किसी के हाथों में अहंकार की नंगी शमशीर ,
उसी के मुंह में नफरत का जहरीला थूक,
दिल में पाकिस्तान, ज़बान पर कश्मीर,
मैं और तुम क्या बैठे रहें बने दर्शक मूक?
लोडेड पिस्तौल रखनी होगी अब जेब में ,
निशाने लगाने होंगे बेधड़क ,अचूक,
समय और शत्रु की यही मांग है-
बढ़ानी होगी हमें अपनी जंग की भूख ! (8)
अगर स्वतंत्र रखना है इस देश को,
अपने रहन-सहन,पूजा-पद्धति को,
तो ज़ारी कर दो मेरे हथियार का परमिट ,
कह दो डीएम, एसपी से मुंह ना बिचकाएं,
रुग्ण समाज की दुर्दशा पर ज़रा गौर फरमाएं,
आत्मरक्षा में अगर चलानी पड़ जाएँ गोलियां,
ठोकने पड़ जाएँ कुछ छिपकली -गिरगिट,
तो गुट-निरपेक्षता का हवाला देकर रोने न लगें,
अब थोड़े अधिकार मकान-मालिकों को भी मिलें,
आखिर हमें भी ज़िंदा रहने का अधिकार है ,
कब्जा करके बैठे जो हैं किराएदार,
कैसे उतारेंगे इनपर जो चढ़ा बुखार है ।20।
एक सुझाव दिया था तिलक ने बरसों पहले-
घुस आयें चोर घर में, और हिम्मत न हो
उनसे लड़ पाने की, सामर्थ्य न हो
उन्हें निकाल बाहर फेंकने का,
तो उन्हें घर के अंदर बंद कर उसे फूँक डालो !
सवा सौ साल हुए इस कथन को कहे-
अब हमें सोचना होगा क्या हिम्मत जुट पाई,
या हम अब भी वही हैं -अशक्त,गीदड़ कौम,
खुद में तल्लीन, पराधीन,
समझौते को तत्पर, सुलह को आतुर,
बहुत कुछ देकर , थोड़ा बहुत लेकर,
ज़मीन-बेटी-मंदिर के बदले
येन-केन-प्रकारेण सौहार्द खरीदने को बेचैन,
तथाकथित शांतिदूतों के आगे शांति के प्रार्थी,
डरे हुए, नतमस्तक,नपुंसक आर्यावर्ती,
या अपनी पाई-पाई पूंजी ,
सूत-सूत ज़मीन,
एक-एक कन्या,
हर-हर पूजास्थल की रक्षा हेतु
हथियार उठाने को लालायित –
सजग धार्मिक और देशभक्त । 41।
कब तक अपने ही घर फूंकते रहेंगे,
क्यूँ तिल-तिल कर यूं मरते रहेंगे,
हमारे शत्रु कभी नहीं समझेंगे,
उठानी ही होगी हमें शमशीर,तलवार,बंदूक,कृपाण-
अब विश्वास मांग रहा है उसके होने का प्रमाण ।46।
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