कुछ भी बोलोगे तो कठघरे में आओगे! राजदीप सरदेसाई पर पड़ा कोर्ट का डंडा, SC ने दर्ज किया अवमानना का केस

सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार राजदीप सरदेसाई पर अवमानना का मुकदमा दायर किया है। दरअसल, राजदीप ने अदालती कार्यवाही के संबंध में ट्वीट किया था,...

सारी सलामती की दुआएं दरगाह-मस्जिदों से ही क्यों मांगती है कांग्रेस? राम मंदिर के लिए दान नहीं ..हनुमान मंदिर के लिए झंडा नहीं ..वैष्णोंदेवी के लिए चुनरी नहीं..!

कांग्रेस पार्टी पर अक्सर देश में तुष्टीकरण की राजनीति के आरोप लगते हैं और कांग्रेस है कि उन आरोपों को हमेशा सत्य साबित भी...

एमनेस्टी की अवैध फंडिंग पर कानून का फंदा: ED ने जब्त की 17 करोड़ से ज्यादा की सम्पत्ति

देश विरोधी गतिविधियां करने वाले तमाम एनजीओ की कमर मोदी सरकार जिस तरह से तोड़ रही है वह काबिले तारीफ है। इसी कड़ी में...

द्रोहियों के गिरफ्तार होते ही लोकतंत्र खतरे में आ गया रे !

पिछले साल CAA विरोधी दंगे फैलाने वालों की जब एक एक करके कलई खुली और सब जेल की सीखचों के पीछे पहुचंने लगे तो...

मोदी का खालिस्तानियों पर ‘वैक्सीन वार’ : कनाडा के PM ने किया भारत के सामने सरेंडर.. अब भारत भेजेगा Covid वैक्सीन

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने जिस तरीके से तथाकथित किसान आंदोलन  के पक्ष में बयान देकर भारत सरकार को खालिस्तानी खिलौना बनाकर खेलने...

कपिल मिश्रा का हिंदू इकोसिस्टम: आदरणीय Secular समाज के नाम एक संदेश..

अल्पसंख्यकों के रहनुमा जब बहुसंख्यक हो जाएं और बहुसंख्यकों के अल्पसंख्यक, तब ऐसा ही होता है जो आज कपिल मिश्रा के साथ हो रहा...

क्या आपको पता है.. बसंत पंचमी के शुभ दिन ही पृथ्वीराज चौहान ने मारा था मुहम्मद गौरी को..!

मत चूको चौहान वसन्त पंचमी का शौर्य चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण!ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!! वसंत पंचमी का दिन...

बड़ा खुलासा: 26 जनवरी हिंसा की साजिश पाक दूतावास में रची गई थी!

गणतंत्र दिवस पर देश का माहौल खराब करने वाली साजिश की परतें अब लगातार खुल रही हैं दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल अपनी पड़ताल में यह...

रविश जी का बौद्धिक डायरिया !!

यूँ तो कई साल हो गए रविश जी को पढ़े या NDTV को देखे पर यदा-कदा सोशल मीडिया पर कोई उनका आर्टिकल या पोस्ट शेयरकर देता है तो पढ़ लेते हैं । जवाब हालाँकि उन तक पहुँचेगा नहीं , और पहुँचेगा भी तो वैसे ही इग्नोर कर देंगे जैसे हम उनके आर्टिकल , फिर भी मन करता है जवाब लिखने का । पर फिर लगता है काहे को इतनी मगजमारी करी जाए । जाने दो बेचारे को दुःख हुआ है उसको२०१४ से , वो भी लगातार ।  पर पिछले २ दिनों में २ बहुत ख़ास लोगों ने रविश जी के २ फ़ेस्बुक पोस्ट साझा किए , हालाँकि वो लोग उनको ग़लत ही साबित करने कीकोशिश कर रहे थे पर इसमें भी पोस्ट साझा तो हो ही गयी । अब पोस्ट दिख गयी तो पढ़ भी लिए । पढ़े तो जवाब सूझा , एक दिनइग्नोर किया पर दूसरे दिन फिर दिख गयी तो लगा शायद कायनात ही चाह रही है कि कुछ कहा जाए । नाराज़ ना हो जाए कहींकायनात इसलिए लिखने बैठ गए । पहली पोस्ट थी , जिसमें परमादरणीय रविश जी ने युवाओं ख़ासकर लड़कियों को समझाया था कि किससे प्रेम ना किया जाए । बढ़ियापोस्ट रही । लब्बोलुआब ये था पोस्ट का कि जो लोग धर्म के नाम पर उन्मादित रहते हैं उनसे लड़कियाँ या लड़के भी , प्रेम ना करें । बातएक दम दुरुस्त लगी । काश कुछ लड़कियाँ ये बात समझ पातीं तो उनके शरीर सूटकेसों में ना मिलते । वैसे रविश जी ने ये नहीं बतायाकि अगर कोई नाम बदलकर इश्क़ करे तो और शादी के बाद उसके लिए  प्रेम से बड़ा धर्म हो जाए तो ऐसे में ये कृत्य धार्मिक उन्माद मेंआता है या नहीं । सवाल का जवाब भले ना मिले पर पोस्ट मार्के की लगी , इसलिए दूसरी पोस्ट भी पढ़ी ।  वो बिलकुल वैसी थी जैसी प्रातःवंदनीय रविश जी पहले लिखते थे । शुरुआत हुई , हाय बांग्लादेश की इकॉनमी तो भारत से ज़्यादा तेज़ीसे बढ़ रही है । दरसल जबसे मोदी जी ने देश को ५ ट्रिल्यन डॉलर की इकॉनमी बनाने की बात बोली है , रविश जी ने बीड़ा उठा लिया हैकि इकॉनमी की हत्तेरे धत्तेरे करते ही रहेंगे । ये तुलना वैसी है की १५ नम्बर लाने वाला ३० नम्बर ले आयी तो १००% का ग्रोथ है पर अगर५० लाने वाला ६० ले आए तो ग्रोथ केवल २०% है । अब १५ से ३० पहुँचने और ५० से साठ पहुँचने में लगी मेहनत ज़मीन आसमान काअंतर रखती  है , पर रविश जी को इससे मतलब कहाँ , ना इससे मतलब की ६० अभी भी ३० का दुगुना होता है ।  वे आगे बताते हैं कि सरकार सब बेंचे दे रही है । बिकने वाले कम्पनियों के लोग उन्हें आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं । ठीक वैसे ही जैसेजिन जिन राज्यों में भाजपा सरकारें हैं वहाँ के लोग इन्हें चिट्ठी लिखकर कहते हैं की रविश जी आपसे ही उम्मीद है । जबकि ग़ैरभाजपाशासित राज्यों के लोग अव्वल तो उन्हें चिट्ठी लिखते नहीं या फिर चिट्ठी बाँची जाने से पहले सरकारें अमल कर लेती हैं । अब रविश जीयहाँ दो बातें चतुराई से दबा जाते हैं , पहली तो ये की बेंचने और विनिवेश करने में अंतर होता है । दूसरा , विनिवेश होते ही नौकरियाँचली जाएँगी , इसका सम्बंध क्या है । मसलन मान लीजिए मैं एक कम्पनी में निवेश करता हूँ , तो क्या मैं वहाँ पर सबसे पहले लोगों कीनौकरी जाने की वकालत करूँगा ? नहीं , इससे तो मेरा पैसा ही डूबेगा । हाँ , ये ज़रूर देखूँगा कि कहाँ पैसे बच सकते हैं और resources को कहाँ पर अच्छे से यूज़ किया जा सकता है । इतने हाई पर्फ़ॉर्मिंग कम्पनी के एम्प्लॉईज़ भी तो हाई पर्फ़ॉर्मर ही होंगे । तो उनके निकालेजाने का सवाल नहीं बनता , जबतक कोई उनसे अच्छा काम करने वाला ना मिल जाए और ऐसी दशा में तो सरकारें भी लोगों को हटातीही हैं । अब पता नहीं रविश जी को चिट्ठी कौन लिख रहा है ।  फिर रविश जी मुद्दे पर आ जाते हैं । कि जनता को ही अपनी फ़िक्र नहीं है । भक्त बनी जा रही है । तेल के दाम बढ़ रहे हैं , महंगाई बढ़रही पर जनता है कि मोदी मोदी किए पड़ी है । यहाँ पर महंगाई की दर की बात रविश जी नहीं करते । जैसे २००४ से २०१४ के बीच तेलके दाम जिस गति से बढ़े , उसी गति से तेल की क़ीमत आज क्या होती ? यहाँ पर गोल पोस्ट बदलते हुए नम्बरों का साठ हो जानामहत्वपूर्ण हो जाता है । वैसे रविश जी जनता को भक्त बोलते हैं , नुमाइंदे नहीं । सेक्युलर रविश जी हें हें हें !! इसके आगे रविश जी ने जो लिखा उससे एक पुराना चुटकुला याद आया । हंसी नहीं आएगी पहले ही बता दूँ । हुआ यों कि शिक्षक नेविद्यार्थी से पूछा कि तुमने आज परोपकार का कौन सा काम किया । जवाब में विद्यार्थी बोला की मैंने अपने ४ दोस्तों के साथ मिलकरएक बुढ़िया को सड़क पार करायी । शिक्षक ख़ुश तो हुआ पर  पूछ बैठा कि ५ लोगों की क्या ज़रूरत थी ? जवाब मिला अरे वो सड़कपार ही नहीं करना चाह रही थी ।  ठीक ऐसा ही माहौल लगा जब रविश जी ने लिखा कि विपक्ष मुद्दे लेकर तैयार है पर उठाए किसके लिए ? पर रविश जी जनता वहीबुढ़िया है जिसे सड़क तो पार करनी है पर ५-५ दोस्तों के महगठबंधनों से डरती है । उसके जो कारण है असलियत में वही आपकी पोस्टका जवाब है :  तेल से शुरू करते हैं । जब आप तेल की क़ीमतों की बात करते हैं तो नहीं बताते कि राज्य सरकारें कितना टैक्स ले रही हैं क्यूँकि तबआपको राजस्थान की बात करनी पड़ेगी । आप क़ानून व्यवस्था के नाम पर जनता को उकसाएँगे तो अब जनता पलघर पर सवाल पूछलेगी । पूछ लेगी दादरी जैसे भाग भाग कर सारे गए थे , हाथरस गए थे वैसे ही किसी नारंग या किसी रिंकू शर्मा के यहाँ लोग क्यूँ नहीं गए। PPE किट बनाकर आत्मनिर्भर बनने की बात का मज़ाक़ उड़ाने वाले टूल्किट बनाने वाले का बचाव इसलिए करते हैं क्यूँकि उसकी उम्रएक्कीस साल है ? जबकि इससे ना जाने कितनी छोटी उमर के बच्चे , कोरोना काल में कोरोना वॉरीअर बनके उभरे , उमर दराज लोगोंको खाना खिलाया , दवाइयाँ पहुँचाईं । वो सवाल आपसे ये भी पूछेगी जब पूरा भारत लड़ रहा था वायरस से तो कहाँ थे ये पर्यावरणप्रेमीऔर अचानक से जनता के लिए जाग गए नेता ? कहाँ गए अब वो पत्रकार जो कभी टेस्टिंग का बहाना बनाकर तो कभी स्वास्थ्यसुविधाओं का बहाना बनाकर कदम कदम पर इस देश के हौसले को ना केवल तोड़ रहे थे बल्कि दुनिया भर के platforms पर मज़ाक़बना रहे थे । आज छोटे छोटे देश भारत की उदारता के गुणगान गा रहे हैं तो इन सबके पेट में दर्द होना शुरू हो गया है ।  गुल तो आपने भी कुछ कम नहीं खिलाए , आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला हो , जस्टिस लोया की मृत्यु हो , राफ़ेल हो , CAA हो याकिसान बिल हो : सब पर आपकी एकतरफ़ा पत्रकारिता सबने देखी । जस्टिस लोया वाले केस में तो सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बावजूदउस खबर को चलाने वालों को पुलिट्जर पुरस्कार तक देने की बात कह दी आपने । कहाँ तक गिनाए , लिस्ट बहुत लम्बी है ।  कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि ऐसा नहीं है कि जनता को परेशानी नहीं है या इससे लड़ना नहीं चाहती , पर बात ये है कि ये पता हैकि जो आज ख़ैरख़्वाह बनने की कोशिश कर रहे हैं जब उनका राज था तब उन्होंने हाल इससे भी बुरा बनाकर रखा था । अभी भी जिनराज्यों में हैं उनकी सरकारें उनकी स्थिति छिपी नहीं है । विपक्ष और तथाकथित लिबरल मीडिया दोनों  ने अपनी सारी विश्वसनीयता खोदी है इसलिए कन्हैया से लेकर टिकैत तक सबमें अपना नेता ढूँढने की नाकाम कोशिश करते हैं ।  वैसे बनना तो आप भी चाहते हैं विपक्ष का चेहरा पर आपके ऐसे पोस्ट आपको विपक्ष के प्रवक्ता की हैसियत मात्र देते हैं । खुद भी एकबार सोचिएगा की कोई सकारात्मक खबर आपने आख़िरी बार कब सुनाई थी ??