया गया। 18 दिसम्बर 1928 को लाहौर नगर में जगह–जगह परचे चिपका दिए गए कि लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया। समस्त भारत में क्रान्तिकारियों के इस क़दम को सराहा गया।