टीप: ये केवल एक व्यंगात्मक लेख है जिसका किसी भी व्यक्ति अथवा समुदाय को आहत करने का कोई उद्देश्य नहीं।

हो ओ
एक लिबरल को देखा तो ऐसा लगा
एक लिबरल को देखा तो ऐसा लगा
जैसे सड़ता शराब
जैसे कौवा कबाब
जैसे भाई की गन
जैसे मारे हिरन
जैसे मच्छरी रात
जैसे बकवास बात
जैसे मस्जिद में हो एक चरसी मियां… हो
एक लिबरल को देखा तो ऐसा लगा

एक लिबरल को देखा तो ऐसा लगा
जैसे सूअर का रूप
जैसे स्वरा कुरूप
जैसे शैला की तान
जैसा बरखा की कान
जैसे खिसके कंवल
जैसे रवीश मचल
जैसे बदबू लिये आए सबा नकवा…हो
एक लिबरल को देखा तो ऐसा लगा

एक लिबरल को देखा तो ऐसा लगा
जैसे नाचता चोर
जैसे केजरी की लोर
जैसे कुत्तों का राग
जैसे इतिहास विभाग
जैसे बुर्का शृंगार
जैसे रम की फुहार
जैसे आहिस्ता आहिस्ता चढ़ता नशा… हो
एक लिबरल को देखा तो ऐसा लगा

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