‘जागो फिर एक बार’ का सनातनी उद्घोष!

‘भाल अनल धक-धककर जला भस्म हो गया था काल अभय हो गये थे तुम मृत्युन्जय व्योमकेश के समान, अमृत सन्तान।’ सिन्धु -नद के तीर...